तारिक खान
डेस्क: सामाजिक कार्यकर्ता और योजना आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा हमीद ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने मनमोहन सिंह को याद करते हुए लिखा है, ”डॉ। मनमोहन सिंह के निधन की ख़बर ने मुझे स्तब्ध कर दिया है। ऐसा लगता है कि मेरे अंदर की सांसें थम गई हैं।”
उन्होंने लिखा , ‘डॉ0 सिंह से दो दशक की जान-पहचान और नज़दीकी के बाद आज अचानक मेरे समेत पूरे भारत और दुनिया के सामने एक शून्य आ खड़ा हुआ है। बहुत सारे लोगों को आज इस बात का अहसास होगा कि आख़िर वो भारत के लिए क्या थे। मैं उनके साथ अपने निजी अनुभवों को साझा कर रही हूं। पाठक इसे पढ़ कर एक बड़े फलक पर चीजों को देख पाएंगे।’
सैयदा हमीद ने लिखा, ‘योजना आयोग में अर्थशास्त्रियों और प्रशासकों से घिरी मैं अपने अपर्याप्त ज्ञान को लेकर बेहद परेशान थी। मुझे सिर्फ लिखना आता था और मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता थी। दस साल तक मैं योजना भवन में सिर्फ एक मात्र महिला सदस्य थी। लेकिन इस दौरान जिस एक शख़्स ने मेरी मदद की और मेरी बात सुनी वो थे योजना आयोग के अध्यक्ष डॉ। मनमोहन सिंह। उन्होंंने फील्ड से भेजी मेरी कुछ रिपोर्टों को देखा। इन्हें उनके पास योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने भेजा था।’
सैयदा हमीद लिखती हैं, ‘डॉ। सिंह बेहद कम बोलते थे। बेहद नपे-तुले अंदाज़ में। उनके कुछ शब्द ही मेरे दिल को छू गए। उन्होंंने कहा था कि बाहर निकलिए और देश में घूमिये, इसे पहचानिए। जो देखिएगा उसे लिखिएगा। कुसुम नैयर ने ‘ब्लॉसम इन द डस्ट’ लिखा था। ये 1961 की बात है। अब इसे अपडेट करने की ज़रूरत है। मेरी लिखी 45 रिपोर्टों में से दो पर मुझे गर्व है क्योंकि ये नीतियों में बदलाव की वजह बनीं। गढ़चिरौली पर मेरी एक रिपोर्ट मोंटेक सिंह आहलूवालिया को भेजी गई। दस दिन बाद मेरे पास संदेश आया कि इस पर बात होनी चाहिए कि क्या रूरल हेल्थ मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। इससे पहले मेवात पर लिखी मेरी रिपोर्ट के बाद इसे मनरेगा के दायरे में लाया गया। गढ़चिरौली को नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत लाया गया। ये सब सिर्फ इसलिए हुआ कि मनमोहन सिंह ने मेरी बातों को सुना और इस पर गौर किया।’
उन्होंने लिखा है। ‘डॉ0 सिंह हमारे देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब के प्रतीक थे। 2008 का वक़्त था और मैं पीएम हाउस में गई थी। उस दौरान पाकिस्तान के चकवाल ज़िले के उनके गांव गाह से एक आदमी आया था।सीमा पार कर वो अपने स्कूल के दोस्त ‘मोहना’ से मिलने आया था। वो शख़्स उस गांव का पानी और मिट्टी लेकर आया था। अली राजा मोहम्मद और मनमोहन सिंह 1947 में अलग हुए थे लेकिन 2008 में वो फिर मिले। न सिर्फ ये इलाका बल्कि पूरा दक्षिण एशिया डॉ। सिंह का बेहद अपना था।’
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