सारे प्रयास विफल, एचआईवी पीड़ितों की बढ़ रही संख्या
आलोक कुमार श्रीवास्तव
वाराणसी। एक दिसम्बर को सम्पूर्ण विश्व में एड्स दिवस मनाया जाएगा और जन स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक माने जाने वाले हयूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (एचआईवी) एड्स के मामले में लगातार बृद्धि दर्ज की जा रही है। केन्द्र सरकार जनता को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए नित स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा कर रही है। बावजूद आंकड़ों पर गौर किया जाय तो ५ वर्षों में भारत विश्व का सबसे बड़ा एड्स ग्रस्त देश बन जाएगा। वर्तमान में विश्व में एड्स ग्रस्त व्यक्तियों की सर्वाधिक संख्या अफ्रीका में हैं। यदि इसे रोकने के लिये प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले वर्षों में भारत का हर दसवाँ व्यक्ति एड्स की चपेट में आ जाएगा। भारत में एच.आई.वी. संक्रमण की दर २१.०५ प्रति हजार पाई गई है जिसमे पहले स्थान पर महाराष्ट्र व दूसरे स्थान पर तमिलनाडु व मणिपुर है। एड्स के संक्रमण का सबसे बड़ा कारण एक से अधिक लोगों के साथ यौन-संबंध बनाना है, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में इसका मुख्य कारण मादक पदार्थों का इंजेक्शन लेना यही कारण है कि एच.आई.वी. संक्रमण जैसी जानलेवा बीमारी पर अंकुश लगाने के सारे प्रयास विफल होते जा रहे हैं। जबकि एचआईवी संक्रमित लोगों को उपचार कराने एवं उनके प्रति किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकने हेतु समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा द्वारा इस वर्ष 11 अप्रैल को एवं राज्यसभा द्वारा 21 मार्च को ह्यूमन इम्युनोडेफिसिएंसी वायरस (एचआईवी) एवं एक्वॉर्ड इम्युन डेफिसिएंसी सिंड्रम-एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) 2017 पारित किया गया। बावजूद बेलगाम होती इस महामारी के प्रति जागरूकता अभियान पूरी तरह से विफल होता नजर आ रहा है। एचआईवी संक्रमण का भारत में पहला मामला 1986 में चेन्नई के महिला सेक्स वर्करों के बीच पाया गया था।
विश्व में है ये संख्या
वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 3.99 करोड़ लोग विश्व में एड्स से पीड़ित हो चुके थे जिसमें से 12 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी। हमारा देश पूरे विश्व में तीसरा स्थान रखता है यहां 15-20 लाख लोग एड्स जैसी बीमारी से पीड़ित हैं। जिनमें से 1.50 लाख लोगों की वर्ष 2011-2014 के बीच मृत्यु हो गई थी। विश्व में एचआईवी से पीड़ित मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या 10-19 वर्ष के बच्चों की है। वर्ष 2000 के बाद किशोरों के एड्स से पीड़ित होने के मामलों में तीन गुना इजाफा हुआ है। यह दावा यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में किया गया है, जो की चिंता का विषय है। एड्स से पीड़ित दस लाख से अधिक किशोर दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, भारत, मोंजाबिक और तंजानिया में हैं। विश्व का एकमात्र क्यूबा है जहां एचआईवी संक्रमित मरीजों की संख्या शून्य है और वो एचआईवी संक्रमण से मुक्त पहला देश बन चुका है। लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करने के मकसद से 1988 से हर वर्ष एक दिसम्बर को विश्व एड्स मनाया जाता है। एड्स को तमाम जागरूकता, अभियानों के बावजूद अब भी एक संक्रमण नहीं, बल्कि सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है।
पीएम के संसदीय क्षेत्र में बढ़ रही एचआईवी संक्रमित मरीजों की संख्या
आंकड़ों पर यदि गौर किया जाय तो पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पं. दीनदयाल चिकित्सालय में एक जनवरी से नवम्बर 2017 तक 325 नये मरीजों का रजिस्ट्रेशन हुआ है जबकि अभी भी इस वर्ष के समाप्त होने में एक माह शेष है। एआरटी सेंटर के आंकड़ों पर गौर करें तो इस सेंटर का शुभारम्भ वर्ष 2011 में हुआ उस दौरान लगभग पांच सौ मरीजों का पंजीकरण किया गया था जो समय के साथ बढ़ते हुए नवम्बर 2017 तक 3171 पहुँच गया। जिनका पंजीकरण कर इलाज किया जा रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अभी तक एचआईवी संक्रमित महिला व पुरुष ही होते थे लेकिन इस महामारी जनित बीमारी में अब थर्ड जेण्डर भी शामिल हो चुके हैं।
एड्स के प्रति कितनी जागरूक हैं सरकारें
वाराणसी के पं. दीनदयाल चिकित्सालय में एड्स पीड़ितों के इलाज के लिए नाको द्वारा 2011 में स्थापित एआरटी सेंटर पर मौजूद सुविधाएं बताती हैं कि प्रदेश सरकार इस महामारी जनित बीमारी के प्रति कितनी सजग है। एचआईवी के साथ टीबी जैसी बीमारी से ग्रसित मरीजों की जांच के दौरान वहां मौजूद कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ रहा है। मरीजों की काउंसलिंग व उनके इलाज के लिए तत्पर चिकित्सक व कर्मचारी के बचाव के कोई भी उपाय नहीं किये गए हैं। जबकि वर्ष 2011 से अब तक यहाँ 3171 मरीजों का पंजीकरण कर इलाज किया जा रहा है। ये तो मात्र एक एआरटी सेंटर का आंकड़ा है यदि सभी सेंटरों के आंकड़ों को ले लिया जाय तो जो तस्वीर उभर कर सामने आएगी वो केन्द्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य के प्रति किये जा रहे प्रयासों की कलई खोल कर रख देगी।
क्या कहना है मुख्य चिकित्साधिकारी का
एचआईवी पीड़ित मरीजों की बढ़ती संख्या के प्रश्न पर प्रतिनिधि से बात करते हुए सीएमओ डॉ. वी.बी.सिंह कहा कि पहले एचआईवी संक्रमित मरीज झिझक के चलते जल्दी अस्पताल नहीं आते थे। परन्तु समय के साथ-साथ बढ़ती जागरूकता व सरकार द्वारा ऐसे मरीजों के लिए अनेकों कल्याणकारी योजनाओं को लागू किये जाने से एचआईवी पीड़ित मरीजों में बदलाव आया है जिससे ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है।