तारिक आज़मी
डेस्क: अयोध्या की बाबरी मस्जिद उसके बाद बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद और फिर मथुरा की शाही ईदगाह के बाद अचानक ही संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हो गया है। विवाद के जड़ में सिर्फ एक नाम है, जो बाबर का है। मुग़ल शासक बाबर के द्वारा संभल की शाही मस्जिद एक मंदिर तोड़ कर बनवाया गया है इसका दावा होने लगा। ऐसा दावा पहली बार उभरा और पहली बार अदालत की सीधे चौखट पर जा पंहुचा।
अदालत में दाखिल इस याचिका और इसके ऊपर हुवे आदेश की जानकारी मस्जिद कमेटी का कहना है कि उनको नहीं थी। जानकारी प्रशासन जब सर्वे टीम लेकर आया तब हुई। आदेश होने के चंद घंटो के भीतर ही प्रशासन पूरी मुस्तैदी दिखाता है और आदेश का पालन करने संभल मस्जिद पर कोर्ट कमिश्नर के साथ पहुच जाता है। 19 नवम्बर को याचिका दाखिल हुई, उसी दिन सुनवाई हुई और उसी दिन आदेश और आदेश का अनुपालन सुनिश्वित हो गया। लगभग 2 घंटे तक सर्वे चला और सब कुछ शांत था। पूरा इलाका छावनी में तब्दील था।
उन्होंने आगे कहा कि ‘तीन तरफ से पथराव हो रहा था। पुलिस ने उसके लिए बल प्रयोग किया ताकि सुरक्षित रूप से सर्वे टीम को निकाला जा सके। आंसू गैस के गोले भी छोड़े और प्लास्टिक बुलेट्स का भी इस्तेमाल किया गया। वहां पर तीन तरफ से तीन ग्रुप थे, इसी बीच गोली चली। गोली कौन से ग्रुप ने किस पर चलाई, ये कैसे हुआ।।। लेकिन जो गोली चली उसमें एसपी के पीआरओ के पैर में गोली लगी।’
याचिका में एएसआई पर ‘संबंधित संपत्ति पर नियंत्रण रखने में विफल’ रहने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा गया है कि ‘एएसआई के अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं और वे मुस्लिम समुदाय लोगों द्वारा डाले गए दबाव के आगे झुक गए हैं।’ याचिका में कहा गया है कि वादी हिंदू मूर्ति पूजक और भगवान शिव और विष्णु के उपासक हैं और ये उनका अधिकार है कि वो कल्कि अवतार के धर्मस्थल में प्रार्थना कर सकें। याचिकाकर्ताओं ने इस मस्जिद को सभी के लिए खोलने और यहां सभी के आने-जाने की व्यवस्था करने की मांग की है।
किस आधार पर हिन्दू पक्ष का है दावा
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन दावा करते हुए कहते हैं कि बाबरनामा से लेकर आइन-ए-अकबरी और ASI की रिपोर्ट में ये बात है कि यहां पहले हिंदू मंदिर हुआ करता था, जिसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। याचिका में दावा करते हुए कहा गया है, ‘1527-28 में बाबर सेना के लेफ्टिनेंट हिंदू बेग ने संभल में श्री हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया था। मुसलमानों ने मंदिर की इमारत पर कब्जा कर लिया और उसे मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करने लगे।’
याचिका में बाबरनामा के हवाले से दावा किया गया है कि ‘933 हिजरी में उसने (हिंदू बेग) एक हिन्दू मंदिर को मस्जिद संभल में परिवर्तित कर दिया था; यह बाबर के आदेश पर किया गया था और इसकी स्मृति में एक शिलालेख है जो आज भी मस्जिद पर मौजूद है।’ याचिकाकर्ताओं ने अपने दावे के पक्ष में अकबर के शासनकाल में फारसी भाषा में लिखे गए अबुल फजल के इतिहास ‘आइन-ए-अकबरी’ का भी हवाला दिया है। हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में भारत सरकार के गृह मंत्रालय, सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत के पुरातत्व सर्वे, पुरातत्व सर्वे के मेरठ जोन के अधीक्षक, संभल के जिलाधिकारी और मस्जिद की प्रबंधन समिति को प्रतिवादी बनाया गया है।
मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के सभी दावों को खारिज कर दिया है। मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष और अधिवक्ता जफर अली ने कहा, ‘हिंदू पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि वहां पर मंदिर था। हमारे पास सारा प्रमाण, सारे सबूत, सारे साक्ष्य मौजूद हैं। हम इसको कोर्ट में प्रूव करेंगे। मस्जिद को लेकर इस तरह की दावेदारी पहले कभी नहीं हुई है। ऐसा पहली बार हुआ है। यहां के हमारे हिंदू भाई भी इसको लेकर नाराज हैं कि कहां से लोग आकर यहां दावेदारी कर रहे हैं।’
बृजेन्द्र मोहन शंखधर लिखते हैं, ‘यह मानना असंभव है कि बाबर ने ही विष्णु मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाई थी, क्योंकि मुस्लिम शासन के इतने शताब्दियों के दौरान विष्णु मंदिर को इतने ऊंचे स्थान पर बने रहने की अनुमति कभी नहीं दी गई होगी।’ इसके साथ ही वो लिखते हैं कि एएसआई की 1879 की रिपोर्ट ने बाबर की संभल मस्जिद के मिथक को स्पष्ट रूप से तोड़ दिया है। यही नहीं बीबीसी ने इपनी एक रिपोर्ट में संभल के इतिहास पर ‘तारीख-ए-संभल’ किताब लिखने वाले मौलाना मोईद से बातचीत प्रकाशित किया है, जिसमे वह कहते हैं, ‘बाबर ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई थी, ये सही नहीं है कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था।’ मौलाना मोईद कहते हैं, ‘ये ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर ने लोधी शासकों को हराने के बाद 1526 में संभल का दौरा किया था। लेकिन बाबर ने जामा मस्जिद का निर्माण नहीं करवाया था।” उनके मुताबिक, बहुत संभव है कि इस मस्जिद का निर्माण तुगलक काल में हुआ हो। क्योंकि इसकी निर्माण शैली भी मुगल काल से मेल नहीं खाती है।’
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