तारिक आज़मी
डेस्क: नफरत की सियासत करना तो कोई उन बेरोजगार लोगो से सीखे जो व्हाट्सअप पर अपनी एक अलग युनिवेर्सिटी बना कर खुद उसके प्रोफ़ेसर बन बैठे है। ऐसे लोगो को नफरत फैलाने के लिए सिर्फ एक छोटा सा मौका चाहिए होता है और वह उस मौके की तलाश में रहते है और उको लेकर ऐसी फेक न्यूज़ बना डालते है कि आप खुद अचम्भे में रहेगे कि आखिर सच है क्या ?
हद खत्म तो तब हो जायेगी आपको सोचने की जब आपको पता चलेगा कि बीजेपी विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने भी ऐसा ही दावा किया है कि मुसलमानों ने इस प्राचीन मंदिर पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि ‘ये प्राचीन मंदिर था, अक्रान्ताओ के वंशजो ने कब्ज़ा कर इसे बंद कर दिया, मोदीजी योगी जी के राज में दशको बाद आज इस मंदिर की घंटियां बजी, देवी देवताओ की मूर्ति से धुल छटी, ये बाग्लादेश नहीं उत्तर प्रदेश का संभल था, जहा ये पाप हुआ सपा कांग्रेस राज में यूपी पूरी तरह बांग्लादेश हो गया था। प्रमाण सामने है!’
अब बात ये थी कि जब भाजपा विधायक ऐसी लफ्ज़ लिखेगे तो फिर आम यूज़र्स कहा पीछे रहने वाले। फर्जी खबरों से एक्स उड़ पड़ा एक से एक दावे होने जारी हो गए। एक दावा यह है कि हनुमान जी मूर्ति मस्जिद में मिली है। एक्स यूजर रिनिती चटर्जी पाण्डेय ने कहा है कि सपा (समाजवादी पार्टी) के साथ सांठगांठ से मुसलमानों ने मंदिर को मस्जिद बना दिया।
एक नया ने तो सब हदों के पार जा कर मुकाम पाया और शौर्य मिश्रा नाम के इस यूज़र ने दावा किया कि मंदिर में मुसलमानों ने ताला जड़ दिया था।
मगर हकीकत इसके एकदम उलट है। हकीकत बयान करने अगर चला जाये तो फिर बात ऐसी सामने होगी कि भाजपा विधायक से लेकर नफ़रत की खेती करने वालो ने नफरतो का ऐसा बाज़ार तैयार किया कि हर तरफ फेक न्यूज़ दिखाई दे रही है। भाई जब एक विधायक अपनी मर्यादाओं के इतर ऐसे फेक न्यूज़ पोस्ट कर सकते है तो फर उनके प्रशंसको की तो बात ही दीगर है। जबकि हकीकत की सरज़मीन पर ऐसा कोई वाकया ही नही हुआ है।
क्या है हकीकत जिसका बनाया गया फ़साना
दरअसल हकीकत ये है कि संभल के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में एक मंदिर है। मंदिर दशको पुरानी है। पहले इस इलाके में जो जामा मस्जिद के पास स्थित है में कुछ हिन्दू घर थे। मगर वक्त गुज़रते गुज़रते लोग अन्य स्थानों पर रहने लगे और वर्ष 1972 में आखिरी हिन्दू परिवार ने भी अपना भवन बेच दिया और किसी अन्य इलाके में रहने लगे। मंदिर पर आखरी हिदू परिवार ने ताला बंद कर दिया था और कोई पुजारी यहाँ नहीं था जिसके बाद से यहाँ पूजा नहीं होती थी। ताला मंदिर की आखिरी सेवईत के द्वारा अपना बंद किया गया था।
संभल के नगर हिंदू सभा के संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी ने ताला खुलने के बाद मीडिया के सवालों के जवाब देते हुवे बताया कि 1978 में दंगा हुआ, उसके बाद इलाके से सभी 15-20 हिंदू परिवार पलायन कर गए। जब पूछा गया कि क्या यहां आने पर मुसलमानों ने रोक लगा रखी थी तो उन्होंने साफ कहा कि आने-जाने में कोई रोक नहीं थी, लेकिन हमारी आबादी रही नहीं, सब पलायन कर गए थे। फिर उनसे पूछा गया कि क्या ताला मुसलमानों ने जड़ा था। इस पर उन्होंने स्पष्ट किया कि नहीं, ताला उनके भतीजे ने लगाया था। उनसे दोबारा पूछा गया कि क्या आपको आने नहीं दिया जाता था या आप आए नहीं तो साफ कहा- हम आए नहीं।
इस दरमियान बताया जाता है कि मंदिर के आसपास कुछ अतिक्रमण हो गया था। इस मामले में एडिशन एसपी ने कहा है कि अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई की जाएगी। संभल के खग्गू सराय इलाके में स्थित एक मंदिर का ताला 46 साल बाद खुला, यह पूरी तरह सच है। लेकिन यह दावा कि मंदिर को मस्जिद बना दिया गया था या फिर मंदिर पर मुस्लिमो ने कब्ज़ा कर लिया था अथवा मुस्लिम इस मंदिर में किसी को आने नहीं देते थे बिल्कुल गलत है। ताला मुसलमानों ने नहीं बल्कि हिंदू परिवार ने ही लगाया था।
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