निलोफर बानो
डेस्क: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ के उद्घाटन के दौरान आज कहा कि ‘मंदिर-मस्जिद के रोज़ नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं।’
भागवत के भाषण की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक्त देश में संभल, मथुरा, काशी जैसे कई जगहों की मस्जिदों के प्राचीन समय में मंदिर होने के दावे किए गए हैं। इनके सर्वे की मांग हो रही है और कुछ मामले अदालतों में लंबित हैं। भागवत ने कहा, “हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाक़ी सब ग़लत, यह चलेगा नहीं…., अलग-अलग मुद्दे रहे तब भी हम सब मिलजुल कर रहेंगे। हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ़ न हो इस बात का ख्याल रखेंगे। जितनी श्रद्धा मेरी मेरी ख़ुद की बातों में है, उतनी श्रद्धा मेरी दूसरों की बातों में भी रहनी चाहिए।”
उन्होंने लिखा कि ‘लेकिन बदक़िसमती से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ही इसे कमज़ोर कर दिया। इसकी शुरुआत ज्ञानबाफी मस्जिद के मुक़दमे से हुई। हमारे मेंटेबिलिटी आर्डर 7 रूल 11 के मुक़दमे की सुनवाई नही हुई, एएसआई सर्वे की अनुमति दे दी। देर आये दुरूस्त आये की कहावत मौजूदा मुख्य न्यायाधीश महोदय की बेंच ने राहत दी। सर्वे रुका, मुक़दमात की बाढ़ रुकी,विवेकहीन निर्णय आने बन्द हुए।
एसएम यासीन ने कहा कि ‘ऐसे समय में भागवत जी के बयान के आ जाने से सौहार्द की बयार बहेगी और मुल्क में अमन-चैन भाईचारा क़ायम होगा। देश जल्द ही प्रगति की राह पर चलेगा।
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