झूठे गोकशी के आरोप में गुजरात की गोधरा पुलिस ने नजीर और इलियास को भेजा था जेल, अब अदालत ने किया ब-इज्ज़त बरी, साथ ही पुलिसकर्मियों पर अपराधिक मामला दर्ज करने का दिया हुक्म

ईदुल अमीन

डेस्क: गोधरा की एक अदालत ने जुलाई 2020 में दर्ज गौकशी के दो आरोपियों को दोषमुक्त करते हुवे ब-इज्ज़त बरी कर दिया है। साथ ही तीन पुलिसवालों और मामले के दो गवाहों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 248 (झूठे आरोप लगाना) के तहत आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि दोनों गवाह खुद को गोरक्षक बताते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि दोनों गवाहों ने गोकशी के फर्जी आरोप लगाए है। दोनों दोषमुक्त व्यक्तियों का नाम नजीर मिया और इलियास है।

यही नहीं अदालत कहा कि दोनों आरोपियों को गलत तरीके से लगभग 10 दिन तक न्यायिक हिरासत में रखा गया। जिसके लिए दोनों आरोपी हर्जाने के भी मुस्तहक है और वो अगर चाहें तो इस संबंध में राज्य सरकार, मामले में शामिल पुलिसवालों और गवाहों के खिलाफ केस कर सकते हैं। कोर्ट ने तल्ख़ लफ्जों में कहा कि ‘यह साफ हो चुका है कि दोनों आरोपियों के खिलाफ गलत शिकायत की गई थी। इस पूरे मामले में गवाहों और पुलिसवालों की मिलीभगत है। इस केस की जांच कर रहे अधिकारी से उम्मीद थी कि वो पूरी निष्पक्षता और कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए जांच करेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आरोपियों के खिलाफ ऐसे अपराधों को अंजाम देने की चार्जशीट फाइल कर दी, जिनका उनसे दूर-दूर तक लेना देना नहीं है।’

इसके साथ ही कोर्ट ने गोधरा पुलिस के एसपी को भी एक आदेश दिया। कहा कि इस मामले में शामिल पुलिस अधिकारियों रमेश भाई नरवत सिंह, शंकर सिंह, सज्जन सिंह और एम0 एस0 मुनिया के खिलाफ विभागीय जांच की जाए। और ये जानकारी भी कोर्ट को दी जाए कि इनके खिलाफ क्या एक्शन लिया गया है। रमेशभाई और शंकरसिंह इस समय हेड कॉन्सटेबल हैं और एमएम सुनिया सब-इंस्पेक्टर। लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने मुख्य तौर कहा कि दोनों गवाह स्थानीय निवासी नहीं हैं। पुलिस ने उन्हें 8-10 किलोमीटर दूर से बुलाया था। उन्होंने जो बातें कहीं, उनके ऊपर भरोसा नहीं किया जा सकता।

अदालत ने कहा कि गवाहों से जब सवाल पूछे गए तो उनमें से एक ने कहा कि वो इस तरह के कई मामलों में गवाह के तौर पर शामिल है। उसने ये भी कहा कि इस तरह के मामलों में उसे नियमित तौर पर गवाह के तौर पर बुलाया जाता है। इस तरह का गवाह एक ‘स्टॉक विटनेस’ है। मतलब, जब पुलिस को जरूरत पड़ती है तो वो इस शख्स को गवाह के तौर पर बुला लेती है। अलग-अलग अदालतें इस तरह के गवाहों की बातों पर भरोसा नहीं करती हैं। असिस्टेंट हेड कॉन्सेटबल रमेश भाई ने माना है कि हो सकता है कि गाय को दूध दुहने के लिए ले जाया जा रहा हो। ये बात लगाए गए आरोपों के खिलाफ जाती है।

अदालत ने कहा कि दूसरे हेड कॉन्सटेबल ने जो सबूत दिए, उनसे साबित नहीं होता कि जानवरों को मारने के लिए ले जाया जा रहा था। इनवेस्टिगेटिंग ऑफिसर ने वध वाले एंगल पर जांच ही नहीं की। ना ही ये बताया कि जानवरों को किस जगह पर मारने के लिए ले जाया जा रहा था। दूसरे आरोपी डवाल तो ड्राइवर के साथ गाड़ी में मौजूद भी नहीं थे। उन्होंने जानवरों को लाने-ले जाने के लिए ड्राइवर को हायर किया था।

इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि पुलिस ने जिन जानवरों को शेल्टर होम भेज दिया है, उन्हें तुरंत मालिक डवाल को सौंपा जाए। यह काम 30 दिन के भीतर किया जाना है। इसके साथ ही सरकार को डवाल को पैसे देने होंगे। ये पैसे जानवरों की खरीद की कीमत के बराबर होंगे। यानी 80 हजार रुपये। साथ ही साथ सरकार को 9 परसेंट ब्याज भी देना होगा। इस ब्याज की गिनती तब से होगी, जब पुलिस ने जानवरों को अपने कब्जे में लिया था।

मामले के सम्बन्ध में बताया गया कि गुजरात के गोधरा पुलिस स्टेशन के कुछ अधिकारियों ने एक गाड़ी को रोका। इस गाड़ी में उन्हें एक गाय, एक भैंस और भैंस का एक बच्चा मिला। पुलिसवालों ने गाड़ी के ड्राइवर नजीर मिया साफी मिया मलिक से इन जानवरों को ले जाने की वजह पूछी। पुलिस के मुताबिक, ड्राइवर कुछ नहीं बता पाया। पुलिस ने फिर इन जानवरों के मालिक इलियास मोहम्मद डवाल से संपर्क किया। पुलिस के मुताबिक, डवाल ने भी वजह नहीं बताई।

जिसके बाद पुलिस ने मान लिया कि इन जानवरों को मारने के लिए ले जाया जा रहा है। इसके बाद पुलिस ने दोनों के खिलाफ गुजरात एनीमल प्रिजर्वेशन एक्ट 2017 और एनीमल क्रुएल्टी एक्ट 1860 की कई धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया गया। IPC की धारा 279 भी लगाई गई और साथ ही साथ मोटर विहिकल एक्ट की धाराओं 117 और 184 के तहत भी मामला दर्ज हुआ। गुजरात पुलिस एक्ट की धारा 119 भी लगाई गई। कुल मिलाकर दोनों के खिलाफ एक भारी-भरकम केस बनाया गया।

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