शफी उस्मानी
वाराणसी: वाराणसी पुलिस कमिश्नर भले चुस्त और दुरुस्त कानून व्यवस्था की बाते करे और अपने अधिनस्थो को इसके लिए बार बार सचेत करे, लाख प्रदेश के पुलिस मुखिया अपने हर सन्देश में आम शिकायतकर्ताओ के शिकायत को ख़ास तवज्जो देने की बात करे। मगर वाराणसी के कई ऐसे घटनाओं को देखा जा सकता है जिसमे पुलिस के पुरे कार्यशैली पर ही प्रश्नचिंह लग जाए।
मामला कुछ इस तरह है कि दिनांक 7 जुलाई 2024 को जैतपुरा के नवापुरा निवासी एक युवक की हत्या हो गई थी। घटना के सम्बन्ध में वादी द्वारा पुलिस को दिले पहले प्रार्थना पत्र (जिसको अब पुलिस बदलवा कर अपने मन जैसा करवा रही है) के अनुसार वादी अबुल हसन पुत्र स्व0 शमशुल हक ने आरोप लगाया है कि उसके भाई अंसार अहमद के पुत्र मो0 वसीम का का बजरडीहा निवासिनी नूरजहाँ से कुछ विवाद हो गया था। जिसके बाद दिनांक 7 जुलाई को रात्रि लगभग 9 बजे नूरजहाँ और उसकी माँ अपने साथ दो अन्य व्यक्तियों को लेकर उसके घर आई और उसके मृतक बेटे तौसीफ जमाल को घर से खीच कर बहार लेकर आये और उसको मारा जिससे तौफीक जमाल मौके पर ही गिर गया और डाक्टर के पास ले जाने पर चिकित्सको ने उसको मृत घोषित कर दिया।
वादी मुकदमा मृतक के पिता अबुल हसन के अनुसार हमलावार दोनों युवको को मौके पर मौजूद उसके परिजनों और मोहल्ले के लोगो ने पकड़ कर पुलिस के हवाले उसी दिन कर दिया। जिसके बाद शव के पोस्टमार्टम और अन्य प्रक्रियाओं के बाद आज सुबह वह थाने पर तहरीर लेकर आया। तहरीर में इस बात को लिखा गया था कि हमलावरों को हम लोगो ने पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया था। कानून के जानकार बताते है कि केस में यह एक बड़ा और अहम् पहलू है कि हमलावार मौका-ए-वारदात पर ही पकडे गये थे। मगर आपत्ति थानेदार साहब को थी कि आखिर जनता ये उपलब्धी अपने सर क्यों ले रही है?
हमसे इस सम्बन्ध में जब जैतपुरा थाना प्रभारी ब्रिजेश मिश्रा से फोन पर बात हुई तो उन्होंने इस बात को बातचीत में स्वीकार किया कि जनता ने 7 जुलाई को ही देर रात घटना के बाद आरोपियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया था। जब हमने उनसे तहरीर बदले जाने के सम्बन्ध में पूछा तो कोई स्पष्ट रूप से उत्तर न देते हुवे उन्होने कहा कि ‘कानून की हमको ज्यादा जानकारी है, मुझे पता है मुझे कैसे क्या करना है?’ (कॉल रेकार्डिंग सुरक्षित)। तो साहब बात तो ये भी सही है।
बात थानेदार साहब की भी सही है कि उनको ज्यादा बेहतर पता है कि उनको कैसे और क्या कानून अपने अनुसार लागू करवाना है। आखिर वह थाना प्रभारी जैतपुरा है। मगर सवाल पूछने का अधिकार हमको संविधान ने दिया है और हम अपने अधिकारों को जानते है यह बात भी साफ़ है। थानेदार साहब असल में दो दिनों के इस गैप जिस दरमियान आरोपियों को अपने हिरासत में बिना शायद किसी लिखा पढ़ी के रखा था को मैनेज कैसे करते? ये बड़ी बात थी।
वैसे ‘सुओ-मोटो’ जैसे भी नियम है, इस बात को हमने भी उसी किताबो में पढ़ा है जिसका अध्यन किया जाता है। मगर इतना तो साफ़ है कि थाना प्रभारी द्वारा तहरीर बदलवाने का दबाव ज़बरदस्त रहा होगा तभी 30 साल के अपने जवना और्लाद की लाश अपने कंधे पर उठा चूका कमज़ोर पिता उनके दबाव में टुटा और उनके मनसा अनुसार तहरीर लिखवा दिया। इन्साफ का क्या साहब? बेशक मिलेगा ही इंसाफ, अदालतों पर सभी को भरोसा है और हमको भी भरोसा है। मगर पुलिस कार्यशैली सवालो पर कायम है, ये भी सच है।
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