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असम विधानसभा में जुमे की नमाज़ के लिए ब्रेक हुआ खत्म, एनडीए के सहयोगी JDU सहित विपक्षी दलों ने जताया सख्त एतराज़

माही अंसारी

डेस्क: असम विधानसभा में शुक्रवार के रोज़ जुमे की नमाज़ के लिए तीन घंटे का ब्रेक दिया जाता था, जिसे अब ख़त्म कर दिया गया है। पहले जुमे की नमाज़ के लिए सुबह 11 बजे से 2 बजे तक सदन को स्थगित किया जाता था। बीजेपी असम प्रदेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, ‘सैदय सादुल्लाह द्वारा असम विधानसभा में जुमे की नमाज़ के लिए तीन घंटे के स्थगन के नियम को ख़ारिज कर दिया गया है। अब से सदन में जुमे की नमाज़ के लिए कोई ब्रेक नहीं हुआ करेगा।’

इस पर एनडीए के घटक दल जेडीयू ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है और इसे संविधान की भावना का उल्लंघन बताया है। वहीं बिहार के विपक्षी दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव और समाजवादी पार्टी ने इस फै़सले पर सवाल उठाते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है। इस फ़ैसले पर सबसे पहले और सबसे तीखी प्रतिक्रिया आई केंद्र में मोदी सरकार की सहयोगी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की आई है। समाचार एजेंसी एएनआई से जेडीयू के नेता नीरज कुमार ने कहा, ‘असम सरकार का फैसला निश्चित रूप से देश के संविधान की मूल प्रस्तावना के ख़िलाफ़ है। हर एक को अपनी धार्मिक मान्यताएं और परम्पराओं को जीवंत रखने का अधिकार है।’

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से मैं जानना चाहता हूं कि शुक्रवार को होने वाली छुट्टी पर तो रोक लगा रहे हैं लेकिन असम में कामाख्या मंदिर में हर दिन बलि होती है, इस पर प्रतिबंध लगाकर देखिए कितना विरोध होगा। धार्मिक प्रथाओं पर पाबंदी लगाने का किसी को अधिकार नहीं है। उसे अपने जीने के तौर तरीके का, खाने का रहने का सबको अपना अधिकार है। इससे बेहतर होता कि वो असम में ग़रीबी ख़त्म करने, बाढ़ की समस्या दूर करने, लोगों की ज़िंदगी बेहतर करने की बात करते।’

उधर, आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि असम के मुख्यमंत्री सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं। उन्होंने कहा, ‘भाजपा के लोगों ने नफ़रत फैलाने, मोदी-शाह का ध्यान आकृष्ट करने एवं समाज में ध्रुवीकरण करने के लिए मुसलमान भाइयों को सॉफ्ट टारगेट बना लिया है। कभी वक्फ़ बोर्ड का बिल आ जाता है तो कभी सीएए एनआरसी का बिल।।। ये लोग समाज में नफ़रत पैदा करना चाहते हैं।’

उन्होंने कहा कि ‘जबतक हम लोग हैं, उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता।’ यूपी में मुरादाबाद से सपा नेता एसटी हसन ने कहा, ‘हिमंत बिस्वा सरमा जब भी बोलते हैं विष उगलते हैं और समाज में ज़हर फैलाते हैं। उनकी सारी सियासत मुस्लिम विरोध पर टिकी है।’ उन्होंने कहा, ‘कुछ मुख्यमंत्रियों में होड़ लगी हुई है कि कौन मुसलमानों को कितना टॉर्चर करता है और केंद्र के नेताओं के क़रीब हो जाए। हिमंत खुद घोटालों में फंसे थे जब कांग्रेस में थे, उससे बचने के लिए वो ये सब करते हैं।’

इस फैसले के बारे में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘रूल कमेटी की मीटिंग के बाद, सभी हिंदू, मुस्लिम विधायकों ने फैसला किया है कि दो घंटे के अवकाश की कोई ज़रूरत नहीं है। उन्होंने दो घंटे की छुट्टी की बजाय इस दौरान काम करने का फैसला लिया। ये प्रथा 1937 में शुरू हुई थी जिसे अब बंद कर दिया गया है। सस्ती लोकप्रियता पाने और एक ख़ास वर्ग को ख़ुश रखने की कोशिशों के आरोप पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ;ये जो फैसला हुआ है, उसमें सभी वर्ग के विधायक थे और सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया। ये मैंने लिया ऐसा नहीं है।’

बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा ने कहा, ‘भारत एक सेक्युलर देश है। अगर हम धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के आदर की बात करते हैं और सभी धर्मों के साथ समान बर्ताव की बात करते हैं तो मेरा मानना है कि सभी धर्मों के प्रति सम्मान इस सरकार की प्राथमिकता है।’ इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, असम विधानसभा के प्रक्रिया के नियमों में कहा गया है कि ‘शुक्रवार और शनिवार को छोड़कर आमतौर पर सदन की बैठक सुबह 9:30 बजे और 2 बजे तक चलेगी। शुक्रवार को सदन की बैठक 9:30 बजे से 11:30 और शाम तीन से पांच बजे तक चलेगी।’

असम के स्पीकर बिस्वाजीत डिमरी ने कहा कि ब्रिटिश ज़माने में सैदुल्लाह साहब के मुख्यमंत्रित्व काल में एक परम्परा जैसी हो गई थी और जुमे की नमाज़ के लिए असम विधानसभा को 11।30 बजे से स्थगित कर दिया जाता था। उन्होंने कहा, ‘उस समय बांग्लादेश असम के साथ था और इसकी राजधानी शिलांग में थी। हो सकता है कि उस समय इस्लाम धर्म को मानने वाले कई सदस्य ये प्रस्ताव लेकर आए होंगे। जबसे मैं स्पीकर बना हूं, मैंने नोटिस किया कि शुक्रवार को समयाभाव के कारण बहस नहीं हो पाती है।’

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा अन्य धर्मों के लोगों ने भी प्रार्थना के लिए छुट्टी मांगनी शुरू कर दी थी। मैंने बाकी विधानसभाओं की भी जानकारी ली और पता चला कि वहां ऐसी कोई छुट्टी नहीं होती है। यहां तक कि संसद में भी ऐसा कोई नियम नहीं है।’ उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को रूल कमेटी के पास भेजा गया, जिसके अध्यक्ष वो खुद थे। वहां सर्वसम्मति से ये परम्परा ख़त्म करने का निर्णय लिया गया। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मुसलमानों को लेकर अपने विवादित बयानों से सुर्खियों में रहे हैं। पिछले महीने ही हिमंत सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक़ पंजीकरण अधिनियम एवं नियम, 1935 को ख़त्म करने के लिए एक विधेयक को मंज़ूरी दी थी। इसकी भी काफ़ी आलोचना हुई थी। इस क़दम को भी असम सरकार ने प्रगतिशील क़दम बताया था जबकि मुस्लिम परिवारों में इस क़दम को आशंका के साथ देखा जा रहा है।

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