जल जीवन और जल संरक्षण पर विशेष
उस समय लोग एक दो बाल्टी या दस पाँच लीटर पानी में स्नान कर लेते थे और कम पानी से कपड़ों की धुलाई आदि कर लेते थे।धीरे धीरे कुओं का स्थान हैन्डपम्पों व वाटर सप्लाई के साधनों ने लिया और जो काम बाल्टी दो बाल्टी से चल जाता था वह दस बीस बाल्टी से होने लगा है।लोग भूल गये कि-” अति किसी चीज की अच्छी नहीं होती है और कहा भी गया है कि-” अति सर्वत्र वर्जयते”।इधर तीन चार दशकों से पानी का इतना दुरुपयोग हुआ और बरसात की कमी के चलते जल स्तर का तेजी से घटना शुरू हो गया है।नदियों का जल स्तर इस कदर घट गया है कि वह सूखने की करीब पहुँच गयी है।रारी कल्याणी मड़हा नइया नाला झील आदि जिनमें साल के बारहों महीने पानी बना रहता था वह सूखी रहती हैं ।पहले के लगे देशी हैन्डपम्प ही अब काम नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ इन्डिया मार्का हैन्डपम्पों में भी पानी आना बंद हो गया है।कुछ जनप्रतिनिधियों द्वारा ठेकेदारों के माध्यम से लगवाये गये हैन्डपम्पों की बोरिंगे मानक के अनुरूप नहीं होती है।यह हैन्डपम्प दस पाँच साल भी ढंग से पानी नहीं देते हैं वह फेल हो जाते हैं।सरकारी या जनप्रतिनिधियों के माध्यम से लगने वाले इन हैन्डपम्पों की मरम्मत का काम ग्राम पंचायत के माध्यम से कराया जाता है किन्तु जो रिबोर लायक हो जाते हैं उनके लिये सरकार जल निगम के माध्यम से धन उपलब्ध कराती है।इस समय गर्मी की शुरुआत में ही पानी की हायतोबा मच गयी है क्योंकि गाँवों में लगे तमाम हैन्डपम्प पिछले दो तीन वर्षों से फेल पड़े हैं।सरकार इतना धन उपलब्ध नहीं करा पाती है कि जल निगम सभी हैन्डपम्पों को रिबोर कर सके।गर्मी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और जान बचाने के लिये जगंली पशु आबादी के मध्य घुसकर प्यास बुझाने लगे हैं ।बरसात कम होने के कारण तालाब नाला सभी सूखे पड़े हैं जिससे पशु पक्षियों का जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। सरकार करोड़ों अरबों खर्च करके तालाब तो खोदवा रही है लेकिन वह ऐसे बने है जो जल ग्रहण करने लायक नहीं है।सभी तालाब सूखे पड़े हैं और खेतों में सिंचाई के लिये लगने वाला पानी फिलहाल जंगली आवारा पशुओं एवं पक्षियों के जीवन का सहारा बना हुआ है।गाँवों में खराब या रिबोर लायक हैन्डपम्पों को हर वर्ष गर्मी शुरू होने से पूर्व ही एक अभियान चलाकर ठीक कराना सरकार का धर्म बनता है।इतना ही नहीं जल संरक्षण को जीवन के यथार्थ में उतारना समय की माँग है और अगर समय रहते जल संरक्षण को अपनी जीवनशैली में नहीं उतारा गया तो जीवन असंभव हो जायेगा।