गुजरात विधान सभा चुनाव: क्या पहले दौर के मतदान में स्थिति साफ़ हो गई है? जाने गुजरात विधानसभा चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट
तारिक़ आज़मी
गुजरात विधान सभा चुनाव में पहले दौर का मतदान कल संपन्न हुआ। कुल 182 विधानसभा सीट में से कल 89 सीट पर मतदान हुआ। पुरे मतदान के दरमियान भले ही पिक्चर साफ़ नज़र नही आ रही है। मगर एक बात तो साफ़ दिखाई दी कि सत्ता विरोधी लहर जिसका ज़िक्र विपक्ष पुरे चुनाव में कर रहा था वह कही दिखाई नही दी। इस पहले चरण में कुल 11 मंत्रियो की किस्मत दाव पर लगी है। मगर इसमें से स्थिति देखे तो लगभग इन सभी सीट पर कोई काटे की टक्कर तो नही दिखाई दे रही है।
पोलिंग के दरमियान अहमदाबाद में हुवे पीएम नरेन्द्र मोदी के रोड शो ने एक बार फिर 2005 के अहमदाबाद निकाय चुनाव की याद दिलवा दिया। ये वह समय था जब अहमदाबाद निकाय में कांग्रेस का वर्चस्व था। चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के रोड शो ने पूरी पिक्चर भी बदल कर रख दिया था और 128 सीट वाले निकाय में भाजपा ने कुल 96 या फिर 95 सीट जीती थी और कांग्रेस औंधे मुह गिरी थी। इस बार भी जब एक तरफ पहले दौर का मतदान चल रहा था तो पुरे देश की टीवी स्क्रीन पर पीएम नरेन्द्र मोदी का रोड शो नज़र आ रहा था। बेशक पोलिंग के आखरी घंटो में जिसमे लगभग 15-16 फीसद मतदान होता है उसके ऊपर इसका असर तो पडा ही होगा।
इस बार मतदान का प्रतिशत सभी अटकलों को विराम दे रहा है। अगर हम कम्पेयर करे दुसरे चुनावों से तो वर्ष 2012 विधान सभा चुनाव में कुल 71.46 फीसद मतदान हुआ था और इन 89 सीट में भाजपा के खाते में कुल 61 सीट आई जबकि कांग्रेस को 22 सीट मिली थी। वर्ष 2017 पर नज़र दौडाए तो लगभग 4 फीसद कम पोलिंग हुई थी। 67 फीसद हुवे मतदान का नुक्सान भाजपा के खाते में गया था और वर्ष 2012 में 61 सीटो वाली भाजपा को यहाँ 48 सीट पर संतोष करना पड़ा था जबकि कांग्रेस के खाते में 38 सीट आई थी तथा बीटीपी को 2 और एनसीपी को एक सीट पर संतोष करना पड़ा था। इस अनुपात को देखे तो देखने से लगता है कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार मतदाता कम घरो से बाहर निकले। मगर कही से यह नही कहा जा सकता है कि इसका नुक्सान भाजपा को हुआ या फिर फायदा कांग्रेस अथवा आम आदमी पार्टी को हुआ है।
अगर इलाकों को देखे तो पिछले बार अपनी 48 सीट में से 36-37 सीट तो भाजपा की कोई काटे के टक्कर के बिना ही दिखाई दे रही है। रही 12 सीट पर अगर मुकाबला त्रिकोणीय हुआ तो इसका फायदा भाजपा को दिखाई देगा और अगर मुकाबला आमने सामने का हुआ तो फिर टक्कर कांटे की रहेगी। वही दूसरी तरफ कांग्रेस की स्थिति देखे तो अपनी 38 सीट में से 24 पर कोई ख़ास टक्कर नही पा रही है। मगर 14 कांग्रेस की सीट फंसी हुई दिखाई दे रही है। इस अनुपात में फायदा नुक्सान का आकलन आखरी मिनट में नही किया जा सकता है। त्रिकोणीय मुकाबला अगर देखे तो सूरत, द्वारिका मिलाकर कुल 8 सीट पर तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मगर कई सीट ऐसी थी जहा आम आदमी पार्टी अपना बूथ मैनेज नही कर पाई थी। आदिवासी बाहुल्य इलाकों में कांग्रेस की मजबूत पकड दिखाई दी ये शायद बीटीपी के साथ गठबंधन का भी नतीजा हो सकता है। मगर ये पकड़ वोट में कितना बदली होगी ये तो 8 दिसम्बर ही बताएगा।
सबसे बड़ा सवाल ये था कि आखिर मतदाता बढे क्यों नही? क्यों नही लोग बुथो पर अपने मतदान का प्रयोग करने आये ? आखिर क्या कारण है कि पिछले तीन चुनावो में मतदान प्रतिशत गिरता ही जा रहा है? क्या चुनाव आयोग की कोशिशे नाकाफी साबित हुई और उसकी कोशिशो के बावजूद भी मतदाता बुथो तक नही आये? या फिर चुनावो से अधिक तरजीह लोगो ने अपने काम और कारोबार को दिया। कम मतदान का नुक्सान भाजपा को होगा या विपक्ष को ये तो 8 दिसम्बर को ही समझ में आएगा क्योकि लगभग 20 फीसद मतदाताओ का साइलेंट वोट तस्वीरे कभी भी बदल सकता है। 5 दिसम्बर को होने वाले आखरी चरण के मतदान के बाद स्थिति का आकलन करना ही बेहतर रहेगा। ध्यान देने वाली बात ये है कि पाटीदारो के कई बड़े नाम जो पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ थे इस बार वो भाजपा के पाले में है। वही आम आदमी पार्टी ने भी कई सीट पर ज़बरदस्त चुनाव लड़ा है। अब ये 8 दिसम्बर ही बतायेगा कि किसको मिलेगा ताज और जनता किसको मौका देगी विपक्ष का।