पत्रकार मोहम्मद जुबैर को ज़मानत देते हुवे दिल्ली की अदालत ने कल कहा “‘लोकतंत्र वैसी सरकार है जो मुक्त विचारों से चलती है, पुलिस उस ट्वीटर यूज़र्स की पहचान करने में नाकामयाब रही जो शुरूआती शिकायतकर्ता रहा”
शाहीन बनारसी
डेस्क: एक तरफ जहा पत्रकारिता जगत में पत्रकार मोहम्मद जुबैर की गिरफ़्तारी को लेकर आक्रोश है, वही कल दिल्ली की एक अदालत ने चार साल पुराने एक ‘आपत्तिजनक ट्वीट’के मामले में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद जुबैर को जमानत दे दी। यह ज़मानत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने 50,000 रुपये के मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर जुबैर दी है। साथ ही अदालत ने जुबैर को उसकी पूर्व अनुमति के बिना देश से बाहर नहीं जाने को कहा है। अपने फैसले में अदालत ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज़ ज़रूरी है। किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है।
शुक्रवार को पत्रकार मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए न्यायाधीश जांगला ने कहा, ‘लोकतंत्र वैसी सरकार है जो मुक्त विचारों से चलती है। जब तक लोग अपने विचार साझा नहीं करते तब तक कोई लोकतंत्र न तो समृद्ध हो सकता है और न ही सही से काम कर सकता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। इस बात में कोई शुबहा नहीं है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद है। विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, बिना किसी रोक-टोक के सूचना, ज्ञान का प्रसार, विभिन्न दृष्टिकोणों पर बात करना, बहस करना, कोई राय बनाना और उसे व्यक्त करना, एक मुक्त समाज के मूल संकेतक हैं।’
अदालत ने कहा ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हिंदू धर्म सबसे पुराने धर्मों में से एक है और सबसे अधिक सहिष्णु है। हिंदू धर्म के अनुयायी भी सहिष्णु हैं। किसी संस्थान, सेवा या संगठन या बच्चे का नाम हिंदू देवता के नाम पर रखना तब तक आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि ऐसा द्वेषपूर्ण या अपराधी इरादे से नहीं किया जाता है। कथित कृत्य तभी अपराध की श्रेणी में आएगा, जब वह अपराध के इरादे से किया गया हो।’
जज ने यह कहते हुए कि अपने ट्वीट में जुबैर सत्तारूढ़ दल पर टिप्पणी कर रहे थे, कहा, ‘भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दल आलोचना से परे नहीं हैं। राजनीतिक दल अपनी नीतियों की आलोचना का सामना करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है। इसलिए, केवल किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है।’ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस उस ट्विटर यूज़र, जो मामले में शुरुआती शिकायतकर्ता था, की पहचान करने में विफल रही है, जिसने जुबैर के ट्वीट से आहत होने का दावा किया था। अदालत ने यह भी जोड़ा कि प्रथमदृष्टया जुबैर द्वारा जमा किए गए दस्तावेज उनके द्वारा ‘एफसीआरए की धारा 39 के उचित अनुपालन को दर्शाते हैं।’