गुजरात चुनाव: “आप” और कांग्रेस के चक्रव्यूह में क्या फंस गई है भाजपा, “आप” के वायदे और कांग्रेस का आश्वासन, भाजपा के लिए खडी कर सकते है मुश्किलें
तारिक आज़मी
डेस्क: गुजरात चुनाव अपने शबाब पर आ रहा है। लगातार गुजरात में अपनी सत्ता कायम रखने वाली भाजपा के लिए इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने राह आसान तो नही छोड़ी है। लोक लुभावने वायदे यहाँ आम आदमी पार्टी ने अपने दो राज्यों में कार्यो को दिखा कर किया है, वही कांग्रेस जिसने पिछले चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दिया है के वायदों में भी काफी दम दिखाई दे रहा है। सियासी जानकारो की माने तो पार्टियां बड़े-बड़े वादे कर रही हैं, क्योंकि वे कुछ भी अपने जेब से नहीं दे रही हैं और इन वादों को आखिरकार करदाताओं के पैसों से ही पूरा किया जाएगा।
“मुफ्त की रेवड़ियां” की संज्ञा इन वायदों को देने वाली भाजपा ने तो अभी तक यही रुख अपनाया है कि वह लोगों को ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटने की चल रही इस दौड़ से दूर रखेगी। उसने मतदाताओं को “आप” के वादों के झांसे न आने की सलाह दिया है। वही दूसरी तरफ गुजरात की सियासत में नई नई आई “आप” का एक बड़ा मिशन है कि भाजपा को गुजरात की सत्ता से दूर कैसे किया जाये। इस लिए मतदाताओं से लुभावने वायदों की झड़ी आम आदमी पार्टी ने लगा रखा है। दिल्ली के तर्ज पर गुजरात में भी हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, सरकारी स्कूलों में निशुल्क शिक्षा, बेरोजगारी भत्ता, महिलाओं को 1,000 रुपये का भत्ता और नए वकीलों को मासिक वेतन देने जैसी कई रियायतें देने के आश्वासन के साथ अपनी पार्टी के अभियान की शुरुआत की है। इस क्रम में केजरीवाल जब भी गुजरात आते हैं, मतदाताओं को कम से कम एक नयी ‘गारंटी’ देकर जाते हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस भी अपनी कवायद जारी रखे हुवे है। वह भी मतदाताओं को रिझाने और सत्ता में लौटने के अपने लंबे इंतजार को खत्म करने के लिए कई लुभावने वादे लेकर आई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुछ दिनों पहले राज्य में एक रैली को संबोधित करते हुए वादा किया था कि उनकी पार्टी लोगों को वे सभी रियायतें देगी, जिनकी ‘आप’ ने अभी तक पेशकश की है। इसके अलावा, उन्होंने 500 रुपये में एलपीजी (रसोई गैस) सिलेंडर मुहैया कराने, कोविड-19 के पीड़ितों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा देने और किसानों का तीन लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का भी वादा किया।
अब सभी की निगाहें भाजपा पर टिकी हैं और बड़ा सवाल यह है कि क्या गुजरात में दो दशकों से अधिक समय से सत्ता में बैठी भाजपा भी मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटने की दौड़ में शामिल होगी या फिर वह कोई अलग राह चुनेगी। गुजरात के मतदाता बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं कि भाजपा उन्हें क्या पेशकश करेगी। हकीकत देखे तो जनता के पास इस बार विकल्प खुले हुवे है, और जो भी ज्यादा वादे करता है, उसे वोट दें। इउं सबके बीच जनता को इन वादों के कारण इस बार अंतिम विकल्प का चुनाव करना मुश्किल होगा।