शादी का झांसा देकर शारीरिक सम्बन्ध बनाने के मामले में आरोपी पर दर्ज ऍफ़आईआर रद्द करने का हुक्म देते हुवे सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘सहमति से बने जोड़ो के बीच रिश्ता टूटने पर अपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं हो सकती’
इदुल अमीन
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने शादी का झांसा देकर एक महिला से बार-बार बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज कर दिया। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा, ‘सहमति से बने जोड़े के बीच रिश्ता टूटने पर आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं हो सकती। शुरुआती चरणों में पक्षों के बीच सहमति से बने रिश्ते को आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता, जब उक्त रिश्ता वैवाहिक रिश्ते में तब्दील न हो जाए।’
शिकायतकर्ता ने सितंबर 2019 में ऍफ़आईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने शादी का झूठा वादा करके उसका यौन शोषण किया। उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए। उसने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने उसे शारीरिक संबंध बनाते रहने की धमकी दी थी, अन्यथा वह उसके परिवार को नुकसान पहुंचाएगा। अपीलकर्ता ने आईपीसी की धारा 376(2)(एन) और 506 के तहत किए गए कथित अपराधों के लिए दर्ज ऍफ़आईआर रद्द करने की मांग करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रथम दृष्टया सबूत मौजूद हैं। न्यायालय ने शिकायतकर्ता के आरोपों को अविश्वसनीय पाया। इसने नोट किया कि कथित जबरन यौन मुठभेड़ों के बाद भी वह अपीलकर्ता से मिलती रही, जिससे संकेत मिलता है कि संबंध सहमति से था। साथ ही दोनों पक्ष शिक्षित वयस्क थे। इस बात का कोई संकेत नहीं था कि संबंध शादी के वादे के साथ शुरू हुआ था। अदालत ने कहा, ‘ऍफ़आईआर की समीक्षा और धारा 164 सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता के बयान से इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता कि 2017 में उनके रिश्ते की शुरुआत में शादी का कोई वादा किया गया था। इसलिए भले ही अभियोजन पक्ष के मामले को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार कर लिया जाए, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ता से केवल शादी के किसी आश्वासन के कारण ही यौन संबंध बनाए। पक्षों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण और सहमति से बने थे।’
न्यायालय ने कहा, ‘जैसा कि उपरोक्त विश्लेषण में दिखाया गया, तथ्य जो विवाद में नहीं हैं, वे संकेत देते हैं कि धारा 376 (2) (एन) या 506 आईपीसी के तहत अपराध के तत्व तत्काल मामले में स्थापित नहीं हैं। हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की कि शिकायतकर्ता की ओर से कोई सहमति नहीं थी। इसलिए वह समय के साथ यौन उत्पीड़न की शिकार थी। इसलिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन को पूरी तरह से गलत आधार पर खारिज कर दिया। वर्तमान मामले के तथ्य हाईकोर्ट के लिए उचित हैं कि वह अभियोजन जारी रखकर न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत उपलब्ध शक्ति का प्रयोग करे।’