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संभल जामा मस्जिद प्रकरण: जाने क्या है मस्जिद का इतिहास और क्यों बोले मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता मसूद कि पूरी योजना के तहत विवाद पैदा किया जा रहा है

तारिक आज़मी

डेस्क: सदियों पुरानी संभल की शाही जामा मस्जिद इस वक्त कानूनी विवादों के बीच अचानक दो दिनों से आ गई है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दाखिल याचिका जिसमे शाही जामा मस्जिद को मंदिर होने का दावा किया गया है की सुनवाई के पहले ही दिन कोर्ट सर्वे का आदेश अदालत द्वारा देने और उसके चंद घंटो के बाद ही कोर्ट द्वारा आदेशित सर्वे के हो जाने के बाद से अचानक सदियों पुरानी यह मस्जिद सुर्खियों में आ गई है।

मस्जिद के आसपास भारी पुलिस बल तैनात है और आसपास किसी को आने नही दिया जा रहा है। मुस्लिम बहुल शहर संभल के केंद्र में एक ऊंचे टीले पर बनी शाही जामा मस्जिद आस-पास की सबसे बड़ी इमारत है। मस्जिद के मुख्य द्वार के सामने अधिकतर हिंदू लोग रहते हैं जबकि इसकी पिछली दीवार के चारों तरफ़ मुसलमान आबादी है। इस मस्जिद समिति का दावा है कि उन्हें वाद दाखिल होने की जानकारी तक हासिल नही हुई थी। सर्वे के पहले जिला प्रशासन ने जानकारी उपलब्ध करवाया है।

यह मामला अधिक चर्चा में इस कारण भी अचानक आया कि अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कई याचिकाकर्ताओं की तरफ़ से संभल के सिविल जज सीनियर डिवीज़न की अदालत में मंगलवार को ही वाद दायर किया था। विष्णु शंकर जैन वही वकील हैं जो वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी वकील हैं। इस पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अलावा दूसरे पक्ष के वकील मौजूद नहीं थे। मस्जिद समिति का कहना है कि इस वाद की उनको जानकारी तक नहीं थी। याचिका में हिंदू पक्ष का दावा है कि जहां ये विशाल मस्जिद बनी हैं वहां कभी हरिहर मंदिर हुआ करता था। वहीं मुसलमान पक्ष ने इन दावों को बेबुनियाद बताते हुए अदालत में दायर वाद को नया राजनीतिक विवाद पैदा करने और सुर्ख़ियां बटोरने की कोशिश बताया है।

मस्जिद समिति से जुड़े अधिवक्ता ज़फ़र अली का कहना है कि ‘अदालत परिसर में हमें कई भगवाधारी चहलक़दमी करते दिखे तो हमें शक हुआ कि कुछ हो रहा है लेकिन ये वाद दायर होने की जानकारी हमें नहीं दी गई। शाम को साढ़े पांच बजे के क़रीब संभल पुलिस की तरफ़ से बताया गया कि हमें मस्जिद परिसर पहुंचना है क्योंकि वहां अदालत के आदेश पर सर्वे होना है। इस धर्मस्थल के मस्जिद होने को लेकर कोई क़ानूनी विवाद नहीं है, हिंदू संगठन ज़रूर कभी-कभी इसे लेकर विवाद पैदा करते रहे हैं।’

सर्वे टीम मंगलवार शाम क़रीब छह बजे मस्जिद परिसर पहुंची थी। मस्जिद में सर्वे कार्रवाई की जानकारी होने के बाद स्थानीय सांसद ज़िया उर रहमान बर्क़ के अलावा कई और मुस्लिम नेता मस्जिद पहुंच गए थे। अधिवक्ता ज़फ़र अली बताते हैं, ‘मस्जिद में सामान्य रूप से नमाज़ पढ़ी जा रही है और किसी तरह का कोई तनाव नहीं है। एहतियात के तौर पर पुलिस बल तैनात हैं।’ वाद के मुताल्लिक ज़फर अली कहते है कि ‘हम क़ानूनी रूप से जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। ये विवाद बेवजह पैदा किया गया है और अदालत में यह टिक नहीं पाएगा।’

बताते चले कि यह मस्जिद पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में है और इस मस्जिद के निर्माण काल को लेकर काफी संशय है। लेकिन हिंदू पक्ष ने अदालत में दावा किया है कि इसे मुग़ल शासक बाबर के आदेश पर एक हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। हालांकि, संभल के इतिहास पर ‘तारीख़-ए-संभल’ किताब लिखने वाले मौलाना मोईद कहते हैं, ‘बाबर ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई थी, ये सही नहीं है कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। ये ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर ने लोधी शासकों को हराने के बाद 1526 में संभल का दौरा किया था। लेकिन बाबर ने जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था। बहुत संभव है कि इस मस्जिद का निर्माण तुग़लक काल में हुआ हो। इसकी निर्माण शैली भी मुग़ल काल से मेल नहीं खाती है।’

वैसे इस मस्जिद को लेकर इधर दरमियान हिदुवादी संगठनो के द्वारा इसको कल्कि मंदिर होने का दावा किया जाने लगा है। मगर इसको लेकर कभी कोई वाद दाखिल नही हुआ है। मुस्लिम पक्ष से जुड़े अधिवक्ता मसूद अहमद कहते हैं, ये वाद दायर कर इस मुसलमान धर्मस्थल को विवादित करने का प्रयास किया गया है। इस मस्जिद को लेकर अदालत में पहले से कोई विवाद नहीं है।’ सिविल जज ने भी अपने आदेश में कहा है कि अदालत में इसे लेकर कोई कैविएट (चेतावनी या शर्त) लंबित नहीं है।

हालांकि, संभल शहर में इस मस्जिद को लेकर पहले कई बार तनाव हुआ है। साल 1976 में मस्जिद के इमाम की हत्या कर दी गई थी जिसके बाद सांप्रदायिक तनाव हुआ था। 1980 में जब पड़ोसी शहर मुरादाबाद में सांप्रदायिक दंगे हुए तो उनकी आंच संभल तक भी पहुंची। अधिवक्ता मसूद अहमद कहते हैं, ‘ये हैरानी की बात है कि अदालत में मंगलवार दोपहर ये वाद दायर हुआ, बिना विपक्ष को सुने सर्वे करने का आदेश दे दिया गया और उसी दिन शाम को ही सर्वे भी हो गया जबकि रिपोर्ट देने के लिए 29 नवंबर तक का समय है। इससे ज़ाहिर होता है कि पूरी योजना के तहत ये विवाद पैदा किया जा रहा है।’

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