तारिक़ खान
डेस्क: मध्य प्रदेश सरकार ने एक निर्देश जारी कर राज्य भर के कॉलेजों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं द्वारा लिखी गई किताबों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना अनिवार्य कर दिया है। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी इस आदेश ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। विपक्षी दलों ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे विभाजनकारी विचारधारा को बढ़ावा देने का प्रयास बताया।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ। धीरेंद्र शुक्ला ने सभी सरकारी और निजी कॉलेजों के प्राचार्यों को लिखे पत्र में संस्थानों को 88 पुस्तकों का सेट खरीदने का निर्देश दिया है। इस सूची में सुरेश सोनी, दीनानाथ बत्रा, डी। अतुल कोठारी, देवेंद्र राव देशमुख और संदीप वासलेकर जैसे प्रमुख आरएसएस नेताओं द्वारा लिखी गई पुस्तकें शामिल हैं, जो सभी आरएसएस की शैक्षणिक शाखा विद्या भारती से जुड़े हैं।
उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेजों से बिना देरी किए ये किताबें खरीदने को कहा है। यह निर्देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप है, जो अकादमिक पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपराओं को शामिल करने की वकालत करती है। विभाग के पत्र में विभिन्न स्नातक पाठ्यक्रमों में इन पुस्तकों को शामिल करने की सुविधा के लिए प्रत्येक कॉलेज में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ’ के गठन की भी सिफारिश की गई है।
88 पुस्तकों की सूची में विशेष रूप से विद्या भारती के पूर्व महासचिव और आरएसएस की शिक्षण संबंधी पहलों के एक प्रमुख व्यक्ति दीनानाथ बत्रा द्वारा लिखित 14 किताबों को शामिल किए जाने के कारण बहस छिड़ी है। बत्रा इससे पहले क्रांतिकारी पंजाबी कवि अवतार पाश की कविता ‘सबसे खतरनाक’ को कक्षा 11वीं की हिंदी पाठ्यपुस्तक से हटाने की वकालत करने के लिए सुर्खियों में रहे हैं।
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