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‘संदेशखाली’: एक घटना जिसने पश्चिम बंगाल के चुनावो में उठाया भाजपा को अर्श पर, फिर उसके स्ट्रिंग ने गिराया फर्श पर, ‘मोदी मैजिक’ को कैसे तोडा बुआ और भतीजे ने, पढ़े ममता के प्रचंड जीत का राज़

तारिक़ आज़मी

डेस्क: पश्चिम बंगाल जहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार किया, डेढ़ दर्जन से ज्यादा रैलियों और रोड शो के बावजूद भाजपा सीटें बढ़ाना तो दूर, अपनी पिछली बार की एक तिहाई सीटें बचाने में भी नाकाम रही है। बुआ और भतीजे यानी ममता और अभिषेक की जोड़ी ने फिर साबित कर दिया है कि घोटाले और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद राज्य के वोटरों पर तृणमूल कांग्रेस की पकड़ ढीली होने की बजाय और मजबूत हुई है।

बंगाल के चुनावी नतीजों ने यहां अपनी सीटों की तादाद बढ़ाने का प्रयास कर रही भाजपा को करारा झटका दिया है। सीटें बढ़ाना तो दूर वह अपनी पिछली बार की जीती सीटें भी बरकरार रखने में नाकाम रही है। कांग्रेस की झोली में एक सीट जरूर आई है। लेकिन उसकी सबसे पक्की मानी जानी वाली मुर्शिदाबाद ज़िले की बहरमपुर सीट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी की पराजय ने पार्टी को झटका दिया है।

सन्देश खाली मुद्दा जिसने पहुचाया भाजपा को अर्श पर और फिर एक स्ट्रिंग ने गिरा दिया फर्श पर

ममता ने भाजपा के सबसे बड़े मुद्दे संदेशखाली और नागरिकता संशोधन कानून को बदली हुई परिस्थिति में जिस तरह अपने सियासी हित में भुनाया, उसे राजनीतिक हलकों में पार्टी की कामयाबी की एक प्रमुख वजह माना जा रहा है। संदेशखाली मुद्दे पर स्टिंग वीडियो, नागरिकता संशोधन कानून और ममता बनर्जी सरकार की कल्याण मूलक योजनाएं- ये तीन मुद्दे ही पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत और भाजपा को लगे करारे झटके की सबसे बड़ी वजह के तौर पर सामने आए हैं।

भाजपा ने यहां संदेशखाली को ही अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था। लोकसभा चुनाव की तारीख के एलान के पहले से ही उसने इस मुद्दे पर आक्रामक तरीके से आंदोलन शुरू किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी बारासात रैली में इन कथित पीड़िताओं से मुलाकात की थी। बाद में उनमें से ही एक रेखा पात्रा को बशीरहाट संसदीय सीट पर टिकट दिया गया। शुरुआती दौर में तृणमूल कांग्रेस इस मुद्दे से सांसत में थी। उसने डैमेज कंट्रोल की कवायद जरूर शुरू की थी। लेकिन भाजपा को इस मामले में बढ़त साफ़ नजर आ रही थी।

उसके बाद अचानक आने वाले एक स्टिंग वीडियो ने पूरी तस्वीर ही बदल दी और भाजपा का यह मुद्दा उसके हाथों से निकल कर तृणमूल कांग्रेस के हाथों में चला गया। उस वीडियो में भाजपा के एक स्थानीय नेता को यह कहते हुए सुना गया कि यह पूरा मामला ही मनगढ़ंत है और इसके पीछे शुभेंदु अधिकारी का हाथ है। ममता ने उसके बाद इसे बंगाल की महिलाओं की अस्मिता से जोड़ दिया। इस तरह जो मुद्दा ममता के महिला वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा का सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता था, वही इस वोट बैंक को मजबूत करने का ममता का हथियार बन गया।

चुनाव से ठीक पहले लागू होने वाले नागरिकता संशोधन कानून भी यहां भाजपा को अपेक्षित कामयाबी नहीं दिला सकी। ममता इसे एनआरसी से जोड़ते हुए कहती रहीं कि इसके तहत तमाम लोगों को घुसपैठिया घोषित कर बंगाल से खदेड़ दिया जाएगा। इससे उस मतुआ समुदाय में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई जिसे ध्यान में रखते हुए भाजपा ने इसे लागू किया था।

शुभेंदु अधिकारी का राजनितिक भविष्य अब दाव पर

इस चुनाव में दो नेताओं की साख भी दांव पर लगी थी। तृणमूल के सेनापति कहे जाने वाले सांसद अभिषेक बनर्जी और भाजपा की ओर से विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी। चुनावी नतीजों ने जहां पार्टी के सेनापति के तौर पर अभिषेक की स्थिति को बेहद मजबूत बना दिया है, वहीं शुभेंदु के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

ममता बनर्जी के अलावा अभिषेक ने ही अपने कंधों पर पार्टी के चुनाव अभियान की जिम्मेदारी संभाली थी। ऐसा तब जबकि वो खुद भी कोलकाता से सटी डायमंड हार्बर सीट से चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन अपनी जीत के बारे में वो इतने आश्वस्त थे कि लगातार दूसरे उम्मीदवारों का ही प्रचार करने में जुटे रहे। इन नतीजों के बाद पार्टी में चल रहे नया बनाम पुराना विवाद भी थम जाने की उम्मीद है। साथ ही पार्टी में उत्तराधिकार पर उठने सवाल भी अब थमने की संभावना है।

जीत के बाद हुई बैठक में शामिल ममता ने पत्रकारों के सवालो का जवाब देते हुवे कहा है कि ‘वोटरों ने भाजपा की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। यह मोदी के ख़िलाफ़ वोट है। मोदी ने कई राजनीतिक पार्टियों को तोड़ा है। इस बार जनता ने उनकी पार्टी को ही तोड़ दिया है। जनता ने उनको वोट के जरिए माकूल जवाब दिया है। मोदी और अमित शाह को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।’

मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए कहा, ‘आयोग ने हिज मास्टर्स वॉयस के तौर पर काम किया है। एग्जिट पोल करने वालों ने मनोबल तोड़ने का प्रयास किया था। वह तमाम रिपोर्ट भाजपा के दफ्तर में तैयार की गई थी। यह जीत आम लोगों और विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ की जीत है। मैं इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के प्रति समर्थन जताती हूं। जो साथ हैं उनके प्रति भी और जो जुड़ना चाहते हैं उनके प्रति भी। भाजपा ने विधायकों को तोड़ने की कम कोशिश नहीं की थी। लेकिन आखिर तक उसे कामयाबी नहीं मिली।’

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