गठबंधन की गांठ बचाने के लिए लालू के पुराने सिपहसालार दिल्ली में एड़ी चोटी का लगा रहे जोर
(जावेद अंसारी)
बिहार में अभी दो साल भी नहीं हुए हैं और बिहार में महागठबंधन की सरकार ऐसे मोड़ पर पहुच गयी है जहां व्यक्तिगत हित के आगे सरकार पीछे हो गयी है। राजद की बेचैनी इस कदर है कि अपनी गर्दन बचाने के लिए जद यू से रिश्ते भी तल्ख हो जायें तो कोई गम नहीं। बस बेनामी संपत्ति मामले में लालू परिवार बच निकले।इसीलिए लालू यादव के पुराने सिपहसालार दिल्ली में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अलग अलग दरवाजे खटखटाए जा रहे हैं पर हाथ कुछ नहीं लग रहा है। रस्सी तन चुकी है। अब संतुलन थोड़ा भी बिगड़ा तो गठबंधन में गांठे ही नजर आएंगी।
बिहार में ढाई साल पुराने महागठबंधन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, जेडीयू ने नीतीश कुमार पर विवादित बयान देने वाले विधायक भाई वीरेंद्र को आरजेडी से निकालने की मांग की है, जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री पर गलत आरोप लगाने वालों को पार्टी से तुरंत निकाला जाए। दरअसल आरजेडी के विधायक भाई वीरेंद्र ने नीतीश कुमार पर बीते दिनों विवादित बयान देते हुए कहा था कि नीतीश कुमार का ऐसा कोई करीबी नहीं है जिसे उन्होंने ठगा ना हो। अब जेडीयू लालू प्रसाद यादव से इन नेताओं को पार्टी से निकाले की मांग कर रही है।
जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि भाई वीरेंद्र पर लालू यादव कार्रवाई करें, अगर कार्रवाई नहीं होती है तो इससे साफ होता है कि इन लोगों के बयान से लालू सहमत है, भाई वीरेंद्र पहले समता पार्टी से विधायक हुआ करते थे, भाई वीरेंद्र नीतीश कुमार के चेहरे पर लोकतंत्र के मंदिर में जाने का मौका मिला, अगर नीतीश कुमार का चेहरा नहीं होता तो इनकी औकात का पता चल जाता, लालू जी हमको टाइम बताये इन्हें कब पार्टी से निकलेंगे, हम लोगों ने हाथ मे चूड़ियां नहीं पहनी हैं, हमें भी गाली देने आती है लेकिन जिस दल से हम आते है उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार हैं हमारी पार्टी में ये संस्कार नहीं है, समर्थन के नाम पर महागठबंधन बंट गया है, नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविंद को समर्थन देने के पक्ष में हैं तो वहीं लालू यादव विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार के पक्ष में हैं, पिछले महीने राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोनिया के बुलावे पर नीरीश कुमार दिल्ली नहीं गये थे लेकिन अगले ही दिन पीएम मोदी से मिलने दिल्ली गए थे, पहले भी उनके अमित शाह से मिलने की खबर आ चुकी हैं।
इससे पहले कि बात है लालू के प्रमुख सिपहसालार केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों के पास मदद की गुहार लेकर पहुंचे थे। उन्होंने चौतरफा घिरे लालू परिवार को बचाने की अपील की। बताते हैं कि सुर कुछ ऐसे थे कि जदयू को रगडऩे की भी बात कही गयी। हालांकि उन्हें साफ लफ्जों में कह दिया गया कि कानून अपना काम करता रहेगा। पर इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विचारधारा और बिहार की बेटी का हवाला देकर लालू सिर्फ अपनी खीझ निकाल रहे थे।
आरोप सही साबित हुआ तो अंजाम बहुत खतरनाक हो सकता है। लालू पहले ही चुनाव लडऩे से प्रतिबंधित हो चुके हैं। अगर बच्चे भी घिर गए तो उनकी पूरी राजनीति भंवर में फंस जायेगी, जिसे वह समझ भी रहे हैं। शायद यही कारण है कि लालू की ओर से राजनीतिक पासा फेंका जा रहा है। न जाने वह यह उम्मीद क्यों पाले बैठे हैं कि ऐसा होने पर भाजपा उन्हें मदद कर देगी। वरना, वह प्रेमचंद गुप्ता को केंद्रीय मंत्रियों का दरवाजा खटखटाने को भेजते ही क्यों। उन्हें किसी ने गलत सलाह दे दी। और ऐसा न हो जाये कि परिवार को बचाने की कवायद में राजद पूरी तरह डूब जाए।
पिछले दिनों नीतीश ने लालू को दो टूक जवाब दिया है। इसका एहसास भी कराया है कि वह दवाब में आने वालों में नही हैं। जरूरत लालू को है उन्हें नहीं। नीतीश अपने अंदाज में राजनीति करेंगे। मुख्यमंत्री की ओर से रुख साफ कर देने के बाद ही झल्लाए तेजस्वी यादव ने नाम लिये बगैर हमलावर तेवर अपनाते हुए नीतीश को भला बुरा कह डाला। लेकिन वक्त की नजाकत ज्यों ही समझ में आई, वह आज उससे पीछे हट गये।जदयू में यादव के बयान पर कड़ी प्रतिक्ति्रया हुई। लेकिन नीतीश ने इस पर अपनी चुप्पी साध रखी है। जो भी हो फिलहाल यह कोई भी देख सकता है कि रस्सी तन गयी है। यह चटक सकती है और टूट भी सकती है। राजनीति की पुरानी धारा फिर से पनप भी सकती है।