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तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: कमाल है इसके बाद भी कांग्रेस भाजपा पर हिन्दू मुस्लिम सियासत का आरोप लगा रही, शिमला में मस्जिद को लेकर विवाद को कांग्रेस विधायक/पंचायती राज्य मंत्री ने दिया तुल, मस्जिद के खिलाफ निकले जुलूस में भी हुवे शामिल

तारिक आज़मी

डेस्क: शिमला में चल रहे मस्जिद विवाद में सियासत अपनी रोटियों को सेक रही है। 10 दिनों पहले शुरू हुवे इस विवाद में अब तक बहुत कुछ सुक्खू सरकार के सामने आ चूका है। अगर आपको पुरे घटनाक्रम को विस्तार से समझाए तो इस मामले की शुरुआत एक झगड़े से है जो दो दुकानदारों के बीच हुआ। इसमें एक दुकानदार का सर फट गया और सर फाड़ने का आरोपी दुसरे समुदाय का था। जिसके बाद मामले में रोज़=ब-रोज़ नई नई बाते जुडती जा रही है।

अगर शुरू से बताये तो 30 अगस्त को हिमाचल प्रदेश के शिमला के मल्याणा गांव में दो समुदायों के लोगों के बीच विवाद हो गया था। दोनों में मारपीट हुई, जिसमें स्थानीय दुकानदार यशपाल सिंह घायल हो गया। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विशेष समुदाय से जुड़े शख्स ने यशपाल के सिर पर रॉड से हमला किया, जिससे उसके सिर पर गहरा घाव हो गया। विरोध में 2 सितंबर को स्थानीय लोगों की भीड़ शिमला के ही एक इलाके संजौली पहुंच गई। लोग दोपहर एक बजे संजौली चौक पर इकट्ठा हुए।

सजौली चौक से इस भीड़ ने जुलूस निकालते हुए मस्जिद की तरफ अपने कदम बढाये। भीड़ द्वारा विवादित और आपत्तिजनक नारे लगाये जाने के कुछ वीडियो भी बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हुवे थे। मस्जिद पहुंच कर भीड़ समुदाय विशेष के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। हनुमान चालीसा का पाठ किया गया और भजन गाए गए। भीड़ ने मस्जिद को अवैध निर्माण करार दिया। और उसको जल्द से जल्द गिराने की मांग की। इसके साथ ही भीड़ ने सड़क पर विशेष समुदाय से जुड़े लोगों की दुकानों और ठेलों को बंद करवाया और वहां दुकान ना लगाने की धमकी दी।

वही इस मस्जिद के मुताल्लिक मस्जिद के इमाम का कहना है कि मस्जिद 1947 से पहले की बनी है। उन्होंने दावा किया कि पहले मस्जिद कच्ची थी, बाद में लोगों ने चंदा लगाकर इसका निर्माण करवाया। यहां नगर निगम के कमिश्नर का बयान भी गौरतलब है। 2 सितंबर को जब भीड़ ने मस्जिद के बाहर हंगामा करना शुरू कर दिया तो पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी और नगर निगम के कमिश्नर ने भी मोर्चा संभाला।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक इसी दौरान भीड़ को शांत करने के लिए नगर निगम के कमिश्नर भूपेंद्र कुमार अत्री ने कहा, ‘मस्जिद के ऊपरी तीन फ्लोर गैर कानूनी है यह कोरोना काल के दौरान बनाए गए हैं। जिसका मामला कोर्ट में चला हुआ है। यह जमीन वफ्फ बोर्ड की है। कोर्ट केस में समय इसलिए लगा क्योंकि पार्टी गलत बनाई गई थी। गलती को दुरस्त करते हुए अब कोर्ट में वफ्फ बोर्ड को पार्टी बनाया गया है।’ यानी कि प्रशासन भी मानता है कि मस्जिद वक्फ की संपत्ति है।

इस पुरे मामले में सियासी छौका कांग्रेस विधायक और मंत्री ने लगाया और विधानसभा में इस मस्जिद को अवैध निर्माण करार देते हुवे सवाल प्रशासन पर उठाये। हिमाचल प्रदेश सरकार में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में मस्जिद निर्माण पर सवाल उठा दिए। कहा, ‘संजौली बाज़ार में महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है। चोरियां हो रही हैं, लव जिहाद जैसी घटनाएं हो रही हैं, जो प्रदेश और देश के लिए खतरनाक हैं। मस्जिद का अवैध निर्माण हुआ है। पहले एक मंजिल बनाई, फिर बिना परमिशन के बाकी मंजिलें बनाई गईं। 5 मंजिल की मस्जिद बना दी गई है। प्रशासन से यह सवाल है कि मस्जिद के अवैध निर्माण का बिजली-पानी क्यों नहीं काटा गया?’

अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में उसी मस्जिद पर सवाल उठाए जिस पर 2 सितंबर को भीड़ ने प्रदर्शन किया था। इस बीच कांग्रेस के ही विधायक हरीश जनारथा ने अपनी ही सरकार में मंत्री की टिप्पणियों का विरोध जताया। उन्होंने कहा, ‘इलाके में कोई तनाव नहीं है। मस्जिद मूल रूप से 1960 से पहले बनाई गई थी और वक्फ बोर्ड की जमीन पर 2010 में तीन अतिरिक्त मंजिलें ‘अवैध रूप से’ बनाई गई थीं। अवैध रूप से निर्मित शौचालयों को ध्वस्त कर दिया गया था।’ जनारथ ने कुछ तत्वों पर इस मुद्दे को बढ़ाने का आरोप लगाया।

इस बीच संजौली में मस्जिद के बाहर 5 सितंबर को हुए प्रदर्शन में मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी शामिल हुए। कुछ लोगों का कहना है कि ये प्रदर्शन ‘हिंदूवादी संगठनों’ द्वारा आयोजित किया गया। प्रदर्शन के दौरान सिंह ने कहा, ‘190 लोगों का रजिस्ट्रेशन है, जबकि 1900 लोग यहां रह रहे हैं। सबकी जांच होनी चाहिए।’ उनका ये बयान और भी ज्यादा लोगो के बीच आशंकाओं को जन्म दे गया। ऐसे समय में जब हिमांचल विधानसभा में कांग्रेस की सुक्खू सरकार के लिए एक एक विधायक अहमियत रखता है। ऐसे में अनिरुद्ध सिंह के लिए कोई कार्यवाही अथवा चेतावनी की पार्टी के द्वारा उम्मीद रखना भी ठीक नही है।

इस मामले पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बयानबाजी का दौर जारी है, जिसमें AIMIM प्रमुख और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी कूद पड़े हैं। उन्होंने मंत्री अनिरुद्ध सिंह के बयान पर कांग्रेस को घेरा है। ओवैसी का बयान भी काबिल-ए-गौर इस लिए है कि क्योकि कांग्रेस लगातार भाजपा को हिन्दू मुस्लिम सियासत करने के मामले में घेरती है। मगर हिमांचल में कांग्रेस सरकार के खुद के विधायक ही ऐसे मुद्दों को हवा दे रहे है और एक सम्प्रदाय विशेष के विरोध में निकले जुलूस का हिस्सा बन रहे है। ओवैसी ने अपने बयान में कहा, ‘क्या हिमाचल की सरकार भाजपा की है या कांग्रेस की? हिमाचल की ‘मोहब्बत की दुकान’ में नफ़रत ही नफ़रत है।’

वहीं मस्जिद को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी बयान आया है। उन्होंने कहा कि मस्जिद का अवैध निर्माण दुर्भाग्यपूर्ण है, इस पर तुरंत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। वहीं सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश में सभी धर्मों के लोगों का सम्मान है। कानून को हाथ में लेने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। सीएम ने कहा कि इसकी जांच चल रही है कि किन कारणों के चलते ऐसी स्थिति पैदा हुई है। मगर सवाल अन्धुरा अभी भी है कि जब खुद कांग्रेस विधायक और सुक्खू सरकार में राज्य मंत्री ऐसे मामले में तुल देते है जिसकी शुरुआत महज़ दो लोगो के एक झगड़े से हुई तो फिर कांग्रेस आखिर किस तरीके से भाजपा पर हिन्दू मुस्लिम सियासत का आरोप लगाती रहती है, क्योकि यही सियासत तो उनकी सरकार में उनके मंत्री कर रहे है…!

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