बिलकिस बानो को मिले इन्साफ में सांझी विरासत की बनी मिसाल, रूप रेखा वर्मा, सुहासनी अली और रेवती लाल

तारिक़ आज़मी

डेस्क: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो प्रकरण में फैसला सुनाते हुवे सभी जेल से रिहा हुवे बिलकिस बानो के गुनाहगार दरिंदो को दुबारा जेल भेजने का हुक्म दिया। बिलकिस बानो केस में आये इस फैसले की जहा चतुर्दिक प्रशंसा हुई, वही साथ ही बिलकिस बानो के जज्बे की लोग तारीफ कर रहे है। बिलकिस बानो के मामले में इस संघर्ष को मुकाम देने के लिए तीन और शख्सियतो ने अहम् भूमिका निभाई। वह है रुपरेखा वर्मा, सुहासनी अली और रेवती लाल।

कौन है रेवती लाल

रेवती लाल पेशे से एक पत्रकार है। उन्होंने गुजरात दंगों पर ‘द एनाटॉमी ऑफ़ हेट’ नाम से किताब लिखा है। वह बिलकीस बानो केस में याचिकाकर्ता है। रेवती लाल, उत्तरप्रदेश के शामली में एक स्वंयसेवी संस्था ‘सरफ़रोशी फॉउंडेशन’ चला रही हैं और बताती है कि इस मामले से सुभाषिनी अली और रूपरेखा वर्मा पहले ही जुड़ चुकी थीं। वे इस पहल के लिए सुभाषिनी अली को श्रेय देती हैं।

उन्होंने फैसले के बाद कहा कि ‘सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया तो अंधेरे में रोशनी की किरणें दिखाईं दीं और लगा कि उन किरणों को हम अपनी ओर खींच लेंगे।’ उन्होंने कहा कि उन्हें एक सहयोगी पत्रकार का एक शाम फ़ोन आया। उनसे पूछा गया कि क्या वो इस मामले में जनहित याचिका डालना चाहेंगी और रेवती ने तुरंत इसके लिए हामी भर दी।

मूलतः दिल्ली की रहने वाली रेवती लाल कहती हैं कि ‘गुजरात दंगों के बाद मैंने एक निजी चैनल के लिए वहां पर पत्रकार का काम किया और मेरे ज़हन में ये मामला बैठा हुआ था। जब इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया तो मैं वहां थी और मैं बिलकिस की प्रेस वार्ता में भी मौजूद थीं।’ रेवती लाल ने बताया कि ‘मैंने व्यक्तिगत रूप से कभी बिलकिस बानो से नहीं मिली क्योंकि मैं उनकी पीड़ा को बढ़ाना नहीं चाहती थी। उनका धैर्य कल्पना से भी बाहर है। इसलिए जैसे ही मुझे फ़ोन आया मैंने तुरंत हां कर दी और मैंने सोचा कि ये ख़्याल मुझे क्यों नहीं आया।’

सुहासनी अली

पूर्व सांसद और सीपीआई (मार्क्सवादी) की नेता सुभाषिनी अली कहती हैं, हम सब ने देखा कि एक और प्रधानमंत्री लालकिले से भाषण दे रहे थे और दूसरी तरफ़ इन दोषियों की रिहाई का स्वागत माला पहना कर किया जा रहा था। सुभाषिनी अली को इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का विचार आया। वे बताती है कि इस लड़ाई में कई लोग शामिल थे जिसमें वकील और सांसद कपिल सिब्बल, अपर्णा भट्ट और कई लोग साथ आए और वो इस मामले में पहली याचिकार्ता बनीं।

उनके अनुसार, ‘इस घटना के बाद एक साक्षात्कार में बिलकिस ने कहा था कि क्या ये न्याय का अंत है। उसी के बाद ऐसा लगा जैसे हमें बिजली छू गई हो।’ उन्होंने बताया कि साल 2002 में हुई घटना के दो दिन बाद ही वे बिलकिस बानो से शरणार्थी शिविर में मिली थीं और तभी से सहयोग करती रही हैं। सुभाषिनी अली कहती हैं, ‘कई सालों में ऐसा फ़ैसला आया है जो किसी सरकार के ख़िलाफ़ है। मैं जजों की हिम्मत की दाद देती हूं।’ वे सवाल उठाते हुए कहती हैं कि ‘ये सोचा जाना चाहिए कौन इतनी लंबी लड़ाई लड़ सकता है और कितने लोग सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं?’

प्रोफ़ेसर रूप रेखा वर्मा

प्रो0 रूप रेखा वर्मा लखनऊ यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र पढ़ाती थीं और समाजिक और जेंडर मुद्दों पर काम करती रही हैं। प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा के अनुसार, जैसे ही इन 11 दोषियों की सज़ा माफ़ी की बात सामने आई थी तो उन्हें काफ़ी सदमा लगा और निराशा हुई। कुछ दिन बीत जाने के बाद हमने इस बारे में कुछ करने पर चर्चा की और फिर दिल्ली में अपने लोगों से संपर्क करना शुरू किया। वे सभी नामों को सामने लाने से इनकार करती हैं क्योंकि उनका मानना है कि कई लड़ाईयां अभी बाकी हैं लेकिन वे खुलकर कई सहयोगियों के कपिल सिब्बल, वृंदा ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह से बातचीत की बात कहती हैं।

वहीं प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा कहती हैं, ‘न्याय को लेकर हमारी पूरी उम्मीदें ख़त्म हो चुकी थीं लेकिन अब वो जगी हैं और हमारा निराशा का बादल थोड़ा सा छंट गया है।’ जब जनहित याचिका डालने की बात हुई उस दौरान वे दिल्ली एयरपोर्ट जाने के रास्ते में थी। इस याचिका में उनके नाम डालने के लिए फ़ोन आया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सामूहिक याचिका डाली गई जिसमें सुभाषिनी अली, रेवती लाल और प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा का नाम था।

हालांकि प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा ने कभी बिलकिस बानो से मुलाकात नहीं की क्योंकि वो उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी। लेकिन प्रोफ़ेसर रूपरेखा वर्मा सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से खुश हैं। वे मानती हैं, ‘कोर्ट के फ़ैसले से न केवल दोषियों की बदनामी हुई है बल्कि उन्हें एक सबक भी मिला है क्योंकि उन्होंने झूठ बोलकर रिमिशन ली हैं। लेकिन अभी डर है क्योंकि महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार है लेकिन हमें कोर्ट पर भरोसा है।’

वैसे सुभाषिनी अली भी आगे की राह पर शंका जताती हैं लेकिन साथ ही कहती हैं कि महिलाओं को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और बहुत से संगठन हैं जो उनकी मदद करने के लिए तैयार हैं। बिलकिस बानो की याचिकाकर्ता सुहाषिनी अली का कहना है कि ये आम नागरिकों, मीडिया सभी की लोगों की लड़ाई है। इस मामले से जुड़े सभी 11 दोषियों तो अब अगले दो हफ़्तों में जेल जाना होगा। सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो की वकील शोभा गुप्ता का कहना है कि अब आसानी से सज़ा माफ़ी नहीं मिलेगी।

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