छावनी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष शैलेन्द्र सिंह ने रक्षामंत्री को पत्र लिख छावनी बोर्ड चुनावो के स्थगन पर उठाये सवाल, किया जल्द चुनाव करवाने की मांग

मो0 दानिश  

वाराणसी। छावनी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष व निवर्तमान सदस्य शैलेन्द्र सिंह ने छावनी बोर्डों के चुनाव अकारण लंबे और अनिश्चित कालीन स्थगन पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह उठाते हुये रक्षामंत्री को पत्र लिख कर कहा है कि केन्द्र सरकार की यह रीति नीति लोकतंत्र एवं संविधान दोनों का गला घोंटने की कार्रवाई है। इससे छावनी क्षेत्र न केवल राजनीतिक नागरिक अधिकारों से वंचित हैं, बल्कि जनता की समस्याओं के लोकतांत्रिक एवं वैधानिक माध्यमों से समाधान की समूची संविधान प्रदत्त प्रक्रिया ही बाधित है। इससे नागरिकों में असन्तोष बना हुआ है।

शैलेन्द्र सिंह ने पत्र में लिखा है कि कोविड काल में अन्य सभी संवैधानिक निकायों के चुनाव होते रहे हैं, लेकिन केवल छावनी बोर्डों के चुनाव दो वर्ष से स्थगित रखे गये। कोविड नियंत्रण के साथ जनजीवन सामान्य भी हो चुका, लेकिन छावनी क्षेत्रों का स्थानीय स्वशासन सैन्य अधिकारियों की मुट्ठी में संविधान एवं लोकतंत्र के तकाजों के खिलाफ पूरी तरह जकड़बंद है। छावनी के स्थानीय स्वशासन से जुड़े विधिक सुधार के किसी विधेयक के संसद में लंबित होने की भी बात अधिकारियों द्वारा कही जाती है, लेकिन संसद भी लगातार अपने अन्य कामकाज निपटाती रही है।

उन्होंने पत्र में लिखा है कि ऐसी स्थिति में इस विधिक सुधार विधेयक को अकारण लटका कर रखना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। यदि संसद नये सुधार नहीं पारित कर रही है, तो उस देरी के नाम पर पुरानी स्थापित विधि से चुनाव होना चाहिये, क्योंकि स्थानीय निकायों का समय पर चुनाव होना एक बाध्यकारी संवैधानिक जिम्मेदारी है। ऐसा न करने के गलत बहानों के सहारे सरकार संवैधान के 74 वें संशोधन से स्थापित संवैधानिक व्यवस्था को रौंदने के हठ के तानाशाहीनूर्ण रवैये का परिचय दे रही है।

शैलेन्द्र सिंह ने पत्र में यह भी लिखा है कि छावनी क्षेत्रों के लोग 1924 के छावनी बोर्ड अधिनियम में सुधार के संशोधनों के विरुद्ध नहीं हैं। बेशक 74 वें संविधान की तहर भावना रही है, लेकिन उस प्रक्रिया को अनन्त काल तक लटकाये रखकर देश की 62 छावनियों के लाखों नागरिकों के नागरिक राजनीतिक हक और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी बुनियादी समस्याओं के समाधान की उनकी आकांक्षाओं को रौंदा नहीं जा सकता। अत: सरकार गंभीरता इसे इस अलोकतांत्रिक गतिरोध को तोड़ने एवं चुनाव कराने की पहल करें और इस मुद्दे पर जनान्दोलन की मजबूरी नागरिकों पर न थोपे।

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