तारिक खान
प्रयागराज: प्रयागराज की राजनीति में जिस करवरिया बंधुओं की सबसे ज्यादा चर्चा होती है, उसका सिपाहसलार उदयभान करवरिया जेल से बाहर आ गया है। एक दौर में मुरली मनोहर जोशी का दाहिना हाथ कहे जाने वाले उदयभान करवरिया की समय से पहले रिहाई ने प्रयागराज मंडल के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है। करवरिया के प्रभाव वाले इलाके में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की हार और अचानक से उदयभान की रिहाई को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं।
हत्याकांड के 6 साल बाद उदयभान विधायक बन गए और अपने सत्ता के रसूख की वजह से जेल जाने से बच गए, लेकिन 2012 में जैसे ही यूपी में सपा की सरकार आई तो उदयभान करवरिया पर चाबुक चला। उदयभान ने अपने भाईयों के साथ आत्म समर्पण कर दिया और 4 नवंबर 2019 को कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। दोषी ठहराए जाने के 5 साल बाद ही उदयभान जेल से बाहर आ गया। वजह बनी जेल में आचरण का ठीक होना।
मौजूदा समय में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के ईद-गिर्द ही प्रयागराज मंडल की सियासत घूमती है। केशव प्रसाद मौर्य और उदयभान करवरिया के बीच कोई अदावत नहीं है, लेकिन उदयभान करवरिया का जेल से बाहर आने का मतलब केशव प्रसाद मौर्य के सामने एक लकीर को खींच देने जैसा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उदयभान के जरिए सूबे के सबसे ताकतवर शख्स ने केशव प्रसाद मौर्य की घर में घेराबंदी कर दी है।
बीजेपी के टिकट पर बारा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे उदयभान की गिनती प्रयागराज मंडल के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती है। उसके संगठन कौशल का लोहा बीजेपी के सीनियर नेता मुरली मनोहर जोशी भी मानते थे। यही वजह है कि मुरली मनोहर जोशी अपने लोकसभा चुनाव की कमान भी उदयभान को सौंप देते थे। जेल जाने से पहले तक उदयभान ही प्रयागराज मंडल में बीजेपी के संगठन को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से संभालते थे।
लोकसभा चुनाव में मिली हार, प्रयागराज मंडल में कमजोर होता संगठन और ब्राह्मण वोटरों के रूठने की वजह से बीजेपी चिंता में है और उसकी उम्मीद उदयभान करविरया से है। उदयभान करवरिया ही वो नेता थे, जो रेवती रमण सिंह के खिलाफ धनबल और बाहुबल के साथ सियासी नुराकुश्ती करते थे। अब रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमण सिंह प्रयागराज से सांसद बन गए हैं तो बीजेपी उदयभान के जरिए 2027 के गणित दुरुस्त करना चाहती है।
उदयभान भले ही जेल से आजाद हो गए हों, लेकिन वह चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। ऐसे में अब उनकी भूमिका संगठन में ही नजर आती है। बीजेपी की कोशिश भी होगी कि उदयभान एक बार फिर संगठन में लौटे और पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को 2027 की लड़ाई के लिए तैयार करें। फिलहाल प्रयागराज मंडल का बीजेपी संगठन काफी कमजोर है, जिसकी तस्दीक चुनाव हारने वाले सभी नेताओं ने पार्टी हाईकमान से की थी।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद जब बीजेपी ने समीक्षा शुरू की तो उसे पता चला कि प्रयागराज में संगठन कई गुटों में बंट चुका है। खासतौर पर ब्राह्मण नेताओं ने कई गुट बना लिए हैं। इसमें शुक्ला गुट, पांडेय गुट और ओझा गुट के नाम सामने आएं। इन सबकी काट के लिए बीजेपी के पास उदयभान करवरिया ही एक मजबूत विकल्प हैं। उदयभान करवरिया की ब्राह्मण वोटरों में पकड़ है और साथ ही जेल जाने के कारण एक सहानुभूति भी।
वैसे तो उदयभान करवरिया पिछले कई दशक से प्रयागराज की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं, लेकिन उनकी जड़ कौशांबी से भी जुड़ी हुई है। कौशांबी में अभी भी उदयभान करवरिया के करीबी का सिक्का चलता है और ब्राह्मण वोटरों पर पकड़ मजबूत है। यही वजह है कि बीजेपी की कोशिश होगी कि उदयभान के जरिए उस कौशांबी जिले के सारे समीकरण दुरुस्त किए जाए, जहां पर विधानसभा में तीनों सीटें और लोकसभा की सीट बीजेपी हार गई थी।
उदयभान करवरिया जब जेल गए तो उनकी सियासी विरासत को पत्नी नीलम करवरिया ने संभाला था। 2017 में मेजा विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर नीलम करवरिया विधायक बनी थीं। हालांकि 2022 का चुनाव नीलम करवरिया हार गईं। इसके बाद से नीलम करवरिया काफी बीमार हैं। ऐसे में उदयभान करवरिया अपने बेटे सक्षम करवरिया को लॉन्च कर सकते हैं।
दो बार विधायक रहे उदयभान करवरिया के परिवार का सियासी रसूख काफी बड़ा है। 2002 और 2007 के चुनाव में उदयभान करवरिया बारा सीट से चुनाव जीते थे, जबकि 2009 में बड़े भाई कपिलमुनि करवरिया प्रयागराज के सांसद बन गए थे। हालांकि कपिलमुनि बसपा के टिकट पर जीते थे। उसके अलावा उदयभान के छोटे भाई सूरजभान करवरिया एमएलसी रहे हैं। उदयभान करवरिया के कई रिश्तेदार भी राजनीति में हैं।
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