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यौम-ए-जमहूरियत यानि गणतंत्र दिवस पर तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: ये हक है कि ‘संविधान का मतलब हमारी पहचान’, दुनिया कदमो में झुक जाती है प्रस्तावना का लफ्ज़ ‘हम भारत के लोग’ पढ़ कर

तारिक आज़मी

पूरा मुल्क आज यौम-ए-जमहूरियत यानि गणतंत्र दिवस की खुशियों से सराबोर है। आज का ही वह दिन था जिस दिन हमारे आज़ाद मुल्क को उसका खुद का संविधान मिला। जो दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मौलाना हसरत मुहानी के ख्वाबो से सजा और बाबा भीम राव अम्बेडकर की कलम से निकला संविधान, जिसके पहले ही लफ्ज़ ने दुनिया में हमारे मुल्क की अजमत को ऊँचा कर बैठा। संविधान के पहले ही लफ्ज़ ‘हम भारत के लोग’ ने दुनिया को हमारे मुल्क के सामने इज्ज़त से सर झुकाने को मजबूर कर दिया।

हमारे घर में भी सुबह से ही यौम-ए-जमहूरियत की खुशियाँ दिखाई दे रही थी। भले ‘काका’ की आज़ादी पर लगाम काकी की ज़बरदस्त हो, मगर काका आज खुद को पूरी तरह से स्वतंत्र महसूस करते हुवे बेहतरीन चीनी वाली चाय पी चुके थे और गज़क की मिठास चखते हुवे ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ सुनते हुवे झूम रहे थे। काकी भी मुस्कुरा कर उनको इस आज़ादी का लुत्फ़ उठाने दे रही थी। हमारे कदम तो तब ठिठक कर रहा रह गए जब काका ने सवाल दाग डाला कि ‘आज़ादी का मायने क्या समझते हो मिया?’ मन तो किया कि काका को काकी के सामने खड़ा करके कह दे लो मांग लो आज़ादी, मगर काका की लट्ठ भी ख्याल में आ जाती है,

वैसे जमहूरियत का तस्किरा और उसको लेकर बहस करने के लिए मुद्दे तो काफी है। ख़ास तौर पर तब जब जमहूरियत अपने बुज़ुर्गी के 76वे साल में कदम रख दे और इसके बाद भी एक ‘आईपीएस अधिकारी को घोड़ी पर चढ़ने के लिए पुलिस सुरक्षा की ज़रूरत पड़ती हो’ तो बेशक संविधान में मिले बराबरी के हक पर तस्किरा किया जा सकता है। किसी को भीड़ केवल सिर्फ इसलिए पीट पीट कर जान ले ले कि उसको शक है और वह अमुक समुदाय से आता है, तो संविधान में मिली हमको इस आज़ादी पर एक बार बहस तो ज़रूर करना पड़ सकता है।

वैसे काका उस वक्त तो बेशक लाजवाब थे, जब मैंने कहा कि ‘काका, आज़ादी या तो तीन थके हुवे रंगों का नाम है जिसको एक पहिया ढोता है, या फिर इसका कुछ और मतलब होता है।’ मेरे लफ्ज़ जारी थे और मैं बोला कि काका हमने तो पढ़ा और आप जैसे बुजुर्गो से सुना है जिन्होंने अंग्रेजो की गुलामी में बचपन गुज़ारा है कि रास्तो पर लिखा होता था ‘Indians are not allowed’, अपने तो इसका अहसास भी किया होगा। हमारे संविधान ने जब हमको यह हक दिया कि हम पुरे मुल्क में गैर प्रतिबंधित क्षेत्रो को छोड़ कर कही भी जा सकते है, तो फिर आखिर हिमांचल प्रदेश में इस बात को लेकर जिरह क्यों है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मुस्लिम समाज के लोग वह है?’

वैसे मुझे अहसास हुआ कि काका के मुह में पड़ा हुआ गज़क का टुकड़ा शायद मेरे जवाब से थोडा कडवा हो गया होगा। मगर बात इसकी नहीं कि हम क्या सोचते है। बात तो इस पर आकर टिकी है कि लोग क्या सोचते है। संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया था। आज उस संविधान के पुरे 75 हो चुके है। अभी बीते नवंबर में भारतीय संसद में एक लंबी बहस भी हुई थी, जिस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की एक टिप्पणी विवाद का विषय बनी थी। बेशक हमारा संविधान जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें नागरिकों के अधिकार, कर्तव्य और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी प्रावधान शामिल हैं। अब तक उस संविधान में 100 से अधिक बार संशोधन हो चुके हैं। संविधान के अलग-अलग प्रावधान देश में समय-समय पर चर्चा का विषय बनते रहे हैं।

तो अब जबकि देश भर में संविधान लागू होने के 75 वर्ष पर कार्यक्रम हो रहे हैं, हम भी समझने की कोशिश करे सकते है कि देश के विकास में, सामाजिक न्याय, शिक्षा, जागरूकता, आर्थिक विकास, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे विषयों में संविधान की भूमिका के बारे में। साथ ही टेक्नोलॉजी के विकास के साथ जो चुनौतियां सामने आ रही हैं, उसे भी जानने-समझने की कोशिश होगी। दरअसल हम भूल नहीं सकते कि हमारे लिए संविधान का मतलब है हमारी पहचान है। संविधान ने हमें सुविधाएं दी हैं पर यह सुनिश्चित किया है कि उन सुविधाओं में समानता और समावेशिता हो। सबके लिए संविधान का मतलब है अस्पृश्यता का उन्मूलन। हम सबके लिए संविधान का मतलब है अवसर की समानता और संविधान हम सबके लिए आरक्षण है, जिसके कारण आज सभी पिछड़े, शैक्षिक रूप से पिछड़े या सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों की आवाज़ को हम सुन पा रहे हैं।

अगर आप भारत की संस्कृति के इतिहास को देखेंगे, तो इसमें नायक पूजा बहुत ज़्यादा थी, राजा-महाराजाओं का महत्व था। संवैधानिक लोकतंत्र और कार्यात्मक लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए जो कुछ भी हुआ है, वह सब संविधान की वजह से हुआ है। अगर संविधान नहीं होता, तो ब्रिटिश काल से पहले के भारत और आज के भारत में ज्यादा फ़र्क नहीं रहता। भारत के करोड़ों दलितों, महिलाओं और वंचितों के लिए संविधान उन्हें नागरिक अधिकार देता है। इन 75 सालों में जिस तरह से लोकतंत्र का विकास हुआ है, उसमें यह साफ़ तौर पर दिखता है कि दलितों, पिछड़ों और महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। जो देश पहले कर्मकांडों और धर्म ग्रंथों के आधार पर चलता था, वह अब एक संविधान की उस किताब के आधार पर चलता है, जिसमें समानता, न्याय, बंधुत्व और मनुष्यता है।

लेखक – तारिक आज़मी – प्रधान सम्पादक (PNN24 न्यूज़)

मगर इन सबके बावजूद भी वह घटना आप जानकर सिहर उठते है जिसमे एक आईपीएस अधिकारी को घोड़ी पर बैठने के लिए पुलिस प्रोटेक्शन की ज़रूरत पड़ती है। किसी पहलू खान और अखलाक को उनके धर्म के आधार पर चिन्हित कर सिर्फ और सिर्फ शंका के आधार पर इन्साफ भीड़ सड़क पर कर दे रही है, वह कुसूरवार है या नही इसका भी कोई साफगोई नहीं जानना चाहता है। मगर ऐसी घटनाए अगर है तो ऐसी भी घटनाए संविधान पर हमारी आस्था को और भी मजबूत करती है जिसमे आम आदमी से लेकर मंत्री तक को अदालते इसी संविधान से मिले अधिकारों के तहत कटघरे में खड़ा कर लेती है।

इसी संविधान ने हमको हक दिया कि कोई कितना भी बड़ा नेता हो, वह हमारा वोट देने के अधिकार को रोक नहीं सकता है। हमे अपना प्रतिनिधि चुनने से रोक नहीं सकता है। हम इसी संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके सरकारे बदल देते है। हमारी यह संविधान पर आस्था ही है कि अमूमन बातो में लोग कहते है कि ‘आई विल सी यु इन द कोर्ट’। बेशक हमारा संविधान है तो हमारी पहचान है। इस यौम-ए-जमहूरियत पर आप सबको दिल से मुबारकबाद।

pnn24.in

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