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संभल शाही जामा मस्जिद समिति के सदर का आरोप ‘पुलिस ने खुद अपनी गाड़ियाँ जलाया और गोलियां चलाया’, पुलिस ने कहा ‘सदर का बयान राजनीत प्रेरित और आरोप झूठे’

तारिक खान

डेस्क: शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा में चार मुसलमानों की मौत हो गई है। एक ओर पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने भीड़ के खिलाफ किसी भी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। वहीं, दूसरी ओर मस्जिद की प्रबंध समिति के अध्यक्ष का कहना है कि उन्होंने खुद पुलिस को भीड़ पर गोलियां चलाते हुए देखा था।

मस्जिद की प्रबंध समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील जफर अली के इन आरोपों के बाद पुलिस के इस दावे पर सवाल उठने लगे हैं कि उन्होंने भीड़ पर किसी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया और लोगों को तितर-बितर करने के लिए सिर्फ आंसू गैस, लाठीचार्ज और रबर पैलेट गन का ही उपयोग किया है। मालूम हो कि अली द्वारा सोमवार (25 नवंबर) को एक संवाददाता सम्मेलन में ये आरोप लगाने के तुरंत बाद उन्हें पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया और उनके दावों का खंडन करने के लिए अपनी ओर से एक प्रेस वार्ता भी आयोजित की थी।

इसके बाद अली को घर जाने की इजाजत दे दी गई और पुलिस ने स्पष्ट किया कि उन्हें हिरासत में या गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है। ज्ञात हो कि 24 नवंबर की सुबह शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में अब तक चार मुस्लिम लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। पुलिस के मुताबिक, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ये पता चला है कि इन लोगों की मौत बंदूक की गोली लगने से हुई है। हालांकि, पुलिस का कहना है कि इन लोगों पर देशी हथियारों से हमला किया गया था। पुलिस ने जोर देकर कहा कि मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट के बाद सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन पुलिस ने इस पूरे मामले को ऐसा दिखाने की कोशिश की है कि भीड़ के सदस्यों ने अराजकता के दौरान एक-दूसरे पर गोली चलाई, जिसके चलते इन लोगों की मौत हुई।

इस मामले में अली ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘मैंने देखा कि पुलिस गोलियां चला रही थी। यह मेरे सामने ही हुआ। मेरी मौजूदगी में जनता की ओर से कोई गोली नहीं चलाई गई, पुलिस ने खुद की गाड़ियों में तोड़फोड़ की।’ अली ने यह भी आरोप लगाया कि घटना के दौरान पुलिस के पास देशी हथियार कट्टे भी थे और उन्होंने मस्जिद के पास खड़े अपने वाहनों में खुद तोड़फोड़ की और आग लगा दी। अली ने ये भी सवाल उठाया कि वे (प्रदर्शनकारी) एक दूसरे को क्यों मारेंगे? अगर उन्हें गोली चलानी ही थी, तो वे पुलिस पर गोली चलाते, जनता पर नहीं। यह सोचने वाली बात है।

वरिष्ठ वकील अली ने यह भी दावा किया कि वह उस समय मौके पर ही मौजूद थे जब उन्होंने मुरादाबाद के उप महानिरीक्षक, संभल के पुलिस अधीक्षक और संभल के जिला मजिस्ट्रेट को यह चर्चा करते हुए सुना कि भीड़ के खिलाफ गोली चलाने के आदेश पारित किए जाएं। हालांकि, संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई ने इन आरोपों से इनकार किया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई। उन्होंने कहा कि जब रबर की गोलियों से स्थिति नियंत्रण में आ गईं, तो हम गोलीबारी का सहारा क्यों लेंगे।

एसपी बिश्नोई ने कहा, ‘घटना के दौरान किसी भी समय पुलिस और भीड़ 100-150 मीटर से कम दूरी पर नहीं थी। यह कहना कि पुलिस वहां खड़ी थी और उन्हें करीब से गोली मारी और देशी पिस्तौल से गोली चलाई गई, अपने आप में एक सवाल खड़ा करता है। हम एक पेशेवर पुलिस बल हैं।’ उन्होंने कहा कि पुलिस और दंगा-नियंत्रण पुलिस के पास आंसू गैस हथियार और पंप एक्शन गन थी, उन्होंने इस आरोप को खारिज कर दिया कि पुलिस ने देशी हथियारों का इस्तेमाल किया था। अधिकारी ने इस आरोप से भी इनकार किया कि वह, उप महानिरीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट के साथ गोलीबारी के आदेश पर चर्चा कर रहे थे। बिश्नोई ने कहा, ‘किसी भी परिस्थिति में हम तीनों एक जगह पर नहीं थे।’ उन्होंने अली के इस आरोप को भी राजनीति से प्रेरित बताया कि पुलिस ने खुद अपने वाहनों में आग लगाई।

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