संभल: मंदिर पर अतिक्रमण को लेकर प्रशासन के दावो पर आखिर क्यों उठ रहे सवाल ? संभल का मुद्दा पंहुचा विधानसभा के सदन तक, पढ़े क्या कहते है स्थानीय निवासी
ईदुल अमीन
डेस्क: संभल बीते दिनों शाही जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई हिंसा के कारण चर्चा में था और अब एक मंदिर के चलते फिर से सुर्ख़ियों में आ गया है। शनिवार को ज़िला प्रशासन ने एक प्राचीन शिव मंदिर मिलने का दावा किया जो कथित तौर पर 1978 से बंद था। प्रशासन का दावा है कि अतिक्रमण के चलते मंदिर बंद पड़ा था और मंदिर में कोई भी नहीं आता था।
हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर रस्तोगी समाज का है और अतिक्रमण का दावा सही नहीं है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, स्थानीय प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को पत्र लिखकर कार्बन डेटिंग की मांग की है। प्रशासन की तरफ़ से मंदिर में अतिक्रमण का दावा किया जा रहा है लेकिन नगर हिंदू महासभा के संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी प्रशासन के इस दावे से अलग बात कह रहे हैं। समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में विष्णु शरण रस्तोगी कहते हैं, ‘हमारा परिवार मेरे जन्म के पहले से यहां खग्गू सराय में रहता था। 1978 के बाद हम मकान बेचकर चले गए थे। मेरी उम्र 82 साल है। भगवान शंकर का मंदिर है और ये हमारे कुलगुरु हैं।’
जब पत्रकार ने सवाल पूछा कि आप लोग यहां आते नहीं थे या आने नहीं दिया जाता था? इस सवाल पर विष्णु शरण रस्तोगी कहते हैं, ‘आने जाने पर कोई रोक नहीं थी। यहां हमारी (हिन्दुओं) कोई आबादी नहीं थी इसलिए सभी लोग पलायन कर गए थे। यहां से हम चले गए तो मंदिर की देखभाल कर नहीं पाए इसलिए यहां कोई पुजारी नहीं टिक पाता था। मंदिर पर क़ब्जे़ के सवाल पर विष्णु शरण कहते हैं, ‘मंदिर हमारे अंडर है। हमारे भतीजे ने इस पर ताला लगाया था। उसके बाद यहां आना-जाना कम हो गया था क्योंकि पुजारी नहीं था।’
बताते चले कि प्रशासन का दावा है कि 1978 से मंदिर बंद था लेकिन पलायन करने वाले कुछ हिन्दू परिवारों की राय प्रशासन के दावे से बिल्कुल अलग है। वर्तमान में संभल के कोट मोहल्ले में रहने वाले धर्मेंद्र रस्तोगी का दावा है कि उन्होंने 2006 तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना देखी थी। निजी समाचार चैनल एबीपी न्यूज़ से बातचीत करते हुए धर्मेंद्र कहते हैं, ‘मंदिर रस्तोगी बिरादरी का है। 2006 में मेरा परिवार यहां से चला गया था। डर जैसी कोई वजह नहीं थी, सब लोग चले गए थे इसलिए हम लोग भी चले गए।’
क्या मंदिर पर अतिक्रमण होना शुरू हो गया था? इस पर धर्मेंद्र रस्तोगी कहते हैं, ‘मंदिर तो जैसा था वैसा ही है। कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है मंदिर पर। मंदिर के बगल में दीवार और जो कमरा है वो भी हम लोगों ने ही बनवाया था। मंदिर की चाबी रस्तोगी परिवार के पास थी।’ एक और स्थानीय निवासी प्रदीप वर्मा का कहना है, ‘मेरा परिवार 1993 तक इसी गली में रहता था। इसके बाद हम कभी-कभार यहां आते थे। 1993 के बाद वे (रस्तोगी परिवार) कभी-कभार इस इलाके़ में आते थे। मंदिर की चाबियां रस्तोगी परिवार के पास थीं।’
बताते चले कि साल 1976 में फ़रवरी के महीने में जामा मस्जिद में कथित तौर पर एक मौलाना की हत्या हुई और हत्या का आरोप एक हिन्दू युवक पर लगा। इसके बाद इलाक़े में दंगे हुए और महीनों तक कर्फ़्यू लगा रहा। हालांकि एक पक्ष का दावा है कि मौलाना की हत्या एक मुस्लिम युवक ने की थी। इस घटना के बाद मंदिर के गेट के ठीक बगल में एक पुलिस चौकी बना दी गई थी जो अब तक मौजूद है। यह वह वक्त था तब संभल ज़िला नहीं था और मुरादाबाद ज़िले का हिस्सा था। 1976 की तुलना में साल 1978 में हुई हिंसा बड़े पैमाने पर हुई और इसकी अवधि भी ज़्यादा थी।
संसदीय रिकॉर्ड बताते हैं कि इसकी शुरुआत स्थानीय कॉलेज में छात्रों की लड़ाई से हुई थी। कुछ ही देर में लड़ाई सांप्रदायिक हो गई और फिर विवाद कॉलेज से निकलकर सड़क पर आ गया। तब स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि अप्रैल 1978 के संसद सत्र में इसकी चर्चा हुई थी। सांसदों के एक समूह ने भारतीय लोक दल की संभल की शांति देवी और कांग्रेस के अनंतनाग सांसद मोहम्मद शफ़ी अब्बासी क़ुरैशी के नेतृत्व में हिंसा का मुद्दा उठाया था।
संभल के मुद्दे की गूंज पहुची विधानसभा तक
उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र सोमवार को शुरू हुआ और पहले ही दिन हंगामे की स्थिति बन गई। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय विधानसभा में संभल पर चर्चा की मांग कर रहे थे जिसे विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने स्वीकार नहीं किया। इसके बाद समाजवादी पार्टी के विधायक नारेबाज़ी करते हुए अध्यक्ष सतीश महाना के सामने एकजुट हो गए। थोड़ी देर बाद जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आमने-सामने आ गए।
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने जब बोलना शुरू किया तो पहले उन्होंने बहराइच हिंसा और फिर संभल पर अपनी बात रखी। माता प्रसाद पांडेय ने कहा, ‘यह जानते हुए भी कि सर्वे के बावजूद प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के अनुसार उसका मूल रूप नहीं बदला जा सकता है। मस्जिद को मंदिर नहीं बनाया जा सकता है और मंदिर को मस्जिद नहीं बनाया जा सकता है। तो फिर सर्वे का क्या मतलब है। सर्वे का मतलब है हमारी सांप्रदायिक भावना को चोट पहुंचाना है।’
मंदिर के मामले पर माता प्रसाद पांडेय ने कहा, ‘मंदिर तो वहां पहले से ही था, कोई पुरातत्ववेत्ता ने तो उसे खोदकर निकाला नहीं है। यह हुआ कि उस मंदिर का ताला खोलकर आपने वहां पूजा-अर्चना की और पुजारी बैठा दिया है। मंदिर का कोई विरोधी नहीं है।’ इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चर्चा को आगे बढ़ाया। योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया कि नेता प्रतिपक्ष ने अपनी रुचि और एजेंडे के तहत अपनी बात रखी है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘न्यायालय के आदेश पर ज़िलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का काम था कि सर्वे को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराना। लगातार सर्वे का काम चल रहा था और सर्वे के कार्य के दौरान दो दिन तक कोई शांति भंग नहीं हुई। जुमे की नमाज़ के पहले और बाद में जिस तरह की तक़रीरें दी गई थीं उन तक़रीरों से माहौल ख़राब हुआ था। हमारी सरकार ने तो पहले ही कहा है कि हम न्यायिक आयोग बनाएंगे और माननीय सदन में उसकी रिपोर्ट भी आएगी।’