चैत्र नवरात्री पर विशेष: जाने क्यों मनाया जाता है चैत्र नवरात्र और यह कैसे अलग है शारदीय नवरात्र से
शाहीन बनारसी
डेस्क: हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में अनेको त्यौहार मनाये जाते है। हमारे मादर-ए-वतन की सबसे बड़ी खूबी ये है कि यहाँ छोटे से छोटे त्योहारों को भी बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जता है। अमन-ओ-अमान का मुल्क हिन्दुस्तान में कई धर्मो के लोग रहते है जिनमे एक धर्म है हिन्दू। हिंदू धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं, जो हर साल आते हैं और बड़े ही धूमधाम से मनाए जाते हैं। नवरात्रि का त्योहार उनमें से एक है। जो 9 दिनों तक चलता है। एक चैत्र मास और दूसरे शारदीय मास में नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। मूल रूप से चार मौसमी नवरात्रि होती हैं। सबसे आम नवरात्रि चैत्र नवरात्रि है। जिसका नाम संस्कृत शब्द बसंत के नाम पर रखा गया है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास मार्च-अप्रैल महीने में आता है। विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार, यह हिंदू कैलेंडर के पहले दिन को भी चिन्हित करता है। जिससे हिंदू नववर्ष कहा जाता है।
हिन्दू नव वर्ष की जब शुरुआत होती है तब चैत्र का महीने होता है और बसंत ऋतु का आगमन होता है। धार्मिक दृष्टि से यह दिन बेहद खास है। पौराणिक मान्यता अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है और इसी दिन चैत्र नवरात्रि का पर्व भी शुरू होता है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि के पर्व को काफी महत्व दिया जाता है। साथ ही इन नौ दिनों में प्रत्येक व्यक्ति माता रानी को प्रसन्न करने की पूरी कोशिशे करते हैं, और माता के लिए 9 दिनों का व्रत रकते हैं। इसके आलावा मां के नौ रुपों की पूजा रोजाना की जाती है। हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है। इसके अलावा कहा जाता है भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है। आइये आपको बताते है क्यों मनाते है चैत्र नवरात्री
चैत्र नवरात्रि मनाने के पीछे की मान्यता
रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था। उसने कठिन तप किया था। ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- ‘वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- “ठीक है प्रभु, देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।” ब्रह्माजी “एवमस्तु” कहकर अपने लोक चले गए। वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया। सभी देवता उससे परेशान हो गए। तब सभी देवताओं ने आदिशक्त जगदंबा (अंबे) का आह्वान किया और तब देवताओं की प्रार्थना सुनकर मातारानी ने चैत्र नवरात्रि के दिन अपने अंश से 9 रूपों को प्रकट किया। इन 9 रूपों को देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र देकर महिषासुर को वध करने का निवेदन किया। शस्त्र धारण करके माता शक्ति संपन्न हो गई। कहते हैं कि नौ रूपों को प्रकट करने का क्रम चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चला। इसलिए इन 9 दिनों को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
चैत्र नवरात्रि मनाने के पीछे एक और पुरानी कहानी है। जिसके अनुसार दशानन रावण की ताकत के बारे में सभी देवी-देवताओं को पता था। इसलिए सीता को लंका से वापस लाने के लिए जब श्रीराम रावण से युद्ध करने जा रहे थे, तो उन्हें देवताओं ने मां शक्ति की उपासना और आराधना कर उनसे विजय का आर्शीवाद लेने की सलाह दी। भगवान राम ने मां शक्ति की विधिवत पूजा प्रारंभ कर दी। मां को फूल अर्पित करने के लिए 108 नीलकमल की व्यवस्था की। इसके साथ ही मंत्रोच्चारण के साथ पूजा शुरू कर दी। जब रावण को इस बात का पता जला कि श्री राम मां चंडी की पूजा कर रहे हैं, तो उसने भी मां की पूजा शुरू कर दी। रावण तो बड़ा शक्तिशाली था ऐसे में किसी भी हाल में अपनी हार नहीं चाहता था, इसलिए उसने राम के 108 फूलों में से एक चुरा लिया और अपने राज्य में मां चंडी का पाठ करने लगा।
राम को इस बात का पता चला और उन्होंने कम पड़ रहे एक नीलकमल की जगह अपनी एक आंख मां को समर्पित करने का प्रण लिया, लेकिन जैसे ही श्रीराम अपनी आंखें निकाल मां को समर्पित करने जा रहे थे तभी मां प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान राम को जीत का आशीर्वाद दिया। जब रावण चंडी पाठ कर रहा था। तभी हनुमान जी वेश बदलकर ब्राह्मण के रूप में रावण के पास पहुंचे। पूजा कर कहे रावण से गलत मंत्र का उच्चारण करवा दिया जिससे मां चंडी क्रोधित हो गईं और रावण को श्राप दे दिया। जिसके परिणामस्वरूप राम-रावण युद्ध में रावण का अंत हो गया। नवरात्रि के आखिरी दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
कैसे अलग है यह शारदीय नवरात्र से
गृहस्थ लोगों के लिए साल में दो बार नवरात्रि का पर्व आता है। पहला चैत्र के महीने में, इस नवरात्रि के साथ हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है। इसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। दूसरी नवरात्रि आश्विन माह में आती है, जिसे शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पौष और आषाढ़ के महीने में भी नवरात्रि का पर्व आता है, जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, लेकिन उस नवरात्रि में तंत्र साधना की जाती है, गृहस्थ और पारिवारिक लोगों के लिए सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्रि को ही उत्तम माना गया है। दोनों में ही मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि आज यानी 22 मार्च बुद्धवार के दिन शुरू हो रही है। इस मौके पर यहां जानिए आखिर चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि से कैसे अलग है।
चैत्र नवरात्रि के दौरान कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व है, जबकि शारदीय नवरात्रि के दौरान सात्विक साधना, नृत्य, उत्सव आदि का आयोजन किया जाता है। ये दिन शक्ति स्वरूप माता की आराधना के दिन माने गए हैं। चैत्र नवरात्रि का महत्व महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में अधिक है, जबकि शारदीय नवरात्रि का महत्व गुजरात और पश्चिम बंगाल में ज्यादा है। शारदीय नवरात्रि के दौरान बंगाल में शक्ति की आराधना स्वरूप दुर्गा पूजा पर्व मनाया जाता है। वहीं गुजरात में गरबा आदि का आयोजन किया जाता है।
चैत्र नवरात्रि के अंत में राम नवमी आती है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम का जन्म राम नवमी के दिन ही हुआ था। जबकि शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन महानवमी के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन विजय दशमी पर्व होता है। विजय दशमी के दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था और प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसलिए शारदीय नवरात्रि विशुद्ध रूप से शक्ति की आराधना के दिन माने गए हैं। मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि की साधना आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। वहीं शारदीय नवरात्रि सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाली मानी जाती है।
डिस्क्लेमर: लेख में प्रदान की गई समस्त जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। PNN24 न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता है।