सबा अंसारी
वाराणसी: वाराणसी नगर निगम की सीमाओं में इजाफा होने के बाद नए जुड़े वार्ड की दयनीय स्थिति के लिए ज़िम्मेदार कौन है, यह निश्चित करना बहुत ही मुश्किल काम हो चूका है। मगर इतना तो पक्का है कि जो भी नए वार्ड जुड़े है वह शहर होने से बेहतर तो गाँव की स्थिति में ही थे। कम से कम गन्दगी होने पर प्रधान को चार बाते सुना तो सकते थे।
मगर अब जब से नगर निगम हुआ है तब से पार्षद खुद निरीह स्थिति में है और सरकारी दफ्तरों के चक्कर पर चक्कर लगा रहा है, ऐसे में पार्षद से कहना भी गलत बात होगी। नगर निगम ने 100 में 100 नंबर पाने की जल्दी में वार्ड तो बढ़ा लिया, मगर उन बढे वार्डो की सुविधाओं की व्यवस्था पहले से नहीं कर रखा था। शायद नंबर पहले मिल जाए इम्तेहान बाद में देंगे के के तर्ज पर नगर निगम दौड़ रहा होगा। अब हाल ऐसी है कि सभी बढे हुवे वार्ड की बात तो नही कर सकती हु मैं, मगर लोहता की स्थिति तो ऐसी हो गई है कि पुरे इलाके में झाड़ू तिमाही त्यौहार की तरह लगता है।
कूड़ा सडको का तो उठ जाता है, मगर गलियों में कूड़े बजबजाते रहे नगर निगम कर्मियों को कोई फर्क नही पड़ता है। गलियों की लाइट एक बार अगर बंद हुई तो कितने महीने बाद दुबारा जलेगी इसके लिए लोग आपस में शर्ते लगा लेते है। एक दो महीने की शर्त लगाने वाले हार जायेगे और तीन चार महीने वाले जीत जायेगे। अब आप कहेगे कि पार्षद क्या कर रहे है? तो भाई पार्षद का काम कागजों पर समस्याओं को उकेर कर अधिकारियो के पटल पर रखना है। वही कर सकता है एक पार्षद, अब पटकी पटका तो करेगा नहीं। खुद इलाके की उपेक्षा का ऐसा शिकार है कि अधिकारियों के खिलाफ धरने पर बैठना उसकी मज़बूरी हो जाती है।
एक तो खुद इलाके की स्थिति नरकीय हो गई थी। उसके बाद कोढ़ में खाज कर डाला उमाशंकर सिंह की संस्था ‘छात्र शक्ति’ ने। शासन से लेकर प्रशासन तक ऊँची पकड़ और दबदबा रखने वाली संस्था ‘छात्र शक्ति’ को मिले हाईवे निर्माण के ठेके ने हाल ऐसा कर रखा है कि जबरा मारे तो रोवे भी न दे। दबदबा रखने वाली संस्था छात्र शक्ति ने सड़क निर्माण के दरमियाना पानी की निकासी को दुसरे पायदान पर रखा दिया और पूरा इलाके का सीवर बजबजा रहा है। खत लिखो चाहे फोन कर या फिर ईमेल कर डालो, उमाशंकर सिंह का नाम ही काफी है तो उनकी संस्था को कोई कैसे किसी मामले में कलाई पकड़ सकता है। उसको कोई फर्क नही पड़ता। पूरा इलाका और गरीब परिवार सीवर के पानी में डूब जाए, उसकी बला से।
नज़ारे देखने है आपको तो नजरिया बदलते हुवे धमरिया इलाके में घूम जाए। धमरिया में एक मोहल्ला है ताले। वैसे तो इसका नाम ताला था, मगर क्या किया जाए लोग ताले-ताले कहने लगे तो इसकी चाभी छात्र शक्ति ने गुम कर दिया कि न रहेगी चाभी और न खुलेगा ताला। हाल इलाके का ऐसा है कि लोगो के घरो के अन्दर तक सीवर का पानी घुस चूका है। गलियों में सीवर का पानी फिलहाल सैर सपाटा करने निकला हुआ है। गली ऐसा लगता है जैसे छोटी सी झील हो। एक से डेढ़ फिट तो कही पूरा का पूरा मैदान ही सीवर के पानी से भरा पड़ा है। मगर छात्र शक्ति जिसने इस ताले की चाभी गुम कर दिया है उसकी बला से। उसको तो अपने ठेके में प्रॉफिट कमाना है।
गलियों की अगर ऐसी ही हाल रही तो लगता है कि कुछ दिन में ही वहा आने जाने के लिए तैराकी सीखना पड़ेगा। तैर कर जाना और तैर कर आना। अगर आपको उस इलाके में आने जाने का काम पड़ता है तो हमारी सलाह है कि तत्काल आप तैराकी अगर नहीं जानते है तो सीख ले। बस दस पंद्रह दिन में सीवर के पानी में तैरना आने जाने वालों की मज़बूरी हो जायेगी। हम पहले ही आपको बता दे रहे है साहब, फिर मत कहना कि बताया नहीं। अगर तैराकी सीखे बिना आप इस इलाके से गुज़रे तो बीच में फंस जायेगे और छात्र शक्ति की जेसीबी भी नहीं आएगी। क्योकि असल में इलाके में बेरोज़गारी इतनी है कि लोग जेसीबी को देखने के लिए ही भीड़ लगा लेंगे।
हकीकत ये है कि जलकल के जीएम साहब कि आपको आपके पद पर मिली शक्तियों का आप उपयोग छात्र शक्ति के खिलाफ नहीं कर सकते है, क्योकि अगर आपने किया तो संस्था की मालिक-ओ-मुख्तार नाराज़ हो जाएगा। जबकि एक कडवा सच ये भी है कि आपकी शक्तियों के आगे उन मालिक-ओ-मुख़्तार की शक्तियां ज़र्रा बराबर भी नहीं है और आप उनको अपने मन मुताबिक काम करवा सकते है। तो हुजुर इन शक्तियों का थोडा प्रयोग करके इस नरकीय जीवन से हम लोहता वासियों को निजात दिलवा दे।