कही एक मुलाकात बिहार की राजनीत में नया अध्याय तो नहीं जोड़ रही है ?

जावेद अंसारी
किसी ने कहा है कि राजनीति संभावनाओं की कला है। नेताओं और राजनीतिक दलों की इस कला से हम अक्सर परिचित होते रहते हैं। एक बार बिहार में संभावनाओं की कला के दो कलाकार चर्चा में हैं। बिहार के दो राजनीतिक दलों आरजेडी और आरएलएसपी के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है। आरएलएसपी बीजेपी नीत एनडीए का हिस्सा है। उपेंद्र कुशवाहा नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। साल 2014 के लोक सभा चुनाव और 2015 के विधान सभा चुनाव में आरएलएसपी बीजेपी की साझीदार थी। लालू और उपेंद्र ने सोमवार (16 अक्टूबर) को मुलाकात की। आरजेडी के एक नेता ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि दोनों नेताओं ने साल 2019 के लोक सभा चुनाव से जुड़ी संभावनाओं पर चर्चा की। हालांकि किसी भी नेता ने अभी तक इस मुलाकात पर आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है।
इसी साल अगस्त में जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर बीजेपी से हाथ मिला लिया था। जबकि 2015 का विधान सभा चुनाव जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था लेकिन इन दलों का गठबंधन करीब 20 महीने बाद ही टूट गया। बीजेपी को बिहार में अपना पुराना जोड़ीदार भले वापस मिल गया हो लेकिन नीतीश की एनडीए वापसी के साथ ही इससे उपेंद्र कुशवाहा के नाराज होने की चर्चा होने लगी थी। माना जाता है कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं और उनके साथ नहीं रहना चाहते।
आरएलएसपी नेता नागमणि ने दो दिन पहले ही ये कहकर बिहार की सियासत में बदलाव के संकेत दिए कि उपेंद्र कुशवाहा को बिहार का अगला मुख्यमंत्री होना चाहिए। माना जा रहा है कि कुशवाहा लालू यादव से मिलकर ऐसी संभावनाओं को टटोल रहे थे। अंदरखाने चर्चा है कि अगर आरजेडी और कांग्रेस कुशवाहा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार का चुनाव लड़ने को तैयार हो जाएं एनडीए में टूट पड़नी बहुत मुश्किल नहीं होगी।

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