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वक्फ कानूनों में संशोधन हेतु विधेयक विरोध कर रहे विपक्ष के बीच हुआ संसद में पेश, जाने क्या कुछ बदल जायेगा इस कानून के पास होते ही

तारिक़ आज़मी

डेस्क: विपक्ष के भारी विरोध के साथ आज संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश हुआ। इस दरमियान विपक्ष ने इस विधेयक का जमकर विरोध किया। मुस्लिम समाज इस विधेयक का पहले ही विरोध कर रहा है। ये कहा जा रहा है कि इस संशोधन के ज़रिए दान और परोपकार जैसी अवधारणाओं को कमज़ोर करने और अतिक्रमण करने वालों को संपत्ति का मालिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

वक़्फ़ क़ानून का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ़ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम’ कर दिया गया है। जानकारों का मानना है कि प्रस्तावित संशोधन इस क़ानून के नाम से मेल नहीं खाते हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित संशोधन विधेयक की कॉपी भी सभी सांसदों को बांट दी गई थी। सरकार का दावा है कि ये संशोधन ‘क़ानून में मौजूद ख़ामियों को दूर करने और वक्फ़ की संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन’ को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी हैं।

वक्फ़ में ये रुचि इसके तहत आने वाली बड़ी संपत्तियों की ओर भी इशारा करती है। वक्फ़ की 8.72 लाख संपत्तियां और 3.56 लाख जायदादें कुल 9.4 लाख एकड़ ज़मीन में फैली हुई हैं। रक्षा मंत्रालय और भारतीय रेलवे के बाद अगर सबसे अधिक संपत्तियां किसी के अधीन हैं तो वह वक्फ़ ही है। इन तीनों के पास देश में सबसे अधिक ज़मीनों का मालिकाना हक़ है। पिछले दो सालों में देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में वक्फ़ से जुड़ी करीब 120 याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसके बाद इस क़ानून में संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं।

अदालत में दी गई अर्ज़ियों में वक्फ़ क़ानून की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जैन, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों समेत दूसरे धर्मों में ऐसे क़ानून लागू नहीं होते। वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, ‘धार्मिक आधार पर कोई ट्रिब्यूनल नहीं रह सकता। भारत ऐसा राष्ट्र नहीं हो सकता, जहां दो क़ानून हों। यहां एक देश और संपत्ति के लिए एक क़ानून हो। अदालतों में दायर 120 याचिकाओं में से तकरीबन 15 मुसलमानों की ओर से भी दायर की गई है। दान और परोपकार वाले काम कभी भी धर्म के आधार पर नहीं होने चाहिए।’

राजनीतिक जानकारों की माने तो ‘प्रमुख ज़मीनों पर सरकारी कब्ज़े की कोशिश’ के तौर पर देखते हैं। ये सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदू वोट बैंक को ख़ुश करने के लिए है। हां, मौजूदा वक्फ़ क़ानून में कुछ कमियां हैं और वक़्फ़ बोर्ड से जुड़ी कई ईकाइयों में भ्रष्टाचार की बात को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता है। इसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं हो रहा है। वक्फ़ अधिनियम में प्रस्तावित 44 संशोधनों से पहले ही कई छोटे शहरों, कस्बों, ख़ासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों में वक्फ़ बोर्ड को ख़त्म करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन देखे जा चुके हैं।

वक़्फ़ कोई भी चल या अचल संपत्ति होती है जिसे कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम को मानता हैं अल्लाह के नाम पर या धार्मिक मक़सद या परोपकार के मक़सद से दान करता है। संशोधन विधेयक के ‘उद्देश्यों और कारणों’ के अनुसार वक्फ़ को ऐसा कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान दे सकता है जो कम से कम पाँच सालों से इस्लाम का पालन करता हो और जिसका संबंधित ज़मीन पर मालिकाना हक़ हो।

प्रस्तावित संशोधन के तहत अतिरिक्त कमीश्नर के पास मौजूद वक्फ़ की ज़मीन का सर्वे करने के अधिकार को वापस ले लिया गया और उनकी बजाय ये ज़िम्मेदारी अब ज़िला कलेक्टर या डिप्टी कमीश्नर को दे दी गई है। केंद्रीय वक्फ़ परिषद और राज्य स्तर पर वक्फ़ बोर्ड में दो ग़ैर मुसलमान प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है। नए संशोधनों के तहत बोहरा और आग़ाख़ानी समुदायों के लिए अलग वक्फ़ बोर्ड की स्थापना की भी बात कही गई है।

वक्फ़ का पंजीकरण सेंट्रल पोर्टल और डेटाबेस के ज़रिए होगा। इस पोर्टल के ज़रिए मुतवल्ली यानी वक्फ़ संपत्ति की देखरेख करने वालों को ख़ातों की जानकारी देनी होगी। इसी के साथ सालाना पाँच हज़ार रुपये से कम आय वाली संपत्ति के लिए मुतवल्ली की ओर से वक्फ़ बोर्ड को दी जाने वाली राशि को भी सात फ़ीसदी से घटाकर पाँच फ़ीसदी कर दिया गया है। किसी संपत्ति के वक्फ़ के तहत आने या न आने का फ़ैसला लेने का वक्फ़ बोर्ड का अधिकार वापस ले लिया गया है।

नए प्रस्ताव के अनुसार मौजूद तीन सदस्यों वाली वक्फ़ ट्राइब्यूनल को भी दो सदस्यों तक सीमित कर दिया गया है। लेकिन इस ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को अंतिम नहीं माना जाएगा और 90 दिन के भीतर ट्राइब्यूनल के फ़ैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। नए विधेयक में सीमा अधिनियम को लागू करने की अनिवार्यता को हटाने का प्रावधान है। इसका मतलब है कि जिन लोगों का 12 साल से वक्फ़ की ज़मीन पर अतिक्रमण करके कब्ज़ा किया हुआ है, वे इस संशोधन के आधार पर मालिक बन सकते हैं।

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