ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण: आज हुई सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने अगली तारीख 12 फरवरी मुक़र्रर किया, पढ़े एजी की उपस्थिति पर मस्जिद पक्ष के एड0 नकवी ने क्यों जताया आपत्ति और किस पक्ष ने रखा क्या दलील
तारिक़ आज़मी
डेस्क: ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। हाई कोर्ट में आज की सुनवाई के बाद 12 फरवरी को अगली तारिख मुकर्रर किया है। याचिका ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसजिद कमेटी के जानिब से ज्ञानवापी मस्जिद तहखाने में पूजा पाठ की अनुमति जिला जज अदालत द्वारा दिए जाने के फैसले की मुखालफत में दाखिल हुई है।
आज शुरू हुई सुनवाई में अदालत ने पूछा कि न तो व्यास परिवार और न ही ज्ञानवापी मस्जिद प्रथम दृष्टया यह साबित कर सका कि मस्जिद का दक्षिणी तहखाना उनके कब्जे में थे। इस पर हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता एडवोकेट हरि शंकर जैन ने कहा कि तहखाना के अंदर पूजा हमेशा की जाती रही है। एक वर्ष में एक बार, मैं कुछ कागजात दाखिल करूंगा जो यह साबित करेंगे। उन्होंने कहा कि एएसआई को अपने वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान व्यास तहखाना के अंदर कई कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ मिली हैं।
उन्होने दावा किया कि मेरी पहली प्रार्थना (रिसीवर की नियुक्ति के लिए) 17 जनवरी को अनुमति दी गई थी, कुछ चूक के कारण, दूसरी प्रार्थना व्यास तहखाना के अंदर प्रार्थना करने के लिए की अनुमति नहीं दी गई थी, इसलिए जब मैंने जिला न्यायाधीश से दूसरी प्रार्थना की भी अनुमति देने का अनुरोध किया, और उन्होंने मेरे मौखिक आवेदन पर इसकी अनुमति दे दी। इसके बाद जैन धारा 152 सीपीसी का उल्लेख करते हैं जो निर्णयों, डिक्री या आदेशों में लिपिकीय अंकगणितीय गलतियों या किसी आकस्मिक चूक या चूक से उत्पन्न होने वाली त्रुटियों को सुधारने का प्रावधान करता है।
एड0 जैन ने कहा कि 1993 तक व्यास तहखाना के अंदर प्रतिदिन पूजा की जाती थी। 1993 के बाद, हालांकि पूजा जारी रही, लेकिन साल में केवल एक बार। ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने कभी इस पर आपत्ति नहीं जताई। पूजा की निरंतरता बनी रहती है। जिस पर अदालत ने सवाल किया कि ‘लेकिन क्या मुकदमे में मांगी गई अंतिम राहत एक आवेदन के माध्यम से दी जा सकती है?’ जिस पर जैन ने कहा कि मुझे कोई अधिकार नहीं दिया गया है, यहां रिसीवर नियुक्त किया गया और पूजा करवाने को कहा गया। जैन ने यह तर्क देने के लिए यूपी काशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 की धारा 13 और 14 का हवाला दिया कि काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड को पूजा करवाना अधिनियम का जनादेश है और 31 जनवरी का आदेश अधिनियम के जनादेश के अनुरूप है।
एड जैन ने कहा कि उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 की धारा 13 और 14 के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करना काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड का दायित्व है। राज्य इस मामले में एक उचित पक्ष हो सकता है। मेरी (व्यास परिवार की) ओर से कोई अधिकार या दायित्व नहीं है। कोर्ट के 31 जनवरी के आदेश से मुझे कोई फायदा नहीं हो रहा है। हम यह नहीं कह रहे कि हमें कोई दान दक्षिणा दी जाये। परिसर में वैसे भी हर साल पूजा होती रहती है। ज्ञानवापी मस्जिद समिति का कभी भी तहखाने पर कोई कब्जा नहीं रहा, वे पूजा अनुष्ठानों पर आपत्ति नहीं कर सकते।
एड0 जैन ने कहा कि एएसआई और एडवोकेट कमिश्नर ने तहखाना ढूंढ लिया है। ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने इस बात से इनकार नहीं किया है कि व्यास तहखाना में पूजा की जा रही है। व्यास परिवार के पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज हैं कि वहां पूजा की जाती है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कुछ दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि 2016 में भी व्यास तहखाना के अंदर राम चरित मानस पाठ का प्रदर्शन किया गया था, यह आधिकारिक अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया था। केवल यह बताना चाहता हूं कि 17 और 31 जनवरी के आदेश अनुरूप हैं। 17 जनवरी के आदेश (रिसीवर की नियुक्ति) में जो कुछ भी छूट गया था, उसे अदालत को बताया गया और उसे 31 जनवरी के आदेश (पूजा की अनुमति) में शामिल किया गया।
एड जैन 31 मई, 2023 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पैराग्राफ 103 का हवाला देते हैं, जिसमें कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट में हिंदू उपासकों के मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया था। जिस पर अदालत ने कहा कि यह पैराग्राफ आपकी मदद नहीं करता क्योंकि मां श्रृंगार गौरी का 2022 का सूट इससे अलग है। एकमात्र सवाल यह है कि 1993 से पहले दक्षिणी तहखाने पर किसका कब्ज़ा था। आप दोनों (व्यास परिवार और ज्ञानवापी मस्जिद समिति) को यह दिखाना होगा कि जब बैरिकेडिंग की गई थी तब किसका कब्ज़ा था।
इस पर एड0 जैन ने कहा कि हमने यह दिखाने के लिए 1800 के दशक के विभिन्न दस्तावेज़ रिकॉर्ड में रखे हैं कि व्यास तहखाना पर हमारा कब्ज़ा था। मैंने स्वयं से प्रश्न किया कि तहखाने में इतने वर्षों से रामायण पाठ कैसे चल रहा है। इससे पता चलता है कि तहखाने पर मेरा कब्ज़ा था। इस पर अदालत ने एजी से पूछा कि क्या आपने संपत्ति की घेराबंदी कर दी और तहखाने पर कब्ज़ा कर लिया? जिसके जवाब में एजी ने कहा कि मुझे निर्देश लेने होंगे। जिस पर अदालत ने दुबारा सवाल किया कि मान लीजिए सरकार ने कब्ज़ा कर लिया, तो उनके पास मामला है। जिस पर एजी ने कहा कि हमें निर्देश लेने के लिए कम से कम 48 घंटे का समय दीजिए।
हिन्दू पक्ष के तरफ से जिरह के बाद ज्ञानवापी मजिस्द के जानिब से पेश हुवे अब वरिष्ठ वकील एसएफए नकवी ने ज्ञानवापी मस्जिद समिति के लिए अपनी दलीलें शुरू कीं। एड नकवी ने कहा कि डीएम प्रतिवादी 2 की कार्यकारी समिति के पदेन सदस्यों में से एक है। एक अंतरिम आदेश के माध्यम से, उसे कुछ कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा गया था। अब वह एक-दूसरे के विपरीत दो अलग-अलग कर्तव्य निभा रहे हैं। यदि संपत्ति 17 जनवरी को डीएम की हिरासत में दी गई थी, तो क्या उन्हें वह कर्तव्य निभाने के लिए कहा जा सकता है जो वादी चाहता है? क्या कोई अदालत वादी को ऐसे अप्रत्यक्ष मार्ग से संपत्ति पर कब्ज़ा करने की अनुमति दे सकती है?
वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी ने दलील दिया कि उन्हें (डीएम को) 24 तारीख को 17वें आदेश द्वारा जो भी कब्ज़ा सौंपा गया था, उन्होंने उसकी रक्षा नहीं की क्योंकि उन्होंने वादी द्वारा इसमें हेरफेर की अनुमति दी थी। क्या 17 जनवरी का आदेश पारित करने के बाद, भले ही मैं मान लूं कि आदेश सही है, क्या डीएम को 31 जनवरी के आदेश के अनुसार काम करने का निर्देश दिया जा सकता है? अंतरिम निषेधाज्ञा आवेदन की अनुमति देकर मुख्य वाद को अनुमति दे दी गई है। इस अंतरिम व्यवस्था द्वारा वस्तुतः मुकदमे के एक भाग की अनुमति दे दी गई है। निर्णयों की एक श्रृंखला है, आधिपत्य को पता है कि अंतरिम चरण में अंतिम राहत नहीं दी जा सकती है।
इस पर अदालत ने सीपीसी का जिक्र करते हुए कहा कि धारा 152 सीपीसी के तहत चूक आकस्मिक चूक की परिकल्पना करती है। जिला न्यायाधीश ने आवेदन को पूर्णतया स्वीकार करते हुए पहली प्रार्थना को मंजूर कर लिया और अगर आप 31 जनवरी का आदेश देखेंगे तो आपकी भी बात सुनी गई। आपने उस समय कोई आपत्ति नहीं जताई। क्या आपने उसी दिन डीजे के समक्ष कोई आवेदन दिया था जिस दिन वह ऐसा आदेश पारित नहीं कर सका? जिस पर एड नकवी ने अदालत को बतया कि ‘नहीं, वो रिटायर हो चुके थे।’ इस पर अदालत ने कहा कि आवेदन पद के लिए है, व्यक्ति के लिए नहीं। आप सहमत हैं कि उस दिन आपकी बात सुनी गई। जिसके प्रतिउत्तर में एड नकवी ने कहा हां।
इसके बाद एड नकवी ने जिरह जारी रखते हुवे दलील दिया कि 31 जनवरी के आदेश में ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि एक्सीडेंटल स्लिप हुई हो। नकवी ने सीपीसी की धारा 152 का हवाला देते हुए कहा: 31 जनवरी के आदेश में ऐसा कोई अवलोकन नहीं है कि वह आदेश को सही करने के लिए सुपर मोटो आदेश पारित कर रहे थे। ‘या आवेदन पर’ आवेदन कहां है? जब कोई आवेदन ही नहीं है तो वह शक्ति का प्रयोग कैसे कर सकते हैं? ये हवा में तर्क हैं। यहां, डीजे को यह बताना चाहिए था कि वह स्वत: संज्ञान ले रहा है। इस पर अदालत ने पूछा कि तो आपके अनुसार, उनके उल्लेख पर, स्वत: संज्ञान कार्रवाई की गई थी, तो क्या यह कार्रवाई न्यायाधीश द्वारा स्वत: संज्ञान नहीं है? जिसके प्रतिउत्तर में एड0 नकवी ने कहा कि उन्होंने यह नहीं बताया है कि वह सीपीसी की धारा 152 के तहत शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं।
अदालत ने एड0 नकवी के इस दलील पर कहा कि धारा का उल्लेख न करना अप्रासंगिक है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की श्रेणियाँ हैं। ऐसे कई निर्णय हैं जो यह प्रदान करते हैं कि न्यायालय की स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति पर कोई रोक नहीं है। जिस पर एड नकवी ने कहा कि आदेश में यह नहीं लिखा है कि यह स्व-प्रेरणा से पारित किया जा रहा है, आदेश हवा में है। डीजे का आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर है। इस पर नकवी ने आवेदन के अभाव में आदेश पूरी तरह से अधिकार क्षेत्र से बाहर है और रद्द किया जा सकता है। 1993 में, व्यास परिवार ने पूजा का अधिकार छोड़ दिया। मैं दीन मोहम्मद मामले पर भरोसा कर रहा हूं, क्योंकि इससे यह पता नहीं चलता कि वहां कोई तहखाना है जिस पर मुसलमानों के अलावा किसी और का कब्जा है।
इस पर अदालत ने कहा कि पहले मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। दीन मोहम्मद मामले में यह कहा गया था कि आपको केवल नमाज अदा करने का अधिकार दिया गया है। कोई मार्ग सही नहीं है। सरकार अपने डब्लूएस में आई थी। यह फैसला किसी की मदद नहीं करता है। वह इस पर टिप्पणियाँ कर रही है। आप दोनों यह निर्णय आपकी मदद नहीं करेगा। जिस पर एड0 नकवी ने कहा कि वैसे तो हमने कभी व्यास तहखाना में नमाज नहीं पढ़ी, लेकिन 1993 से यह हमारे कब्जे में है, सीआरपीएफ के पास है। जिस पर अदालत ने कहा कि लेकिन व्यास परिवार का कहना है कि उनकी सेलर तक पहुंच थी। इसके जवाब में एड0 नकवी ने कहा कि तहखाना भंडार कक्ष के रूप में था, वहां कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता था। बांस-बल्लियां रखी हैं वहां। इससे उन्हें कोई अधिकार नहीं मिलता। इसका उपयोग भण्डार कक्ष के रूप में किया जाता था और अधिक कुछ नहीं।
एड0 नकवी ने कहा कि वे शुरू से ही राज्य सरकार के खिलाफ राहत की मांग कर रहे हैं, लेकिन अंत में मुझे ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। राज्य सरकार पर आरोप है कि बैरिकेडिंग की गई. हमें पार्टी बनाया गया लेकिन हमारे खिलाफ कोई राहत नहीं मांगी गई।’ मुकदमा खारिज किये जाने योग्य है। राज्य सरकार के खिलाफ राहत मांगी गई है, लेकिन उन्हें पार्टी नहीं बनाया गया है। अब सूट चले ना चले अब क्या फायदा नहीं। संपत्ति की प्रकृति बदल दी गई है. सूट फाइल हुआ. ट्रांसफर करके अपने पास मंगवा लिया, और ऑर्डर पास कर दिया। मुक़दमा अपने आप में विभाजन पैदा करता है क्योंकि मुक़दमे में उन्होंने जो कुछ भी कहा है, पार्टियों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता।
इस संबध में नकवी ने कहा कि वादपत्र में उन लोगों के खिलाफ बेतुके बयान दिए गए हैं, जिन्होंने कोई पार्टी नहीं बनाई है। मुझे नहीं पता कि जब राज्य कोई पक्ष नहीं है तो महाधिवक्ता यहां क्यों बैठे हैं। अगर वह यहां है तो इसका मतलब है कि दोनों के बीच कुछ है। जिसके जवाब में एजी ने कहा कि हम यहां कानून और व्यवस्था के लिए हैं। इस पर अदालत ने एड0 नकवी से कहा कि वह कोर्ट के अधिकारी हैं। जिस पर सख्त एतराज जताते हुवे एड0 नकवी ने कहा कि लेकिन वो CRT में बैठे हैं तो लोगों को आश्चर्य हो रहा है. अगर आप कानून एवं व्यवस्था के लिए आदेश करेंगे तो स्थायी वकील संवाद कर सकते हैं। मैं यहां एक नेक्सस स्थापित कर रहा हूं. इस पर अदालत ने कहा कि ‘तो आप कोर्ट के खिलाफ भी कह रहे हैं?’ जिस पर नकवी ने कहा ‘मैं कोर्ट के खिलाफ कुछ नहीं कह सकता.’ मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को सुबह 10 बजे तय की गई है।