संभल की शाही जामा मस्जिद सर्वे के दौरान हिंसा पर बोले ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ‘संभल के तीन नौजवानों की शहादत का ज़िम्मेदार कौन ?’

तारिक आज़मी

वाराणसी: संभल आज साम्प्रदायिकता की आग में जल उठा। सदियों पुरानी सम्भल की शाही जामा मस्जिद के मंदिर होने के दावे के साथ गुजिश्ता मंगल को दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुवे याचिका दाखिला के दिन ही मस्जिद के कोर्ट कमिश्नर द्वारा सर्वे का आदेश अदालत ने किया। आदेश के चंद घंटो के अन्दर ही मस्जिद का सर्वे हुआ। आज एक बार फिर सर्वे टीम सर्वे करने पहुची तो मौके पर जमकर बवाल हो गया। इस हिंसा में तीन युवको की जान गई है। कई पुलिस कर्मी और जनता के लोग घायल है।

इस मामले में त्वरित प्रतिक्रिया के तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने सवाल करते हुवे कहा है कि इन तमाम विवादों के बीच तीन नवजवान आज जो संभल में शहीद हुवे है उसका ज़िम्मेदार कौन है? उन्होंने कहा कि हरिशंकर जैन और विष्णु जैन द्वारा दाखिल की जा रही मस्जिदों के मुखालिफ याचिकाओ पर अगर प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट के तहत फैसले होते तो आज ऐसे माहोल न बने होते।

एसएम यासीन ने कहा कि ‘बाबरी मस्जिद मामले में उच्चतम न्यायालय की पीठ ने घोर अन्याय करते हुए हमारी मस्जिद की जगह उन लोगों को दे दी जो उसके कत्तई हक़दार नहीं थे। तभी से न्यायिक आतंकवाद की नींव पड़ी। इन्साफ के क़ातिलों को खूब इनाम से नवाज़ा गया। मुख्य न्यायाधीश को तो रिटायर्मेंट के बाद राज्यसभा की सदस्यता मिल गई। तभी से हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन एडवोकेट के हौसले बुलंद होगए। प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 को बाबरी मुक़दमे में जगह तो मिली लेकिन अमल दरामद नहीं हुआ। 1991 में कुछ लोगों ने ज्ञानबाफी मस्जिद के विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया था, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1998 में प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 के आधार पर स्टे दिया था।’

एसएम यासीन ने कहा कि ‘2020 में केस सुना जाने लगा। हम लोग सर्वोच्च न्यायालय मे अपील किए। हमारी कोशिश अभी तक न्यायिक आतंक के कारण सुनी नही जा सकी। पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीश ने ज़रूरत नहीं समझी। दरअसल आज जो कुछ हो रहा है उसकी पूरी ज़िम्मेदारी इन्ही महाशय पर है, अगर हमारे मुक़दमे पर इमानदारी से प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 अनुसार फ़ैसला हो गया होता तो कहीं पर किसी भी मस्जिद पर मुक़दमा नहीं होता। बहुतों ने मुक़दमात क़ायम कर शोहरत और धन लाभ का ज़रिया बना लिया। जगह-जगह मुक़दमात क़ायम कर देश की फिज़ा को ज़हर आलूद कर रहे हैं।’

उन्होंने कहा कि ‘अदालतें सहयोगी की भूमिका में नज़र आ रही हैं। श्री चन्द्रचुड आगे आगे रहे। 31 जनवरी 2024 को जब बनारस के ज़िला जज ने हमारी मस्जिद की दक्षिणी तहखाना मे पद लाभ की खातिर पूजा की इजाजत दी उसके विरूद्ध भी हमारे वकील साहबान मेहनत कर सर्वोच्च न्यायालय गए, लेकिन हमारी फरियाद देखे सुने बगैर हमे इलाहाबाद जाने को कहा गया। यहां बनारस मे अफसरान बैरिकेडिंग काटकर, बाहर से मूर्तियां ले जाकर मंडलायुक्त महोदय जजमान बन बैठे। पूजा शुरु करायी। हमारी अपील सर्वोच्च न्यायालय में आज भी पेंडिंग है।’

एसएम यासीन ने कहा कि ‘इसी प्रकार एक न्यायाधीश ने हमारे फौव्वारे को  अन्याय पूर्वक सील कर दिया। इसकी भी अपील सर्वोच्च न्यायालय में पेंडिंग है। यह सब लिखने का तात्पर्य यह है कि न्यायालय सही समय में सही निर्णय लेने में असमर्थ रहे। पूरे मुल्क में आज जो कुछ भी हो रहा है मसजिदो के विरुद्ध उसमें न्यायालयों की बहुत बड़ी भूमिका है। हम ज्यादातर इसके लिए श्री चन्द्रचुड को ज़िम्मेदार मानते है। उन्हों ने इतना भी ज़रूरी नहीं समझा कि बनारस के डीएम साहब से पूछते किस आदेश के तहत बैरिकेडिंग काटी गई जब कि सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका इसको लगाने मे थी। सीआरपीएफ सुरक्षा के बजाय क्या कर रही थी। मंडलायुक्त महोदय जजमान कैसे बन बैठे।’

उन्होंने कहा कि ‘अब भी न्यायालय न्याय के बजाय अन्याय करते रहेंगे तो न जाने कितने संभल देखने को मिलेंगे। इन सब को रोकने का एक ही उपाय है वह है प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 की वैधानिक मान्यता और सर्वोच्च न्यायालय ही दे सकती है। हम न्याय हासिल करने को उत्सुक है।’

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