तारिक खान
डेस्क: संभल जामा मस्जिद के विवादास्पद सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा की न्यायिक जांच का आदेश उत्तर प्रदेश सरकार ने दिया। यह फैसला गुरूवार की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई के ठीक पहले देर रात प्रदेश सरकार ने लिया है। इस जांच हेतु उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है।
इन आरोपों के कारण इस न्यायिक आयोग के द्वारा दी गई रिपोर्ट पर सब कुछ साफ़ स्थिति के बारे में बताये जाने पर संशय उठा दिया है। ज्ञात हो कि इस हिंसा में पांच मुसलमानों की मौत होने का आरोप विपक्ष लगा रहा है। लेकिन सरकार ने केवल चार लोगों की मौत की बात ही स्वीकार की है। वहीं, घटना के दौरान कई पुलिस कर्मी भी घायल हो गए थे और कुछ वाहनों को आग में आग लगा दी गई, तो कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दी गई थीं। आयोग को दो महीने का वक्त अपनी रिपोर्ट देने के लिए दिया गया है। जिसमे न्यायिक आयोग अपनी जांच चार बिन्दुओ पर करेगी।
इन सवालों के जवाब भी अभी बाकी हैं कि जब अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर को रिपोर्ट जमा करने के लिए 29 नवंबर तक कम से कम पूरे नौ दिन – का समय दिया था, तो अदालत के आदेशों के तुरंत बाद उन्हें सर्वेक्षण शुरू करने के लिए किसने प्रेरित किया? क्या प्रशासन ने स्थानीय धार्मिक समुदायों को विश्वास में लेने के लिए आवश्यक कदम उठाए, यह देखते हुए कि मस्जिद मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है, या स्थानीय आबादी को सर्वेक्षण के उद्देश्य के बारे में सूचित करने के लिए कोई शांति बैठकें आयोजित कीं? यह देखते हुए कि यह विषय सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील है, एडवोकेट कमिश्नर ने दूसरा सर्वेक्षण क्यों किया? यदि अधिवक्ता आयुक्त को रात के समय में सर्वेक्षण करने की सीमाओं के बारे में पता था, तो इसे उसी दिन जल्दबाजी में क्यों शुरू किया गया?
पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए केवल रबर की गोलियां और आंसू गैस छोड़ी और लाठीचार्ज किया। पुलिस ने यह भी दावा किया कि बंदूक की गोली से मारे गए चार लोगों को देशी हथियारों से मारा गया था, जिससे पता चलता है कि भीड़ के सदस्यों ने एक-दूसरे पर गोली चलाई होगी। इस मामले में एपीसीआर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में मांग की है कि पुलिस या राज्य पदाधिकारियों द्वारा कथित तौर पर किए गए ‘अपराधों और अत्याचारों’ की सभी शिकायतें तुरंत दर्ज की जाएं और इसकी जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में एक स्वतंत्र जांच एजेंसी या टीम द्वारा हो।
न्यायिक जांच के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फैजाबाद से सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा कि यह जांच ‘मामले को ठंडे बस्ते में डालने’ और ‘लोगों के दिमाग को भटकाने’ के लिए घोषित की गई है। प्रसाद ने आगे कहा, ‘यह खुला तथ्य है कि गोलियां चलीं, लोग मरे और दर्जनों घायल हुए। इसमें ऐसी क्या खास बात है कि यह मामला किसी आयोग को दिया जाना चाहिए? यह सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती। यह वह सरकार है जिसने चीजों को खराब कर दिया है।’
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