तेज़ी से बदलता मौसम और बीमार होता शहर-ए-बनारस, सर्दी-खांसी, ज़ुकाम और बुखार सहित वायरल फीवर से जूझ रहा आम शहरी, अपने जिम्मेदारियों से मुह मोड़ता दिखाई दे रहा नगर निगम
तारिक आज़मी
वाराणसी: शहर बनारस में तेज़ी के साथ बदलते मौसम ने शहरियों को बीमार करना शुरू कर दिया है। शायद ही कोई ऐसा अस्पताल अथवा नर्सिंग होम होगा जहा पर मरीजों की लाइन न लगी हो। हर एक पैथोलाजी में लगने वाली लम्बी कतार बीमार होते शहर बनारस को ज़ाहिर कर रही है। वही शहर में जर्जर सीवर व्यवस्था और मच्छरों की रोकथाम के लिए दवाओं के छिडकाव में नगर निगम उदासीन दिखाई दे रहा है।
शहर बनारस के सेहत की यह स्थिति है कि लगभग हर घर में एक से दो लोग वायरल फीवर की चपेट में हैं। किसी को तेज बुखार, जोड़ों में दर्द है तो कोई सर्दी, जुकाम और पेट संबंधी बीमारी से ग्रसित है। बीमारी किस कदर बढ़ी है, इसका अंदाजा अस्पतालों में हर दिन बढ़ती जा रही भीड़ को देख लगाया जा सकता है। अस्पतालों के वार्ड भी मरीजों से फूल हो गए हैं। चिकित्सको की अगर माने तो इस समय जरा सी लापरवाही सेहत के लिए भारी पड़ सकती है।
शहर बनारस के सेहत की यह हाल होती जा रही है कि सुबह अस्पताल का पर्चा काउंटर खुलते ही लोगों की लम्बी लाइन लग जा रही है। आपातकाल सेवा की भी यही स्थिति है कि देर रात गए तक मरीज़ अस्पताल में आ रहे है। फिजिशियन से लेकर बाल रोग विभाग, चर्मरोग विभाग, चेस्ट फिजिशियिन की ओपीडी में लोग डॉक्टर को दिखाने के लिए बेचैन दिखाई दे रहे है। चिकित्सको की माने तो 33 फीसद से अधिक मरीज़ वायरल फीवर के आ रहे है। वही प्लेटलेट्स कम होने की समस्या से ग्रसित मरीजों का अंदाजा आपको ब्लड बैंक के अन्दर भीड़ से लग सकता है।
इन सबके बीच नगर निगम वाराणसी का रवैया बनारसियो की सेहत को लेकर काफी लापरवाही भरा दिखाई दे रहा है। मच्छरों की समस्या से निजात दिलाने के लिए चलने वाली नगर निगम की फागिंग मशीन सफ़ेद हाथी ही साबित हो रही है। अमूमन ही देखने को मिल रहा है कि फागिंग केवल कागजों पर हो रही है। जिन इलाकों में ये मशीने चल भी रही है तो केवल धुआ ही नज़र आता है उसका असर नही। जानकार बताते है कि इन मशीनों में पड़ने वाली दवाओं की मात्रा कर्मचारी इतनी कम डालते है कि उसका मच्छरों पर असर ही नही होता है। ऐसे में ये दवाओं का छिडकाव मात्र कागज़ी घोड़े दौड़ाने के जैसा ही है।
सीवर व्यवस्था की बात करे तो शहर के अधिकतर गलियों में सीवर व्यवस्था बजबजा रही है। पुरे दालमंडी और नई सड़क इलाके को ही अगर देखे तो शायद ही कोई ऐसी गली आपको मिलेगी जहा सीवर की समस्या न हो। मगर ज़िम्मेदार इस तरफ से मुह मोड़ कर महज़ सियासी कदमो को उठाते हुवे दिखाई दे रहे है। अन्य इलाके भले एकदम ऐसी स्थिति में न हो, मगर कमो बेस यही स्थिति सभी जगह दिखाई दे जायेगी। ऐसे में शहर बीमार हो रहा है तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी तय होगी?