हमारा प्रयास और 22 सालो बाद शहजादे की खबर पाई परिवार ने

अनुपम राज 

वाराणसी. हमारा प्रयास और 22 साल पहले लापता हुवे शहजादे की खबर उसके परिजनों तक पहुची. हमारे प्रयास से आज परिजनों ने 22 साल बाद फ़ोन पर शहजादे की आवाज़ सुनी. मानसिक संतुलन खोकर एक पति शहजादे जब घर से लापता हुआ था उस समय उसकी पत्नी हसीना बेगम जवान थी. एक भारतीय नारी इन का रूप है हसीना बेगम, क्योकि अगर वह चाहती तो इस्लामी शरियत के हिसाब से पति के लापता होने के 5 सालो बाद वह खुला लेकर दूसरी शादी कर सकती थी, मगर वह भारतीय नारी हसीना बेगम ने अपना जीवन अपनी बेटी सोनी की परवरिश और पति शहजादे के इंतज़ार में गुजार दिये 22 साल. एक बाप शहजादे जिसकी बेटी सोनी ने उसको शायद अपने होश में देखा भी न हो आज खुद माँ बन चुकी है और एक उम्मीद लगाये बैठी है कि उसके पिता किसी भी लम्हे आ सकते है. एक भाई गुलाब जिसने अपने भाई के लापता होने के बाद उसकी तलाश में मुंबई और दिल्ली की गलियों तक की खाक छानी. लोगो ने लाख समझाया कि मत तलाश करो इतने सालो के बाद कहा मिलेगा मगर आज भी वह कही से सुन्गुनी लगती तो उस शहर की खाक छानने के लिये पहुच जाता.

जी हां मैं बात कर रहा हु आज से लगभग 22 साल पहले लापता हुवे आदमपुर थाना क्षेत्र के चौहट्टा लाल खान के रहने वाले शहजादे की. जिसका मानसिक संतुलन ख़राब था और वह एक रोज़ आज से 22 सालो पहले अपने घर से कही लापता हो गया था. उसके भाइयो गुड्डू और गुलाब ने उसको तलाशने की बहुत कोशिशे की. किसी ने कहा वह मुंबई होगा तो मुंबई की खाक छानने पहुच जाते किसी ने कहा वह दिल्ली होगा तो दिल्ली की खाक छानने पहुच जाते. ऐसे ही करते करते वक्त बीतता गया और ज़िन्दगी के 22 साल अपने भाई की तलाश में गुज़ारने के बाद अब सब थक चुके थे कि आज अचानक हमारे सम्पादक तारिक आज़मी ने उनके घर पहुच कर शहजादे की सुचना दिया और परिजनों से फ़ोन पर बात करवाया.
कहा था शहजादे इतने सालो.
मानसिक संतुलन खो बैठा शहजादे किसी तरह राजस्थान पहुच गया. इस दौरान राजस्थान में स्वयं सेवा करने वाली एक संस्था अपना घर ने उसको पनाह दिया और उसका इलाज शुरू किया. लम्बे इलाज के बाद शहजादे का मानसिक संतुलन कुछ ठीक हुआ और वह बहुत धीरे धीरे बोलने लगा. अब अपना घर के पास सबसे बड़ा सवाल था उसकी पहचान का पता करना, इसी दौरान एक समाज सेवक और अपना घर आश्रम के सदस्य अजय कुमार लोढ़ा की नज़र शहजादे पर पड़ी. शहजादे का मानसिक संतुलन तो ठीक हो चूका है मगर वह बोल बहुत कम पाता है और किसी से बात भी नहीं करता है. 
शाहज़ादे के परिजनों की तलाश भुस से सुई खोजने सरीखी थी अजय कुमार लोढ़ा के लिये
समाज सेवक अजय कुमार लोढ़ा के साथ शहजादे आज रात्री 10:30 पर परिजनों से फ़ोन पर बात करने के बाद 
अजय कुमार लोढ़ा ने पहले उसके आस पास रहकर उसका विश्वास हासिल किया और फिर उससे उसके बारे में पूछना शुरू किया. शहजादे अपनी अधिकतर यादे गवा चूका था मगर जितना उसकी याद आया उसने बता जिसमे उसका नाम मोहल्ले का नाम भूल जाने के बाद पास के एक मोहल्ले का नाम कोयला बाज़ार बताया. अपनी पत्नी अपनी बेटी अपने भाई का नाम बताया, थाना आदमपुर बताया. इसके अलावा कोई और जानकारी नहीं दे सका शहजादे.
इतनी जानकारी किसी की तलाश करने को बहुत कम थी क्योकि पुरे उत्तर प्रदेश में किसी शहर का नाम नहीं बता पाया था शहजादे. मगर अजय कुमार लोढ़ा ने हिम्मत नहीं हारी और उसने गूगल पर तलाश जारी कर दिया. कई जगहों का नाम आदमपुर मिल रहा था. आखिर उसने तलाश करते हुवे आदमपुर थाना उत्तर प्रदेश में तलाश लिया. फिर थानों के क्षेत्र को देख कर यह भी पक्का कर लिया कि इसी थाना क्षेत्र का हो सकता है शहजादे. फिर उसने स्थानीय थाना प्रभारी से संपर्क किया और उनको व्हाट्सअप पर फोटो और शहजादे की दी हुई जानकारी भेजी. महीने से अधिक गुज़र गया और अजय कुमार लोढ़ा को कोई खबर नहीं लगी.
नये थाना प्रभारी की कर्मठता ने दिखाई शहजादे के घर की राह –
आज ही स्थानांतरित होकर आये नये थाना प्रभारी अजीत मिश्रा ने ज्वाइन किया था. इसको इत्तिफाक ही कहेगे कि अजीत मिश्र के ज्वाइन करते ही अजय लोढ़ा का फ़ोन शहजादे के सम्बन्ध में आ गया. अजीत मिश्रा ने अपनी इस केस के सम्बन्ध में अनभिज्ञता जताई और अजय लोढ़ा से दुबारा व्हाट्सअप पर डिटेल और फोटो देने को कहा. जो अजय लोढ़ा ने भेज दिया. इसी दौरान क्षेत्रिय चौकी इंचार्ज से भी अजीत मिश्रा ने जानकारी लिया और उन्होंने भी ट्रैक करने में अनभिज्ञता दिखाई. इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि कोयला बाज़ार लगभग 10 मुहल्लों को मिलकर एक इलाके को कहा जाता है और ये सभी मोहल्ले घनी आबादी वाले है. यहाँ केवल एक फोटो के द्वारा किसी की पहचान पता करना बहुत मुश्किल काम होगा. इसी दौरान हमारे सम्पादक तारिक आज़मी मेरे ही साथ कुछ कार्यो से थाना परिसर की तरफ से गुज़रे और एक शिष्टाचार भेट करने थाने पहुच गये. थाना प्रभारी उनके पूरा परिचित होने के कारण एक दुसरे का कुशल क्षेम पूछने लगे इसी दौरान थाना प्रभारी ने अपनी कर्मठता का परिचय दिया और कार्य को तरजीह देते हुवे उन्होंने फोटो को सम्पादक महोदय को दिखाते हुवे घटना बताया और एक विशेष रूप से आग्रह किया कि इनके परिजनों की जानकारी हो अगर तो बताये उनको सुचना दिया जा सके. इसको इत्तिफाक कह सकते है कि तारिक आज़मी भी उसी क्षेत्र के मूल निवासी है जिस क्षेत्र के होने की चर्चा शहजादे की हो रही थी. काफी लम्बे समय से लापता इन्सान का फोटो देखते ही उन्होंने उसको पहचान तो लिया मगर कन्फर्म होने के लिये फोटो अपने मोबाइल में ले लिया.
इसको थाना प्रभारी की कर्मठता ही कहेगे की काम के दौरान इस प्रकरण को शायद हमारे सम्पादक भूल ही जाते मगर लगभग एक घंटे के पश्चात उन्होंने फ़ोन पर जानकारी हासिल करना चाहा कि क्या हुआ ? कुछ पता चला यह व्यक्ति कहा का है ? 
इन बच्चो को तो याद भी नहीं है अपने ताऊ शहजादे का चेहरा भी फिर भी आँखे ख़ुशी से है नाम 
स्मरण आने के पश्चात् सम्पादक तारिक आज़मी और मैं स्वयं कन्फर्म होने क्षेत्र में निकले और थोड़े देर में ही यह कन्फर्म हो गया कि यह फोटो चौहट्टा लाल खान के निवासी शहजादे का है जो आज से लगभग 22 साल पहले से गुमशुदा है. अब पत्रकारिता का कीड़ा तो जागना ही था और एक बढ़िया स्टोरी मिलना ही था कि 22 साल से लापता शख्स के घर वालो को यह सुचना मिलने पर उनकी कैसी प्रतिक्रिया होगी. और हम पहुच गये शहजादे के घर जहा उसका भाई गुलाब और अन्य परिजन मिले. क्षेत्र में सम्पादक तारिक आज़मी का यह सम्मान ही था कि रात लगभग दस बजे दरवाज़े पर जाने पर पुरे परिवार ने ही उनका स्वागत किया. बैठने के बाद जब परिजनों के सामने सम्पादक जी ने शहजादे की सुचना दिया और उनका कुशल मंगल बताया तो वह माहोल ही कुछ अजीब था
कैसा महसूस हुआ 22 साल बाद लापता शहजादे के सम्बन्ध में कुशलता जानकर परिजनों को 
और सम्पादक तारिक आज़मी को पकड़ के रो पड़ा ख़ुशी से शहजादे का भाई गुलाब 
जैसे ही सम्पादक तारिक आज़मी ने शहजादे के सम्बन्ध में बताया कि वह सकुशल है और इस जगह है कमरे में कई लोगो के होने के बावजूद एक अजीब सन्नाटा छा गया. सभी चेहरों पर मुस्कान थी मगर आंखे अश्क बहा रही थी. लगभग दस जोड़ी आँखे नाम थी जिससे अश्को की धार बह रही थी मगर चेहरे पर मुस्कान थी. मैंने ख़ुशी के आंसू सुने थे मगर आज पहली बार इसका अहसास कर रहा था. सभी आँखों से अश्को की धार निकल रही थी. लगभग 10 से 15 मिनट कमरे में पिन ड्राप साइलेंट था. फिर सम्पादक तारिक आज़मी ने अजय कुमार लोढ़ा से बात किया जो आश्रम से अपने आवास आ चुके थे. बात होने के बाद शायद अजय कुमार लोढ़ा भी उस लम्हे को अपनी यादो में सजोना चाहते थे और वह अपने आवास से वापस आश्रम गये जो उनके आवास से लगभग 4 किलोमीटर दूर है. वहा जाकर अजय कुमार लोढ़ा ने सो रहे शहजादे को जगाया और फिर सम्पादक तारिक आज़मी से कहा कि आप भी स्पीकर ऑन कर दे. ये वह लम्हा था जब दो भाई 22 साल के बाद एक दुसरे की आवाज़ सुन रहे थे. हर आँख अश्क बहा रही थी और जुबान लड्खाती हुई अलफ़ाज़ निकाल रही थी. इसी दौरान कांफ्रेस पर शहजादे की पत्नी हसीना बेगम जो अपने मायके मिर्ज़ापुर गई हुई है भी थी. उनकी तो सिर्फ सिसकिया सुनाई दे रही थी.बात ख़त्म होने के बाद शहजादे का भाई गुलाब फ़ोन रखते ही रोता हुआ सम्पादक तारिक आज़मी के गले लग पड़ा और बहुत देर तक रोता रहा. आस पास वालो को भी पता चलते ही मोहल्ले में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी. शहजादे के घर पर लोगो का ताँता लग गया था. उधर शहजादे की पत्नी हसीना बेगम अपने भाई गुड्डू के साथ वाराणसी के लिये निकल चुकी है. समाचार लिखे जाने तक सभी परिजन राजस्थान के पाली जाने की तय्यारी कर रहे है और सुबह किसी ट्रेन से वाराणसी से राजस्थान शहजादे को लेने जायेगे. 
22 साल बाद भाई की आवाज़ सुनकर रो पड़ा छोटा भाई 
हम वह भी लम्हा दिखाने का आपको प्रयास करेगे जब एक पत्नी 22 साल बाद अपने पति को देखेगी, हम वह भी लम्हा दिखाने की कोशिश करेगे जब एक भाई 22 साल बाद अपने भाई को देखेगा. हम वह भी लम्हा दिखाने की कोशिश करेगे जब सुहागन होकर भी बेवा जैसे हालात में अपनी बहन को 22 सालो से देखने वाला एक भाई अपनी बहन के सुहाग को देखेगा. हम कोशिश करते है आपको जज्बातों से भरा वह लम्हा दिखाने की.   

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