तारिक खान
डेस्क: ज़ुल्म के खिलाफ मज़लूमो के साथ कंधे से कन्धा मिला कर उनको इन्साफ दिलवाने के लिए नतायश भी कभी कभी उठानी पड़ती है। मगर इन्साफ की आस नही छोड़ना चाहिए। मोआ’शरे में काफी ऐसे खिदमत-ए-खल्क करने वाले है जो मज़लूमो के हक़-ओ-हुकुक की आवाज़ बुलंद करते रहे है। ऐसे ही एक खिदमत-ए-खल्क करने वाले और मज़लूमो की लड़ाई लड़ने वाले है नदीम खान। समाज में दबे कुचले लोगो की आवाज़ को बुलंद करने के मशहूर नदीम फिलहाल नतायश के दौर से गुज़र रहे है। नदीम खान एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के राष्ट्रीय महासचिव हैं, जो मानवाधिकारों के लिए काम करने वाला एक राष्ट्रीय स्तर प्रसिद्ध संगठन है।
सोशल मीडिया के उस कैंपेन का नतीजा ये रहा कि 30 नवंबर, 2024 शाम 5 बजे दिल्ली के शाहीनबाग पुलिस स्टेशन के एसएचओ समेत चार पुलिसकर्मी बेंगलुरु में नदीम खान के भाई के निजी आवास पर पहुंचे, जहां पर नदीम खान अपने परिवार के साथ मौजूद थे। वहां पर बिना किसी वारंट या नोटिस के उन्हें जबरन हिरासत में लेने का प्रयास किया गया। शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक वो पुलिसकर्मी घर की पहली मंजिल के हॉल में बैठे रहे और नदीम को ‘अनौपचारिक हिरासत’ में ‘स्वेच्छा से’ उनके साथ दिल्ली आने के लिए मजबूर करते रहे।
यह सब कथित तौर पर उसी दोपहर दिल्ली में शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर (0280/2024,) में जांच के लिए किया गया था। ज्ञात रहे ये एफआईआर शाहीन बाग दिल्ली में 30 नवंबर को ही दोपहर 12:48 बजे दर्ज की गई और एकदम फुर्ती दिखाते हुए संबंधित पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारी शाम 5 बजे नदीम के भाई के घर बेंगलुरु भी पहुंच गए। पुलिसकर्मी बहुत जल्दबाजी में बिना धारा 35(3) के तहत नोटिस जारी किए या गिरफ्तारी वारंट के रूप में कोई अधिकार लिए बिना उनके बेंगलुरु के घर आए और नदीम खान पर अपने साथ दिल्ली चलने के लिए लगातार दबाव बनाते रहे।
नदीम खान और उनके परिवार को 5:45 घंटे तक परेशान करने के बाद रात 10:45 बजे अधिकारियों ने बीएनएस की धारा 35(3) के तहत एक नोटिस चिपकाया, जिसमें उनको छह घंटे के भीतर शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा। नदीम खान के खिलाफ धारा 196, 353 (2) और 61 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। ज्ञात रहे इन सभी अपराधों के लिए सजा 3 साल से कम है और अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के जजमेंट और साथ ही बीएनएसएस की धारा 35 के अनुसार, कानून नदीम की मौजूदा एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी को रोकता है, क्योंकि सजा 7 साल से कम है।
इसके बावजूद शाहीन बाग थाने के एसएचओ और अन्य पुलिस अधिकारियों ने नदीम खान और उनके परिवार के सदस्यों को आपराधिक रूप से धमकाना जारी रखा, बिना किसी उचित प्रक्रिया के उन्हें दिल्ली आने के लिए मजबूर करते रहे। इसके पहले इस एफआईआर से पहले 29 नवंबर, 2024 को लगभग 9 बजे, 20-25 अधिकारी बिना किसी नोटिस के, बिना किसी एफआईआर की कॉपी के, बिना किसी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नंबरों के माध्यम से संपर्क करने या अपने कार्यों के लिए कानूनी औचित्य प्रदान किए बिना दिल्ली में एपीसीआर के ऑफिस पहुंचे थे। चूंकि रात में कार्यालय बंद था, इसलिए उन्होंने सुरक्षा गार्ड से एपीसीआर के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान और संगठन के अन्य सदस्यों और कर्मचारियों के बारे में पूछताछ की।
एफआईआर होने से पहले ही 20 पुलिस अधिकारियों का एपीसीआर कार्यालय में आना उनकी दुर्भावनापूर्ण मंशा को दर्शाने के लिए काफी है। 30 नवंबर की सुबह कुछ पुलिस अधिकारी वापस लौटे और एपीसीआर के पदाधिकारियों के बारे में पूछताछ की। एपीसीआर का कहना है कि जब इस पूछताछ के आधार के बारे में पूछा गया तो शाहीन बाग थाने के हेड कांस्टेबल योगेश ने कार्यालय में मौजूद वकीलों को जानकारी देने से इनकार कर दिया। आरोप है कि हेड कांस्टेबल ने वकीलों के साथ दुर्व्यवहार भी किया और उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। एपीसीआर का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील भी पुलिस की छापेमारी के कारणों के बारे में पूछने के लिए शाहीन बाग थाने गए, लेकिन उन्हें कोई उचित जवाब नहीं मिला।
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