बहराइच हिंसा के बाद चलने की तैयारी में खड़े योगी सरकार के बुलडोज़र पर लगाया सुप्रीम कोर्ट ने ‘पॉवर ब्रेक’
तारिक खान
डेस्क: बहराइच के महसी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद पीडब्लूडी के द्वारा नोटिस जारी कर कथित अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए बुलडोज़र कार्यवाही की चतुर्दिक निंदा हुई थी। इस क्रम में रविवार को हाई कोर्ट इलाहाबाद के लखनऊ बेंच ने रोक लगा दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट से भी उत्तर प्रदेश सरकार को जोर का झटका लगा है और योगी सरकार के बुलडोज़र पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ‘पॉवर ब्रेक’ लगा दिया है।
आज सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक सड़कों, फुटपारथों, रेलवे लाइनों याजल निकायों पर अतिक्रमण से जुड़े मामलों को छोड़कर देशभर में बिना अनुमति के बुलडोजर ऐक्शन पर रोक लगा दी है। बीते एक अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने सरकारी अधिकारियों द्वारा गैर कानूनी बुलडोजर विध्वंस को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच में अपना फैसला सुरक्षित रखा।
पिछले हफ्ते लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने धार्मिक जुलूस के दौरान संगीत बजाने को लेकर बहराइच जिले के एक गांव में सांप्रदायिक हिंसा में शामिल तीन लोगों को ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किया। आपको बता दें कि इस हिंसा में रामगोपाल मिश्र की गोली लगने से मौत हो गई थी। याचिकाकत्ताओं ने दावा किया कि संपत्तियां 10-70 साल पुरानी हैं और आरोप लगाया कि प्रस्तावित विध्वंस कार्यवाही दंडात्मक है। उन्होंने कहा कि सरकार का अनधिकृत निर्माण का दावा केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानने का एकबहाना है।
मंगलवार को याचिकाकताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि आवेदक के पिता और भाई में से एक ने आत्मसमर्पण कर दिया था। कथित तौर पर 17 अक्टूबर को नोटिस जारी किए गए थे और 18 अक्टूबर की शाम को चिपकाए गए थे। वकील सीयू सिंह ने कहा, ‘आपके आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है। पीडब्ल्यूडी ने तीन दिनों के भीतर विध्वंस के लिए नोटिस जारी किए हैं।‘
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी मामले की सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर किसी तरह की रोक तो नहीं लगाई, लेकिन ध्वस्तीकरण नोटिस से प्रभावित लोगों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया था। लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता सैय्यद अकरम आजाद ने बताया कि याचिका दाखिल करने वालों में अब्दुल हमीद की बेटी, दिल्ली की संस्था एसओसीएसएम फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट है, जो राष्ट्रीय स्तर पर काम करती है।