तारिक आज़मी
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली तंजीम अन्जुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव ने आज अहल-ए-सुबह ज्ञानवापी मस्जिद से ताल्लुक रखने वाली कई तस्वीरो और वीडियो को शेयर करते हुवे दिल का दर्द बयान किया है। उन्होंने प्रशासनिक उपेक्षा के आरोप लगाते हुवे कहा है कि ‘जिन पर भरोसा था, उन्ही से धोखा मिला है।’ एसएम यासीन ने अपने सन्देश में कई गंभीर मुद्दे उठाये है।
उन्होंने कहा कि ’31 जनवरी 2024 को ऐसा ही हम मुसलमानों के साथ हुआ ज्ञानवापी मस्जिद में। जिस पर हमको भरोसा था, उन्ही से धोखा मिला। इस हक़ीक़त को जानने के लिए ही यह पोस्ट आप सब की नज़र है। जिस तरह हमारे साथ धोखा हुआ, वह सब बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देगा कि इसमें कौन कौन सी मुअज़िज़ हस्तियां शामिल हैं। किस तरह सम्पूर्ण घटनाक्रम हो रहे। धन और सम्पूर्ण प्रशासन, सीआरपीएफ सुरक्षा की अनदेखी कर रही थी।’
एएसआई सर्वे का ज़िक्र करते हुवे उन्होंने कहा कि ‘जैसा कि एएसआई सर्वे के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रही थी, कि दस फिट गहराई तक खुदाई कर रही थी। वर्जित औज़ारों जैसे बेलचा, फावड़ा, पंजा आदि परिसर में लाकर धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा था। लेकिन लिखित शिकायत के बावजूद प्रशासन, सीआरपीएफ एएसआई टीम के साथ सहयोगात्मक रवैय्या अपनाए हुए थी, जैसा कि संलग्न फोटो से ज़ाहिर है। सीआरपीएफ की मौजूदगी में एएसआई ने मस्जिद को बहुत नुकसान पहुंचाया है।’
बताते चले कि एएसआई सर्वे के दरमियान सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्वे हेतु कोई खुदाई नही करने का निर्देश दिया था। इसके अतिरिक्त जिला जज अदालत में खुद एएसआई ने हलफनामा दाखिल कर इस बात को कहा था कि सर्वे के दरमियाना कोई किसी प्रकार की खुदाई नही होगी। यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश देखे तो स्पष्ट होता है कि सर्वे के दरमियान एक खरोच भी मस्जिद में नही लगाया जा सकता था। मगर इन सबके बावजूद पूर्व में भी कई वीडियो और तस्वीरे मस्जिद कमेटी ने जारी किया था जिसमे खुदाई की बात ज़ाहिर हो रही थी। अन्दर जिन औजारों को ले जाने की मुमानियत थी, सर्वे के दरमियान मस्जिद कमेटी की जारी तस्वीर इस बात को ज़ाहिर करती थी कि अन्दर औज़ार गये थे। यही नही मस्जिद कमेटी ने एएसआई पर मस्जिद की मिट्टी और मलवे ले जाने का भी आरोप लगाया था।
एसएम यासीन ने अपने सन्देश में कहा है कि ‘1993 में मोहम्मद असलम उर्फ़ भूरे बनाम भारत सरकार आदि में होम सेक्रेट्री तथा जिलाधिकारी वाराणसी के आश्वासन एवं हलफनामा पर सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद के चारों ओर बैरिकेडिंग और मस्जिद की सुरक्षा में बैरिकेडिंग के अन्दर केन्द्रीय बल के तैनाती को मंज़ूरी दी थी। इस बैरिकेडिंग के बावजूद 1995 के सावन के सोमवार में अशोक सिंघल के नेतृत्व में मिट्टी बर्तन मे पानी मस्जिद में फेका गया। तब बैरिकेडिंग ऊंचा करने की ज़रुरत हुई। हमारी सहमति से 1997 में दूसरी ऊंची बैरिकेडिंग हुई। उसी समय एक वाद दखिल हुआ था, दक्षिण दिशा में रास्ते के लिए जिसे अदालत ने सुरक्षा के पहलू को ध्यान में रखते हुए खारिज कर दिया था। हमें आशंका थी कि इस समय प्रशासन और सीआरपीएफ की मदद से तहखाने के साथ छेडछाड होगी।’
एसएम यासीन ने कहा कि ‘इसी कारण हमने 15/11/23 को ज़िलाधिकारी, कमांडेंट सीआरपीएफ, डीसीपी सुरक्षा को पत्र लिखकर आशंका जताई थी। केवल ज़िलाधिकारी ने हमे लिखित आश्वासन दिया था कि न्यायिक आदेश को अंजुमन को आवगत कराने के पश्चात पालन कराया जाएगा। 31/1/24 के न्यायिक आदेश के बाद डीएम साहब कैमरा के सामने भी कहते देखे गए कि अभी न्यायालय ने सात दिन का समय दिया है। लेकिन किसी पर अधिकारी खरे नहीं उतरते, मुसलमानों के साथ विश्वासघात हुआ। पत्राचार और वीडियोज इस बात के गवाह है।’
एमएम यासीन ने अपने बयान में कहा है कि ‘इसके बावजूद रात को तमाम सुरक्षात्मक उपाय के होते हुए सीआरपीएफ की सहमति एवं सहयोग से मस्जिद के दक्षिण भाग की डबल बैरिकेडिंग काटकर सैकड़ों की तादाद मे हिन्दू अनुयायी, हिनदू अधिकारी, पुलिस-प्रशासन, सीआरपीएफ के जवान, अधिकारीगण बेसमेंट में दाखिल हुए। मंडलायुक्त अपने पुत्र के साथ जजमान के तौर पर पूजा मे रहे। प्रसाद वितरण हुआ। तत्कालीन सीपी, डीसीपी सुरक्षा, डीसीपी काशी ज़ोन भी रहे। गवाह के रूप में और प्रशासनिक अफसर अपने आप को हिन्दूअफसर साबित करने में व्यस्त थे।’
उन्होंने कहा कि ‘सीआरपीएफ की वर्दी पर कभी न मिटने वाला दाग़ लगगया। एएसआई टीम ने सैकड़ों गाड़ी, मलबा मिटटी, खनिज मस्जिद के अन्दर बाहर से खोद कर परिसर से बाहर ले गए। तमाम कंकड़ पत्थर रात के अंधेरे में मालखाने मे जमा कराया, जहां वादी-प्रतिवादी को जिलाधिकारी ने बुलाने की ज़रूरत भी नहीं समझी। तहखाना जब साफ हो चुका था, तो मंडलायुक्त की पूजा के लिए मूर्तियां कहां से लाई गई? क्या डीएम साहब या सीआरपीएफ के अधिकारी बताऐंगे?’
एसएम यासीन ने अपने जारी बयान में कहा ‘किस न्यायिक आदेश में बाहर से मूर्तियां लाकर पूजा कराने को कहा गया है। हमें मस्जिद में झाड़ू लाने पर भी पाबंदी है। अभी कुछ दिन पूर्व बन्दरों ने टिन गिराया, उसको ठीक करने से रोक दिया गया। एलआईयू सहित सभी सुरक्षा कर्मी रोकने पहुंच गए। गत कुछ वर्षों से मस्जिद की वार्षिक रंगाई पुताई मरम्मत हाई पावर कमेटी से इजाज़त के लिए रोक दिया गया है। सुना है बिना पावर के कोई हाई पावर कमेटी है, जिसमें यहां के मुस्लिम और मस्जिद विरोधी आधिकारी भी शामिल है। सारी सुरक्षा व्यवस्था एक मज़ाक बनकर रह गइ है।’
उन्होंने ‘सरकारी पैसो की बर्बादी’ का उदाहरण देते हुवे कहा कि ‘आगामी 31 जनवरी बरसी होगी। जब कानून के रक्षक भक्षक बन गए। किस्से फरियाद करें ? विधायक अपने साथियों के साथ गालियों के साथ मारने काटने की धमकी देता है, संत मस्जिद शहीद करने की धमकी देता है। कोई कार्रवाई नहीं। हम जवाब में जब कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो बहुत कुछ शहीद हो जाएगा तो सबके माथे पर बल पड़ जाता है। ऐसा ही होगा। सहन करने की एक सीमा होती है। अब सहन नहीं होता है।’
उन्होंने कहा कि ‘आज भी तहखाने में बहुत कुछ पुजारी, दर्शनार्थी, तमाम कथित चाक-चौबंद सुरक्षा का दावा के साथ पूजा सामग्री के नाम पर ऐसी सामग्री ले जा जा रहे है, जो घातक हो सकती है। अधिकारीगण, हाई पावर कमेटी के लोग मन्दिर दर्शन के लिए इकट्ठा होते है। ऐसी तिथियों का चुनाव किया जाता है, काम कम आनन्दित ज्यादा हो सकें। सरकारें ही मुस्लिम विरोधी हैं, वर्ना 31/1/24 के मुजरिम अभी तक अपने पदों पर बने न रहते। हो सकता है सर्वोच्च न्यायालय मे सुनवाई के दौरान इन सबका जवाब हमें मिल जाए।’