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संभल शाही जामा मस्जिद प्रकरण: पढ़े क्या हुआ अब तक और कैसा है माहोल, जाने हिन्दू पक्ष के दावो पर क्या कहते है मस्जिद के ज़िम्मेदार और क्या है एतिहासिक पक्ष, जाने जवाब ‘क्या बाबर ने बनवाया ये मस्जिद…?

तारिक आज़मी

डेस्क: अयोध्या की बाबरी मस्जिद उसके बाद बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद और फिर मथुरा की शाही ईदगाह के बाद अचानक ही संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हो गया है। विवाद के जड़ में सिर्फ एक नाम है, जो बाबर का है। मुग़ल शासक बाबर के द्वारा संभल की शाही मस्जिद एक मंदिर तोड़ कर बनवाया गया है इसका दावा होने लगा। ऐसा दावा पहली बार उभरा और पहली बार अदालत की सीधे चौखट पर जा पंहुचा।

अक्सर चर्चाओं में मस्जिद में मंदिर होने का दावा करने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन संभल आते है और 19 नवम्बर को एक याचिका सिविल कोर्ट में दाखिल करते है कि बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाया था और इस मस्जिद को हमारे हवाले किया जाए। याचिका में सर्वे की मांग किया गया था। अगर मस्जिद कमेटी के अधिवक्ताओं और कमेटी के दावो की माने तो जिस दिन यह याचिका दाखिल हुई उसी दिन अदालत ने इस संवेदनशील मुद्दे पर कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करके शाम होते होते आदेश दिया कि कोर्ट कमीशन अपनी रिपोर्ट एक सप्ताह में जमा करे।

अदालत में दाखिल इस याचिका और इसके ऊपर हुवे आदेश की जानकारी मस्जिद कमेटी का कहना है कि उनको नहीं थी। जानकारी प्रशासन जब सर्वे टीम लेकर आया तब हुई। आदेश होने के चंद घंटो के भीतर ही प्रशासन पूरी मुस्तैदी दिखाता है और आदेश का पालन करने संभल मस्जिद पर कोर्ट कमिश्नर के साथ पहुच जाता है। 19 नवम्बर को याचिका दाखिल हुई, उसी दिन सुनवाई हुई और उसी दिन आदेश और आदेश का अनुपालन सुनिश्वित हो गया। लगभग 2 घंटे तक सर्वे चला और सब कुछ शांत था। पूरा इलाका छावनी में तब्दील था।

इसके बाद रविवार 24 नवम्बर को एडवोकेट कमिश्नर की टीम दुबारा सर्वे के लिए मस्जिद जाती है। वायरल होते वीडियो इस बात की गवाही दे रहे है कि एडवोकेट कमिश्नर के साथ चल रहे विष्णु शंकर जैन के पीछे चलने वाली भीड़ ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रही थी। इसके बाद मौके पर विवाद शुरू हुआ और फिर पथराव हुआ। पुलिस ने लाठियां, आंसू गैस के गोले और गोलियों से इस उपद्रव को शांत करवाया, जिसमे 4 नवजवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस बवाल के दौरान पुलिस अधीक्षक के पीआरओ के पाँव में गोली लगी है, एक सीओ को छर्रे लगे है और 15-20 पुलिसकर्मी घायल हुवे है।

मुरादाबाद कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया, ‘शुरुआत में सब कुछ ठीक था। लगभग दो घंटे तक ठीक-ठाक सर्वे हुआ, कोई दिक्कत नहीं हुई। इस दौरान वहां भीड़ जमा हो गई। पहले लोगों ने नारेबाजी की, इसके कुछ देर बाद पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने भीड़ को मौके से हटाया। लोग मस्जिद परिसर तक नहीं पहुंच पाए। 11 बजे के बाद जब टीम सर्वे करके निकली तो भीड़ ने खूब पथराव करना शुरू कर दिया।’

उन्होंने आगे कहा कि ‘तीन तरफ से पथराव हो रहा था। पुलिस ने उसके लिए बल प्रयोग किया ताकि सुरक्षित रूप से सर्वे टीम को निकाला जा सके। आंसू गैस के गोले भी छोड़े और प्लास्टिक बुलेट्स का भी इस्तेमाल किया गया। वहां पर तीन तरफ से तीन ग्रुप थे, इसी बीच गोली चली। गोली कौन से ग्रुप ने किस पर चलाई, ये कैसे हुआ।।। लेकिन जो गोली चली उसमें एसपी के पीआरओ के पैर में गोली लगी।’

उन्होंने बताया कि ‘हंगामे के दौरान डिप्टी कलेक्टर का पैर फ्रैक्चर हो गया। CO साहब को छर्रा लगा है। करीब 15-20 जवान घायल हुए हैं।’ सुबह साढ़े सात बजे से लेकर 11 बजे तक चले इस सर्वे के बाद एडवोकेट कमिश्नर का सर्वे पूरा हो गया। पूरे सर्वे की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई गई है। अब इस मामले में एडवोकेट कमिश्नर 29 नवबंर को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे।

एड0 हरि शंकर जैन, पार्थ यादव, महंत ऋषिराज गिरि सहित 8 लोगों की ओर से सिविल कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हिंदू पक्ष की ओर दायर याचिका में दावा किया गया है कि जहां पर जामा मस्जिद है, वही भगवान महादेव और भगवान विष्णु का सदियों पुराना श्री हरिहर मंदिर है, जो भगवान कल्कि को समर्पित है। बताते चले कि संभल शहर के बीचों-बीच मोहल्ला कोट में स्थित इस जामा मस्जिद के आगे तरफ हिंदू आबादी और पीछे की तरफ मुस्लिम आबादी रहती है। अब सवाल ये बड़ा उठता है कि आखिर किस आधार पर यहाँ सदियों पुराने मंदिर की बात कहा जा रहा है। याचिका में बताया गया है कि यह इमारत एक संरक्षित स्मारक है जिसे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत 22 दिसंबर 1920 को अधिसूचित किया गया था। इसके साथ ही कहा गया है कि यह राष्ट्रीय महत्व की इमारत भी है।

याचिका में एएसआई पर ‘संबंधित संपत्ति पर नियंत्रण रखने में विफल’ रहने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा गया है कि ‘एएसआई के अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं और वे मुस्लिम समुदाय लोगों द्वारा डाले गए दबाव के आगे झुक गए हैं।’ याचिका में कहा गया है कि वादी हिंदू मूर्ति पूजक और भगवान शिव और विष्णु के उपासक हैं और ये उनका अधिकार है कि वो कल्कि अवतार के धर्मस्थल में प्रार्थना कर सकें। याचिकाकर्ताओं ने इस मस्जिद को सभी के लिए खोलने और यहां सभी के आने-जाने की व्यवस्था करने की मांग की है।

इस मामले में मस्जिद कमेटी ने इसको एक पोलिटिकल स्टंट बताते हुवे दावा किया है कि उन्हें मस्जिद को लेकर दायर याचिका के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कोर्ट के आदेश के बाद ही जिला पुलिस और प्रशासन की तरफ से सर्वे को लेकर जानकारी दी गई। अधिवक्ता मसूद अहमद कहते हैं, ‘बाहर के लोगों ने यहां आकर दावा दायर किया है। यहां इस तरह की कोई बात नहीं है। इस तरह से हर मस्जिद के अंदर मंदिर और हर मंदिर के अंदर मस्जिद ढूंढना कोई अच्छी बात नहीं है। ये एक पॉलिटिकल स्टंट है। देश संविधान और कानून से चलता है। एक ही दिन दावा दायर किया गया और उसी दिन सर्वे कमीशन करवा दिया गया। पता नहीं क्या जल्दी थी?”\’

किस आधार पर हिन्दू पक्ष का है दावा

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन दावा करते हुए कहते हैं कि बाबरनामा से लेकर आइन-ए-अकबरी और ASI की रिपोर्ट में ये बात है कि यहां पहले हिंदू मंदिर हुआ करता था, जिसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। याचिका में दावा करते हुए कहा गया है, ‘1527-28 में बाबर सेना के लेफ्टिनेंट हिंदू बेग ने संभल में श्री हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। मुसलमानों ने मंदिर की इमारत पर कब्जा कर लिया और उसे मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करने लगे।’

याचिका में बाबरनामा के हवाले से दावा किया गया है कि ‘933 हिजरी में उसने (हिंदू बेग) एक हिन्दू मंदिर को मस्जिद संभल में परिवर्तित कर दिया था; यह बाबर के आदेश पर किया गया था और इसकी स्मृति में एक शिलालेख है जो आज भी मस्जिद पर मौजूद है।’ याचिकाकर्ताओं ने अपने दावे के पक्ष में अकबर के शासनकाल में फारसी भाषा में लिखे गए अबुल फजल के इतिहास ‘आइन-ए-अकबरी’ का भी हवाला दिया है। हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में भारत सरकार के गृह मंत्रालय, सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत के पुरातत्व सर्वे, पुरातत्व सर्वे के मेरठ जोन के अधीक्षक, संभल के जिलाधिकारी और मस्जिद की प्रबंधन समिति को प्रतिवादी बनाया गया है।

मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के सभी दावों को खारिज कर दिया है। मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष और अधिवक्ता जफर अली ने कहा, ‘हिंदू पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि वहां पर मंदिर था। हमारे पास सारा प्रमाण, सारे सबूत, सारे साक्ष्य मौजूद हैं। हम इसको कोर्ट में प्रूव करेंगे। मस्जिद को लेकर इस तरह की दावेदारी पहले कभी नहीं हुई है। ऐसा पहली बार हुआ है। यहां के हमारे हिंदू भाई भी इसको लेकर नाराज हैं कि कहां से लोग आकर यहां दावेदारी कर रहे हैं।’

बात अगर अन्य तथ्यों की करे तो लेखक बृजेन्द्र मोहन शंखधर ने अपनी किताब ‘संभल: एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण’ में बाबर या हिंदू बेग द्वारा मस्जिद निर्माण की बात को सिरे से खारिज करते हुवे लिखा है कि ‘अपने शासनकाल की शुरुआत में बाबर ने खुद संभल का दौरा किया था। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने संभल में जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था, जिसे गलती से उनके नाम से जाना जाता है। जो मस्जिद अभी भी मौजूद है, उसका निर्माण अमीर हिंदू बेग ने भी नहीं करवाया था, जिसे कुछ इतिहासकारों ने इसका निर्माता बताया है। इस भव्य मस्जिद में लिए शिलालेख अब तक की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जालसाजी हैं।’

बृजेन्द्र मोहन शंखधर लिखते हैं, ‘यह मानना ​​असंभव है कि बाबर ने ही विष्णु मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाई थी, क्योंकि मुस्लिम शासन के इतने शताब्दियों के दौरान विष्णु मंदिर को इतने ऊंचे स्थान पर बने रहने की अनुमति कभी नहीं दी गई होगी।’ इसके साथ ही वो लिखते हैं कि एएसआई की 1879 की रिपोर्ट ने बाबर की संभल मस्जिद के मिथक को स्पष्ट रूप से तोड़ दिया है। यही नहीं बीबीसी ने इपनी एक रिपोर्ट में संभल के इतिहास पर ‘तारीख-ए-संभल’ किताब लिखने वाले मौलाना मोईद से बातचीत प्रकाशित किया है, जिसमे वह कहते हैं, ‘बाबर ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई थी, ये सही नहीं है कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था।’ मौलाना मोईद कहते हैं, ‘ये ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर ने लोधी शासकों को हराने के बाद 1526 में संभल का दौरा किया था। लेकिन बाबर ने जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था।” उनके मुताबिक, बहुत संभव है कि इस मस्जिद का निर्माण तुगलक काल में हुआ हो। क्योंकि इसकी निर्माण शैली भी मुगल काल से मेल नहीं खाती है।’

प्रिंसिपल एम0 उसमान की किताब ‘कठेर रूहेलखंड पश्चिमी भाग (600 ले 1857 ई।)’ में भी इस बात का जिक्र है कि तुगलक काल में संभल में एक मस्जिद का निर्माण हुआ था। किले के अंदर और संभल क्षेत्र के किसी भी स्थान पर इस मस्जिद के निर्माण से पहले पूर्ण रूप से कोई पक्का भवन नहीं था और न ही किसी पक्के भवन के अवशेष थे। अपनी किताब में एम0 उसमान लिखते हैं, ‘पूर्व तुगलक सुलतान (नासिरुद्दीन महमूद) ने संभल में पुराने किले के पश्चिमी भाग में पक्की ईंटों से उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया, जहां वर्तमान में जामा मस्जिद स्थित है।’

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