निकला साठे का जुलूस: अज़ा-ए-हुसैन के आखिरी दिन की याद में गूंजी शहर में सदा…. आई ज़ेहरा की सदा, ए हुसैन अलविदा, देखे तस्वीरे
शाहीन बनारसी
वाराणसी: अजा-ए-हुसैन के आखिरी दिन की याद मनाने को आज बुद्धवार को वाराणसी की सड़कों पर अजादारों का हुजूम उमड़ा। आठ रबी-उल-अव्वल के तारीखी जुलूस में ग्यारहवें इमाम हसन असकरी का ताबूत उठा। जुलूस जब नई सड़क चौराहे पर पहुंचा तो अजादारों ने जंजीर, कमा और खंजर का मातम कर शहीदाने करबला को लहू का नजराना पेश किया।
आई जेहरा की सदा, ए हुसैन अलविदा’ के नारों के साथ नौहा व मातम करता ये जुलूस शब्बीर और सफदर के इमामबाड़े दालमंडी से उठाया गया। जुलूस जब नई सड़क चौराहे पर पहुंचा तो अजादारों ने जंजीर, कमा और खंजर का मातम कर शहीदाने करबला को लहू का नजराना पेश किया।
जुलूस अपनी पूरी शान के साथ जब काली महल पहुंचा तो यहां सैकड़ों की तादाद में मौजूद मर्द, ख्वातीन, बुजुर्ग, नौजवान, बच्चे और बच्चियों ने आमारी का इस्तकबाल किया। यहां मौलाना ने तकरीर में सभी को हुसैनियत के रास्ते पर चलने की नेक सलाह दिया।
अंजुमन हैदरी के नौजवान नौहा व मातम करते चल रहे थे। शराफत अली, वफा बुतराबी, लियाकत अली, शराफत नकवी, अंसार बनारसी, साहब जैदी, मजाहिर अली ने नौहे पेश किए। जुलूस के पितरकुंडा पहुंचने पर मौलाना ने मजलिस पढ़ी। जिसके बाद कलाम पेश किए गए। नई पोखरी पहुंचने पर अंजुमन जव्वादिया ने जुलूस का इस्तकबाल किया और वही पर आलिम ने तकरीर की। फातमान पहुंचने पर हजारों की तादाद में पर्दानशीं ख्वातीन ने आमारी का इस्तकबाल किया। अजादारों ने अलम, दुलदुल, ताबूत को अकीदत के साथ बोसा दिया।
दो महीने दस दिन के गम के दिन पूरे होने पर कल जुमेरात 9 रबी-उल-अव्वल को शिया हजरात खुशी मनाएंगे। गमों का लिबास उतारकर खुशियों के नए लिबास ओढ़ेंगे। घरों में पकवान बनेंगे। शहर के तमाम इमामबाड़ों में महफिलें होंगी। इस दिन को नौरोज़ के नाम से पुकारा जाता है।