तारिक खान
प्रयागराज: जब उच्च अदालतों के जज ही सम्प्रदाय के मुद्दे पर बहुसंख्यकवाद और अल्पसंख्यक वाद की बाते करने लगे तो फिर निष्पक्षता जैसे शब्द बेइमानी जैसे लगते है। ऐसा ही वाक्या कल रविवार को विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुवे हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार द्वारा दिए गए भाषण के दरमियान दिखाई दिया, जिसमे उन्होंने सामान नागरिक आचार संहिता का समर्थन करते हुवे कहा कि भारत बहुसंख्यको के अनुसार चलेगा।
जस्टिस शेखर कुमार ने आगे कहा, ‘हम अपने बच्चों को जन्म से ही सहनशीलता और दया सिखाते हैं। हम उन्हें जानवरों और प्रकृति से प्यार करना सिखाते हैं। दूसरों के दर्द से हमें दुख होता है। लेकिन आप ऐसा महसूस नहीं करते। क्यों….। जब आप उनके सामने जानवरों को मारेंगे, तो आपका बच्चा सहनशीलता और दया कैसे सीखेगा?’
द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, उन्होंने भारत के मेजॉरिटी पर भी बात की। जस्टिस शेखर कुमार बोले, ‘मुझे ये कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि ये भारत है और ये अपने बहुमत की इच्छा के अनुसार चलेगा।’ हिंदुओं के रीति-रिवाज मानने और महिलाओं के सम्मान को लेकर उन्होंने कहा,
‘हम आपसे शादी करते समय अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने की अपेक्षा नहीं करते…। हम नहीं चाहते कि आप गंगा में डुबकी लगाएं…। लेकिन हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि आप देश की संस्कृति, देवताओं और महान नेताओं का अनादर न करें। आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते, जिसे हिंदू शास्त्रों और वेदों में देवी माना जाता है।‘
जस्टिस शेखर कुमार ने ‘समान नागरिक संहिता की संवैधानिक ज़रूरत’ पर बात की। इस दौरान जस्टिस शेखर कुमार का कहना था, ‘आप चार पत्नियां रखने, हलाला करने या तीन तलाक़ करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते। महिलाओं को भरण-पोषण देने से मना करना और दूसरे तरह के अन्याय काम नहीं करेंगे। शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि पीड़ित तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार ने कुछ लोगों के सामने घुटने टेक दिए थे।’
जस्टिस शेखर कुमार ने आगे कहा कि हिंदू समाज ने सती और बाल विवाह समेत कई बुरी प्रथाओं से छुटकारा पा लिया है। उन्होंने कहा कि ग़लतियों को स्वीकार करने और समय रहते उन्हें सुधारने में कुछ भी ग़लत नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदू होने के नाते वो अपने धर्म का सम्मान करते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अन्य धर्मों या आस्थाओं के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना है। युसीसी पर बात करते हुए उन्होंने कहा,
सिर्फ़ आरएसएस, वीएचपी या हिंदू ही समान नागरिक संहिता की वकालत नहीं करते। देश की आला अदालत भी इसका समर्थन करती है। हालांकि, उन्होंने आगे ये भी कहा कि उन्होंने जो कहा वह किसी खास धर्म के लिए नहीं था। उन्होंने कहा, यह हम सभी पर लागू होता है। हर धर्म को ख़ुद ही सभी ग़लत प्रथाओं से दूर रहना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो देश अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लाएगा।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में अपना शताब्दी वर्ष मनाएगा। उन्होंने ये भी बताया कि किस तरह संघ परिवार और उसकी शाखा विश्व हिन्दू परिषद देश के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम कर रही है। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की भी सराहना की। उन्होंने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट के जज के तौर पर ये बातें कहने पर उनसे कोई सवाल नहीं कर सकता। क्योंकि वो कानून की बात कर रहे हैं और मीडिया इस भाषण में जो चाहे छाप सकता है। कार्यक्रम में जस्टिस दिनेश पाठक भी पहुंचे थे। हालांकि, उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन तो किया, लेकिन वहां कोई भाषण नहीं दिया।
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