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सांसद ओवैसी ने एएमयु पर आये फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुवे कहा ‘भारत के मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण दिन, मोदी सरकार को एएमयु की मदद करनी चाहिए’

तारिक खान

डेस्क: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुवे फैसले के दिन को मुस्लिम समाज के लिए एक महत्वपूर्ण दिन करार दिया है।

उन्होंने लिखा है, ‘यह भारत के मुसलमानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है। साल 1967 के फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को ख़ारिज कर दिया गया था जबकि वास्तव में वह अल्पसंख्यक दर्जा रखता था। अनुच्छेद 30 में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थानों को उस तरीके से स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार है जिसे वे उचित समझते हैं।’

ओवैसी आगे लिखते है कि ‘अल्पसंख्यकों के खुद को शिक्षित करने के अधिकार को बरकरार रखा गया है। मैं आज एएमयू के सभी छात्रों और फैकल्टी को बधाई देता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यूनिवर्सिटी को संविधान से पहले स्थापित किया गया था, या सरकार के कानून से स्थापित किया गया था। यदि इसे अल्पसंख्यकों ने स्थापित किया है तो यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है। बीजेपी की सारी दलीलें खारिज हो गई हैं।’

उन्होंने लिखा कि ‘बीजेपी ने इतने सालों तक एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध किया है। अब ये क्या करने जा रहे हैं? बीजेपी ने एएमयू और जामिया और यहां तक ​​कि मदरसा चलाने के हमारे अधिकार पर हमला करने का हर संभव प्रयास किया है। बीजेपी को आत्ममंथन करना चाहिए और सुधार करना चाहिए। मोदी सरकार को इस फैसले को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें एएमयू को मदद देनी चाहिए क्योंकि यह भी एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है।’

ओवैसी लिखते है कि ‘जामिया को प्रति छात्र तीन लाख रुपये मिलते हैं, एएमयू को प्रति छात्र 3.9 लाख रुपये मिलते हैं, लेकिन बीएचयू को प्रति छात्र 6.15 लाख रुपये मिलते हैं। जामिया और एएमयू ने राष्ट्रीय रैंकिंग में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। अगर इन विश्वविद्यालयों को सही तरीके से मदद दी जाए तो ये विश्व स्तर पर प्रख्यात हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए मोदी को उनके साथ भेदभाव करना बंद करना होगा। एएमयू का किशनगंज सेंटर पिछले कई सालों से बंद पड़ा हुआ है। इस पर भी तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए और केंद्र को जल्द से जल्द इस पर काम शुरू करना चाहिए।’

बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को साल 1967 के अपने उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था। हालांकि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं इसका फ़ैसला शीर्ष न्यायालय की एक रेगुलर बेंच करेगी।

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