तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: मान जा भाई, “प्याज़रोटी”, “लकडसुंघवा”, “मुहनोचवा”, “चोटी कटवा”, “नमक गायब” जैसी ही अफवाह है “बच्चा चोरवा”, अमा काहे बार-बार अफवाह में आ जाते हो लोग
तारिक़ आज़मी
इस समय प्रदेश में “बच्चा चोर” की अफवाह जोरो पर है। लोगो ने इस अफवाह को ऐसी हकीकत मान लिया है कि मानसिक विक्षिप्त, भीख मांगने वाले से लेकर कोई भी संदिग्ध दिखाई दे रहा है, बस झुण्ड बना कर उसकी कुटाई चालु कर दे रहे है। यही नही, हद तो तब है कि जब लोग एक तो पिटाई कर रहे है, उस पर उसकी फोटो खीच कर वायरल कर रहे है और तो और पुलिस को बुला कर उसके सुपुर्द भी कर दे रहे है। अब पुलिस उसको जब थाने पर लाती है तो पता चलता है कि खुद वो चोटिल है और मानसिक विक्षिप्त है। जिसके बाद पुलिस उसका दवा इलाज करवाए ये अलग से मुसीबत।
दरअसल हमको अफवाहों के पीछे भागने में मज़ा आता है। जब देखो हम किसी न किसी अफवाह के शिकार हो जाते है। एक बार अफवाह उडी कि नमक कल से खत्म हो जायेगा। फिर क्या था, लोग ऐसे दौड़ पड़े दुकानों पर जैसे मेला लगा हो। ज़बरदस्त नमक की खरीद बढ़ गई। हडकंप मच गया। मुनाफाखोरो ने नमक 100 रुपया किलो तक बेच डाला। दुकानों पर धक्की धुक्का में दो या फिर शायद तीन जान भी चली गई थी। रात भर पुलिस घूम घूम कर लोगो को बताती रही कि आप अफवाहों पर न जाए, अपनी अक्ल लगाये। नमक बहुत है। मगर कोई था ही नही जो सुन सके। नतीजा क्या निकला, रात को जो मुनाफाखोरो से लोग नमक 100 रुपया की एक पैकेट खरीदे थे, सुबह वही नमक अपने असली दाम पर बाज़ार में दिखाई दे रहा था। फिर वही खीसे निपोर दिए और अफवाह रही कह कर काम चला लिया।
फिर आया “लकड़सुंघवा”। अफवाह उडी कि कोई लकड़ी सुंघा कर बच्चो को बेहोश कर देता है। दरवाजों पर रोटी प्याज़ मांगने वाले की भी अफवाह थी। ज़बरदस्त अफवाह चली और बिना पाँव के ये अफवाह भी खूब दौड़ी। कुछ वक्त गुज़रा और अफवाह पर लोगो का ध्यान हटा और अफवाह ठंडी हो गई। लोग इस अफवाह को भूलने लगे और धीरे धीरे करके ये भी अफवाह खत्म हो गई। इसके बाद आया था “मुहनोचवा”। गजबे की अफवाह मुहनोचवा की रही। जहा देखो उसकी ही चर्चा होती थी। सब तरफ अगर आप ध्यान से सुनते को कोई एक जगह होती थी जिसको बताने वाला बताता था कि उसका रिश्तेदार वहां रहता है। उसके घर में “मुहनोचवा” आया था कई लोग घायल हो गए। जबकि हकीकत से इसका कोई सरोकार नही रहता था। गज़ब की झूम के अफवाह ये भी चली।
बिना पाँव की इस अफवाह ने पूरी मैराथन दौड़ लगा लिया। कोई इस कमबख्त “मुहनोचवा” को देखा नही था। मगर सबकी जुबान पर इसका नाम ज़रूर था। कोई पीड़ित भी दिखाई नही दिया। कम से कम मेरे जानकारी में तो कोई नही था। फिर भी अफवाह बिना पाँव के दौड़ी जा रही थी। वक्त गुज़रा और लोग “मुह्नोचवा” को भूल गये। यानी अफवाह खत्म हो गई। इसके बाद दुबारा नमक आ गया अफवाह बनकर। अफवाह एक रात की ही थी मगर हाल ये हो गई थी कि मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर जैसे शहरों में लोगो ने लम्बी लम्बी लाइन लगा लिया। हाल ऐसी हो गई कि आखिर पुलिस को सड़क पर उतरना पड़ा था और दुकाने बंद करवाना पड़ा था। जिसके बाद फिर बच्चा चोर जैसे अफवाह उडी थी। खूब लोगो को सडको पर पीटा गया और फिर बाद में एक बार दुबारा ये अफवाह साबित हुई।
इसके बाद फिर आई बडकी वाली अफवाह “चोटीकटवा”। जहा देखो वहा “चोटीकटवा” का शोर हो रहा था। ज़बरदस्त तरीके से कोई ऐसा शहर नही था जहा पर इसकी अफवाह ने बल न लिया हो। जहा देखो वहा रोज़ रात को चोटी कट गई की अफवाह उड़े। पुलिस आये, जाँच में अधिकतर निकले कि लड़की ने खुद से ही अपनी चोटी काट लिया है। फिर हंगामा होता था और रात रात भर सब जागते रहो का नारा बुलंद करते रहते थे। नतीजा क्या निकला? इसका हल पत्रकारों ने निकाला। उन्होंने “चोटी कटवा” यानी चोटी कट जाने की खबर लिखना बंद कर दिया। जैसे ही खबरनवीसी ने इस पर खबरे लिखना बंद किया। अचानक से चोटी भी कटना बंद हो गई। यह इस बात को साबित करती है कि “चोटी कटवा” भी एक अफवाह थी।
एक बार फिर ऐसे ही “बच्चाचोरवा” की अफवाह फ़ैल रही है। हम बैठे ही है अफवाहों पर ध्यान देने के लिए। अफवाह फैली तो हम सड़क पर मानसिक विक्षिप्त और भीख मांगने वालो पर अपने आप को बहादुर समझ रहे है। वैसे ध्यान से देखे तो हर एक इस प्रकार की अफवाह गर्मी के सीज़न में फैलती है। असल में गर्मी में दिमाग थोडा गरम रहता है तो दिमाग के अन्दर अफवाह भी घुल जाती है। समझ नही आता है कि आखिर हम ऐसे अफवाहों के लिए अपना दिमाग क्यों नही इस्तेमाल करते है। आखिर हमारी समझ को क्या हो जाता है। हम आपसे अपील करते है कि अफवाहों से दूर रहे और समझदार बने। किसी संदिग्ध स्थिति में स्थानीय पुलिस से संपर्क करे। बेशक आप समाज के एक जागरूक नागरिक है, समाज के लिए आपका अपना भी उत्तरदायित्व है। उन उत्तरदायित्वो की पूर्ति करे।