माही अंसारी
वाराणसी: किसी फिल्म का एक खुबसूरत नगमा है कि ‘न धर्म का हो बंधन’। नगमानिगार शायद इस नगमे में उस मुहब्बत और खुशियों को हर तरफ तकसीम करने की बात कहता है जो आपको मिलती है। एक तरफ जब आपसी इकराहियत की बाते किताबो तक ही सीमित रह गई है, वही दूसरी तरफ काफी ऐसे लोंग है, जो अपनी खुशियों में उनको भी शामिल करते है, जो छोटी छोटी खुशियों से भी महरूम रह जाते है।
ना नाम में मज़हब की तलाश और न ही उम्र की बंदिशे। कुछ नकाबपोश महिलाहो के साथ गुजरने वाले बच्चो को भी रोक कर उनको पटाखे और मिठाई का डब्बा वह दे रहे थे। बच्चो के चेहरे की खुशियों को देख कर एसआई पंकज पाण्डेय के चेहरे पर फुल जैसी कोमल खुशियाँ दिखाई दे रही था। हाल खुच ऐसे खुशियों के तकसीम का था कि जो भी उधर से गुज़र रहा था ठिठक कर रुक जाता और इस खुशियों के तक्सीमात उसके लबो पर मुस्कान ला देते थे। एक अरसा दराज़ के बाद ऐसे खुशियों को तकसीम करते हुवे किसी को मैंने देखा था।
न कैमरों की चमक के बीच शो-ऑफ़ और न हो हल्ला, मैंने धीरे से इस खुशियों के तक्सीमी लम्हात को अपने मोबाइल कैमरे में कैद किया। अचानक एसआई पंकज पाण्डेय की नज़र मेरे ऊपर पड़ी तो एक मिठाई का पैकेट जब मेरे तरफ किया तो मैंने उनके हाथो में दूसरा खुला मिठाई का डब्बा देखा और उसमे से एक छोटी मिठाई के डली उठा कर अपने मुह में डालते हुवे ‘हैप्पी दीपावली’ कहा। उन्होंने ने भी कोमल मुस्कान के साथ मुझे दीपावली मुबारक कहा और फिर दुबारा बच्चो के साथ मशगुल हो गये। मैंने भी अपने कदम अपने दफ्तर की तरफ बढाये और अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में शामिल हो गई।
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