विशेष लेख – किसान की किसानी है ईश्वरीय पूजा

किसान और किसानी पर विशेष-

सी.पी.सिंह विसेन
साथियों,

किसान को भगवान और खेती किसानी को भगवान का ईश्वरीय कार्य कहा जाता है।जीव का पेट या तो भगवान भरता है या फिर किसान भरता है।किसान की किसानी से किसान का ही नहीं बल्कि पशु पक्षी जीव जन्तुओं तक का पेट भरता है। यहीं कारण है कि किसान की किसानी को ईश्वरीय पूजा और किसान के जीवन को गृहस्थ जीवन का तपोवन कहा जाता है।खेती किसानी को छोड़कर अन्य सभी व्यवसाय निजी स्वार्थ की पूर्ति करने वाले हैं सिर्फ किसानी ऐसी वृत्ति है जो बहुजन सुखाय बहुजन हिताय और विश्वास कल्याण के भाव से की जाती  है। किसानी एक जुयें के समान होती हैं जिसमें यह तय नहीं होता है कि मूलधन आने में सफलता मिलेगी या नहीं मिलेगी।

किसान किसानी भगवान के सहारे और अपने खून पसीने की ताकत से रातदिन लगकर करता है।अंधेरी रात में जब वह पानी लगाने के लिये खेत की मेड़ पर पाँव रखता है तो सिर्फ़ भगवान के सहारे रखता है और वह साँप बिच्छू की परवाह नहीं करता है।किसान की फसल जब तक कटकर घर के अंदर तक नहीं पहुँच जाती है तबतक उसका कोई सहारा नहीं होता है।कभी तो पकी तैयार खड़ी फसल खेत में ही ओला पत्थर गिरने बरसात होने और आग लग जाने से नष्ट हो जाती हैं।किसानी को छोड़कर अन्य हर बीमित चींच का नुकसान होने पर पूरा पैसा बीमा से मिल जाता है तो बीमा बकवास बन जाता है।इस समय किसानी करना भी आसान नहीं रह गया है क्योंकि इसमें भी अच्छी भली रकम लगने लगी है।जुताई अब हल बैल से नहीं बल्कि निजी या किराये के टैक्ट्रर से होती है और दो बांह एक बीघा खेत जुताई कराने के लिये कम से कम तीन सौ साढ़े तीन सौ रूपये खर्च करने पड़ते हैं।बुआई के लिये कम से कम दो बार जुताई करनी पड़ती है।इसके बाद अब हर साल नया बीज खरीदना पड़ता है क्योंकि पहले की तरह हाई ब्रिड बीज से दूबारा बुआई नहीं की जा सकती है।इसके बाद दवा पानी खाद निकाई कटाई सब कुछ पैसे के सहारे होती है।जबसे मनरेगा योजना चल गयी है तबसे मजदूरों की किल्लत हो गयी है तथा मजदूरी के रेट आसमान छूने लगा है।जिस किसान के घर नौकरी व्यवसाय से आमदनी का जरिया नहीं होता है उसे खेती के सहारे जिन्दा रह पाना मुश्किल हो जाता है।यहीं कारण है कि किसान जल्दी अपने कर्जा की अदायगी नहीं कर पाता है और अंत में आत्महत्या कर लेना पड़ता है।

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