फ़िलिस्तीन के संबंध में इस्लामी देशों के संकल्प का प्रतीक है क़ुद्स दिवस

करिश्मा अग्रवाल
अब जबकि पवित्र रमज़ान के आख़िरी जुमे में जिसे इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने क़ुद्स दिवस घोषित किया है, सिर्फ़ दस दिन बचे हैं, इस्लामी हस्तियां फ़िलिस्तीन की रक्षा में इस्लामी देशों में एकजुटता की ज़रूरत पर बल देती हैं।

1948 में फ़िलिस्तीन की अतिग्रहित भूमि में इस्लामी आंदोलन के नेता शैख़ राएद सालेह ने कहा कि क़ुद्स शहर के ज़ायोनियों के हाथों अतिग्रहण के 50 साल गुज़रने के बाद भी इस शहर के फ़िलिसतीनी अभी भी ज़ायोनियों के हाथों पीड़ा उठा रहे हैं, जिसमें इस्लामी व ईसाई पवित्र स्थलों पर क़ब्ज़ा, स्कूलों के पाठ्यक्रम को बदलना और क़ुद्स के सभी क्षेत्रों में हज़ारों कैमरों का लगाना शामिल है।
इसके अलावा कुछ सरकारों की रणनीति भी फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा और इस्राईल के अपराध बढ़ने में सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। इन सरकारों में अमरीका भी है। डॉनल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमरीका की नई सरकार ने न सिर्फ़ यह कि क़ुद्स के अतिग्रहणकारी शासन के अपराधों की ओर से आंखें मूंद रखी है बल्कि वह अमरीकी दूतावास को तेल अविव से क़ुद्स स्थानांतरित करने सहित ज़ायोनी शासन की इच्छाओं से हां में हां मिलाकर, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के अपराध का समर्थन कर रही है।
इस संदर्भ में एक अहम बिन्दु यह है कि क़ुद्स के अतिग्रहणकारी शासन को अमरीका की ओर से पूरी तरह समर्थन के बावजूद, इस्राईल के अपराध के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीन के समर्थन में इस्लामी देशों के दृष्टिकोण में न सिर्फ़ यह कि दृढ़ता नहीं है बल्कि कुछ अरब देशों के शासक जैसे सऊदी अरब, बहरैन, मिस्र और संयुक्त अरब इमारात ज़ायोनी शासन से निकट संबंध बनाए हुए हैं।
बहरहाल सऊदी अरब, बहरैन, मिस्र और संयुक्त अरब इमारात के फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल के संबंध में रक्षात्मक दृष्टिकोण के बावजूद, क़ुद्स दिवस में इन चार देशों के साथ साथ विभिन्न अरब देशों की जनता की बड़ी संख्या में भागीदारी यह दर्शाती है कि अरब व इस्लामी देशों की जनता फ़िलिस्तीन का समर्थन करने का संकल्प रखती है।

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