एच0 भाटिया
बरेली: जनपद की एक अदालत ने राज्य पुलिस को झटका देते हुए दो हिंदुओं को गैरकानूनी धर्मांतरण के आरोपों से बरी करते हुए जिले के कुछ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है, जिन्होंने एक हिंदूवादी स्वयंभू गोरक्षा कार्यकर्ता की निराधार शिकायत के आधार पर दोनों को झूठा फंसाया था।
पटेल ने दावा किया कि मौके पर ऐसे 40 लोग पाए गए, जिनका कथित तौर पर अवैध रूप से धर्मांतरण किया जा रहा था। उन्होंने बताया कि उनके मामला उठाने के बाद स्थानीय हिंदुत्व समूहों के 10-15 सदस्यों का एक दल पुलिस के साथ गांव में पहुंचा। पटेल ने आरोप लगाया कि गुप्ता और अन्य लोगों से बाइबिल की प्रतियां बरामद की गईं। बाद में कुंदन लाल को इस मामले में आरोपी बनाया गया, जबकि शिकायतकर्ता ने उनकी पहचान नहीं की थी।
अदालत ने आरोपी अभिषेक गुप्ता और कुंदन लाल कोरी को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन रोकथाम अधिनियम 2021 की धारा 3 और 5 (1) के तहत आरोपों से बरी कर दिया। यह फैसला 30 जुलाई को सुनाया गया था, जिसके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी अब प्राप्त हो रही है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने पुलिस को मनगढ़ंत कहानी को ‘कानूनी रूप’ देने के ‘असफल प्रयास’ का दोषी ठहराया। जज त्रिपाठी ने कहा कि अवैध धर्मांतरण मामले में ‘वास्तविक अपराधी’ शिकायतकर्ता, उससे जुड़े गवाह, एफआईआर को अधिकृत करने वाले एसएचओ, जांचकर्ता और मामले में आरोप पत्र को मंजूरी देने वाले क्षेत्राधिकारी हैं।
अदालत ने दोनों बरी किए गए लोगों को ‘दोषी’ पुलिसकर्मियों, शिकायतकर्ता और गवाहों के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर करने और ‘दुर्भावनापूर्ण अभियोजन’ के लिए उचित मुआवजे की मांग करने का विकल्प दिया। अदालत ने एफआईआर को ‘अमान्य और अप्रभावी’ घोषित करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता हिमांशु पटेल, जो सोशल मीडिया पर खुद को हिंदू जागरण मंच युवा वाहिनी का कार्यकर्ता बताता है, के पास प्रथम दृष्टया एफआईआर दर्ज करवाने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि वह न तो गैरकानूनी धर्मांतरण का शिकार था और न ही किसी पीड़ित का रिश्तेदार।
जस्टिस त्रिपाठी ने 27 पन्नों के आदेश में कहा कि पुलिस ने पटेल की शिकायत पर ‘किसी दबाव में’ एफआईआर दर्ज की थी, जबकि पटेल ने ‘प्रचार की लालसा’ में इसे दर्ज कराया था। साक्ष्यों की जांच के दौरान, अदालत ने कई मोर्चों पर पुलिस की खिंचाई की, जिसमें कथित तौर पर आरोपी गुप्ता को चार महीने से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखना भी शामिल है। पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को भी पेश नहीं कर सकी, जिसका कथित तौर पर आरोपियों द्वारा अवैध रूप से धर्मांतरण किया गया हो।
हालांकि कथित अपराध 29 मई को किया गया था, लेकिन एफआईआर एक दिन बाद ही दर्ज की गई। पुलिस ने इस देरी को ठीक से स्पष्ट नहीं किया। अदालत ने इसे कानूनी रूप से संदिग्ध माना। अदालत ने यह भी माना कि गुप्ता की गिरफ्तारी और उनके पास से बाइबिल की कथित बरामदगी ‘पूरी तरह से संदिग्ध’ थी।
अदालत ने पुलिस की खिंचाई की और कहा कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बिथरी चैनपुर के एसएचओ को यह जांच करनी चाहिए थी कि पटेल को कानून के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार है भी या नहीं। अदालत ने कहा कि मामले के सभी गवाह कथित अपराध स्थल से कम से कम 10 किलोमीटर दूर रहते थे और पुलिस ने किसी स्थानीय या पड़ोसी का जिक्र करना भी जरूरी नहीं समझा।
अदालत ने पुलिस की खिंचाई की और कहा कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बिथरी चैनपुर के एसएचओ को यह जांच करनी चाहिए थी कि पटेल को कानून के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार है भी या नहीं। अदालत ने कहा कि मामले के सभी गवाह कथित अपराध स्थल से कम से कम 10 किलोमीटर दूर रहते थे और पुलिस ने किसी स्थानीय या पड़ोसी का जिक्र करना भी जरूरी नहीं समझा।
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