कर्णाटक विश्वविद्यालयो में राज्यपाल नहीं अब सीएम होंगे चासलर, विधानसभा में पेश विधेयक हुआ पास
फारुख हुसैन
डेस्क: कर्नाटक की विधानसभा में मंगलवार को कर्नाटक राज्य ग्रामीण विकास और पंचायत राज (संशोधन) विधेयक पारित किया गया। जिसके बाद अब विश्वविद्यालयों में चांसलर के पद पर राज्यपालों की बजाय मुख्यमंत्रियों को जगह देने वाले राज्यों में अब कर्नाटक का नाम भी शामिल हो गया है। इससे पहले केरल, तमिलनाडु और गुजरात में भी यही प्रावधान किया जा चुका है।
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से खींचतान के बीच ये संशोधन विधेयक राज्य की कैबिनेट के सामने विचार-विमर्श के लिए आया था। राज्यपाल और सीएम के बीच बीते साल कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्तियों पर टकराव देखने को मिला था। विधानसभा में जब विपक्षी बीजेपी ने इस विधेयक का विरोध किया तब राज्य के ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि ये मिसाल गुजरात में बीजेपी की सरकार ने ही रखी है, जहाँ राज्यपाल की शक्तियां छीन ली गईं।
विधेयक को लाने के कारण और उद्देश्यों के बारे में कहा गया है, ‘कर्नाटक राज्य ग्रामीण विकास और पंचायत राज यूनिवर्सिटी एक्ट 2016 में संशोधन करना इसलिए ज़रूरी समझा गया है ताकि (1) मुख्यमंत्री को कुलाधिपति बनाया जा सके और (2) जिससे सर्च कमिटी के सुझाए तीन सदस्यों वाले पैनल से चांसलर द्वारा कुलपतियों की नियुक्ति का प्रावधान किया जा सके।’
बीते कुछ सालों में राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच टकराव के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, ख़ासतौर पर जो राज्य ग़ैर-बीजेपी शासित हैं। वाइस चांसलरों यानी कुलपतियों की नियुक्ति के मुद्दे पर केरल में राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के बीच तो टकराव लंबे समय तक देखा गया है। तमिलनाडु में भी स्थितियां कुछ ऐसी ही हैं। यहां राज्यपाल एन रवि और मुख्यमंत्री एके स्टालिन के बीच ये टकराव है। तमिलनाडु की विधानसभा में अप्रैल 2022 में ही एक विधेयक पास किया गया था, जिसके तहत राज्य के 13 विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर नियुक्त करने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया।
केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने तो इन विधेयकों के राज्यपाल के पास लंबित रहने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया था। बीते महीने ही कर्नाटक की कैबिनेट ने एक निजी विश्वविद्यालय चाणक्य यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के सदस्य के तौर पर एक सरकारी नॉमिनी के नामांकन को स्वीकृति दी थी। शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर वीपी निरंजनाराध्य ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘अगर आप पड़ोसी राज्यों में होने वाले विकास और यूनिवर्सिटी की नियुक्तियों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नज़रअंदाज़ करते हुए राज्यपालों की अत्यधिक भूमिका को देखें, तो ये एक अच्छा क़दम है। इससे विश्वविद्यालयों के विकास में मदद होगी क्योंकि मुख्यमंत्री विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होंगे। दुर्भाग्य से राज्यपाल ख़ुद ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।’