पटना में विपक्षी दलों के नेताओं का लगा जमावड़ा, पहुची ममता बनर्जी, महबूबा मुफ़्ती और अरविन्द केजरीवाल सहित भगवंत मान, महबूबा मुफ़्ती ने किया युसूफ शाह के कब्र पर चादरपोशी, पढ़े कौन है युसूफ शाह चक
तारिक़ खान
डेस्क: विपक्षी दलों की बैठक के एक दिन पहले बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों का जमावड़ा हो रहा है। पश्चिम बंगला की सीएम ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती आदि आज बृहस्पतिवार को दिल्ली पहुच चुकी है।
पश्चिम बंगाल की सीएम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विपक्षी नेताओं की बैठक से एक दिन पहले गुरुवार, 22 जून को बिहार की राजधानी पटना पहुंचीं। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो के साथ उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी भी थे। आरजेडी प्रमुख लालू यादव और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने कहा कि हम एक परिवार की तरह सामूहिक रूप से लड़ेंगे।
कल 23 जून को विपक्षी दलों की मीटिंग में ये सभी नेता भाग लेने वाले हैं। इस बैठक को लेकर दिल्ली में सियासी गलियारों के अन्दर भी हलचल दिखाई दे रही है। महबूबा मुफ़्ती ने युजुफ़ शाह चक की कब्र पर जाकर खिराज-ए-अकीदत पेश करते हुवे चादरपोशी किया और फातिहा पढ़ी और फुल चढ़ाया। इस मौके पर स्थानीय आलिम भी महबूबा मुफ़्ती के साथ थे। उन्होंने ट्वीट करते हुवे कहा कि युसूफ शाह चक की कब्र बिहार और कश्मीर के बीच में संबंधो की मिसाल है। साथ ही उन्होंने जर्जर हो चुके इस आस्ताने के निर्माण हेतु बिहार के सीएम नितीश कुमार से अपील भी किया है।
युसूफ शाह चक कश्मीर के चौथे और छठवे सुल्तान थे। वह कश्मीर के अंतिम शासक भी कहे जाते है। उनको सल्तनत उनके वालिद अली शाह चक ने ताजपोशी करके सौपी थी। उनके इन्तेकाल के बाद युसूफ शाह चक ने सल्तनत संभाली और 1579 से 1586 तक हुकूमत किया था। युसूफ शाह चक से हुकूमत उनके चाचा अब्दाल चक ने छिनी थी और 5वे शासक के तौर पर अब्दाल शाह का नाम है। जिसके बाद वापस युसूफ शाह चक ने अपनी हुकूमत अब्दाल चक को हराकर हासिल किया था। इसी वजह से काश्मीर में मुस्लिम हुकूमत के चौथे और छठवे शासक के तौर पर युसूफ शाह चक का नाम इतिहास के पन्नो में दर्ज है।
मुग़ल शासक अकबर के किये थे दांत खट्टे
जब 1586 में मुगलों ने कश्मीर पर हमला किया, तो युवा राजा यूसुफ शाह चक बहादुरी के साथ मुगलों से लड़ने के लिए खड़े हो गए। यूसुफ शाह ने मुगलों की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लंबा संघर्ष चला। इस लड़ाई में कश्मीरियों ने अपने राजा का पूरी बहादुरी से साथ दिया। हालांकि संख्या बल ज्यादा होने और बेहतर सैन्य कौशल होने के बावजूद मुगल सेना यूसुफ शाह को हरा नहीं पाई थी।
जब मुगल सेना ने यह महसूस किया कि हालात कठिन है और लड़ाई से कोई भी फायदा नहीं होने वाला, तब मुगलों ने अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए एक रणनीति बनाई। यूसुफ शाह को शांति वार्ता के लिए आगरा के शाही दरबार में आमंत्रित किया गया था। युवा राजा ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और अपने मंत्रियों और कमांडरों के मना करने के बावजूद आगरा के लिए रवाना हो गए। यूसुफ शाह ने अपने लोगों को युद्ध की पीड़ा से बचाने के लिए यह कदम उठाया। जहां अकबर ने यूसुफ को कैद कर लिया औऱ दिसंबर 1587 तक कैद में रखा।
अकबर ने यूसुफ शाह को कैद कर लिया और बाद में उसे बिहार निर्वासित कर दिया। उन्हें नालंदा जिले के इस्लामपुर ब्लॉक में जमीन दी गई और 500 सैनिकों की घुड़सवार सेना रखने की अनुमति दी गई। उस जगह का नाम कश्मीर चक नाम था, जहां मुस्लिम कश्मीरी शासक ने अपना घर बनाया था, 1592 में ओडिशा में उनका निधन हो गया और उनके अवशेषों को कश्मीर चक के करीब बिस्वाक में दफनाने के लिए बिहार भेज दिया गया।
अकबर ने यूसुफ शाह को क्यों रिहा किया?
1579 में मुग़ल बादशाह अकबर ने यूसुफ़ को ग़लत तरीके से कैद कर लिया था, लेकिन बाद में उन्हें मुक्त कर दिया गया और बिहार के बिस्वाक क्षेत्र में निर्वासित कर दिया गया। दरअसल, मुगल बादशाह अकबर उनकी कला और साहित्य और समझ से प्रभावित थे, जिसने उनकी रिहाई में योगदान दिया। स्वतंत्र कश्मीर के अंतिम मुस्लिम राजाओं में से एक यूसुफ शाह चक ने 1579 से 1586 तक कश्मीर पर शासन किया।
लेकिन उनकी कब्र की जमीन पर कब्ज़ाधारियों की नजर है। कब्रिस्तान बिस्वाक में 5 एकड़ और कश्मीरी चक में एक एकड़ से अधिक भूमि में फैला है। लेकिन कई सालों तक किसी को नहीं पता था कि यूसुफ शाह, उनकी पत्नी या उनके लड़कों को कहां दफनाया गया था। इसके चारों ओर झाड़ियां हैं। 1977 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला कब्र का दौरा करने गए थे। उनकी यात्रा के बाद कब्रिस्तान को 2.5 किमी दूर बिस्वाक गांव से जोड़ने वाली सड़क का नाम शेख अब्दुल्ला रोड रखा गया था।