असली बाहुबली जिसने अशिक्षा की कोठरी में जला दी शिक्षा की लौ

कनिष्क गुप्ता.

इलाहाबाद। पुराने यमुना पुल के किनारे मलिन बस्ती में अब गालियों की बौछार नहीं होती, फड़ और जुए के अड्डे नहीं लगते। युवा और बच्चे नशे में धुत होकर झगड़ा व गाली-गलौच करते नहीं दिखते। मलिन बस्ती में बच्चे अब पढ़ते हैं। संस्कारों के साथ ही साथ हुनर सीख रहे हैं। यह सब संभव हुआ है छात्र विवेक कुमार दुबे के प्रयास से। विवेक की पहल ने इस क्षेत्र की मलिन बस्ती की तस्वीर ही बदल दी है। स्कूल न जाने वाले 70 बच्चे अब तक प्राथमिक विद्यालय व अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में रोज स्कूल जाने लगे हैं।

करीब दो साल पहले विवेक ने मलिन बस्ती में काम करना शुरू किया। पहले तो वहा के लोगों ने विवेक का विरोध किया। मार खाने की भी नौबत आ गई, पर धीरे-धीरे विवेक ने अभिभावकों को समझाना शुरू किया और बच्चों को पढ़ाना। मेहनत रंग लाई। हृदय परिवर्तन शुरू हुआ। पहले चार पांच बच्चे ही पढ़ने आते थे बाद में संख्या बढ़ने लगी।

बकौल विवेक, पहले यहां बच्चे जुआ, ताश, कंचा, चिभ्भी खेलते थे। बच्चों की बुरी लत छुड़वाने के लिए लूडो, कैरम, चेस आदि बांटा। खेलना सिखाया। प्रतियोगिता आयोजित कराई। जीतने वाले को रेंजर साइकिल गिफ्ट करने को कहा। फिर धीरे-धीरे बच्चों के अंदर सुधार आने लगा। कंचा, ताश खेलना बंद कर दिया। बच्चों का मन पढ़ाई में लगने लगा। विवेक मूलत: जौनपुर मड़ियाहूं, बराईकला के रहने वाले हैं। यूइंग किश्चियन कॉलेज से बीएससी करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एमएससी में प्रवेश लिया। मां और छोटे भाई की असामयिक मृत्यु ने विवेक को इस कदर तोड़ दिया कि पढ़ाई में मन नहीं लगा और चतुर्थ सेमेस्टर के बाद पढ़ाई छोड़ दी। यहीं से गरीब और मजलूम बच्चों की सेवा में मन रम गया। विवेक ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च चलाते हैं।

..और छात्राओं ने ठुकरा दी फीस

मलिन बस्ती की कक्षा नौ की छात्रा आरती, प्रीति, भारती और रोशनी ने बाद में विवेक का साथ देना शुरू किया। खुद विवेक से पढ़ने के बाद छोटो बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। विवेक चारों बच्चियों को हर माह पांच सौ रुपये प्रोत्साहन राशि देना शुरू किया। एक साल पढ़ाने के बाद चारों बच्चियों ने भी निश्शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया और 500 रुपये फीस लेने से मना कर दिया। बाद में 10वीं में भारती ने 73 फीसद, प्रीति ने 72 फीसद, आरती ने 70 व रोशनी ने 62.2 फीसद अंक हासिल किए तीनों मलिन बस्ती में रहती हैं और आर्यकन्या इंटर कॉलेज की छात्रा हैं।

लूडो के खेल में सीख रहे एबीसीडी, मात्रा

विवेक ने पढ़ाई को रुचिकर बनाने के लिए कई प्रयोग किए। एक ऐसा लूडो विकसित किया, जिसको खेलने के दौरान बच्चे आसानी से एबीसीडी व ¨हदी की मात्राएं सीख जाते हैं। एक ऐसा लूडो भी बनाया जिसको खेलने से टेक्नोमेट्री के 99 फार्मूले आसानी से याद हो जाते हैं। विवेक के साथ ईसीसी के छात्र अक्षय तिवारी ने भी बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना शुरू किया। अक्षय तिवारी ने एक ऐसा लूडो बनाया है, जिसमें महापुरुषों के 50 नाम हैं। इससे बच्चों को महापुरुषों के नाम और चेहरे आसानी से याद हो जाते हैं।

नैतिक शिक्षा पर दिया ज्यादा जोर
विवेक ने बताया कि बच्चों के अंदर कई ऐसी बुरी आदतें थीं जिनको छुड़ाना हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। इसलिए बच्चों में नैतिकता का बीज बोने का प्रयास किया गया। शुरू में परेशानी आई पर अंतत: हम सफल रहे। बच्चों को सामान्य शिष्टाचार, ब्रश करना, नहाना, पूजा करना, व्यक्तिगत साफ-सफाई, माता-पिता के पैर छूना आदि के महत्व के बारे में बताया गया व करने को प्रेरित किया गया। यह प्रयोग काफी कारगर साबित हुआ।

हर बच्चे का है सेविंग अकाउंट

विवेक ने बच्चों के अंदर बचत की आदत डालने के लिए सभी का सेविंग अकाउंट खुलवाया। सभी के नाम का खाता है। इसे कक्षा 11 की छात्रा प्रीती देखती है। बच्चों को उनकी बचत से पैसे निकालकर कॉपी-किताब व पेंसिल दी जाती है। विवेक कहते हैं कई संस्थाएं फ्री में पेंसिल, कॉपी-किताब ऑफर करती हैं पर मेरा मानना है कि फ्री में चीज मिलने पर बच्चे उसकी कद्र नहीं करते। जब खुद के पैसों से खरीदते हैं तो उसे संभालकर रखते हैं।

खेल व किताबों की है लाइब्रेरी

मलिन बस्ती के एक कमरे में बनी पाठशाला में प्राथमिक से लेकर कक्षा 11वीं तक की किताबें हैं। बच्चों को 10 दिन के लिए किताबें इश्यू कराते हैं। लेट जमा करने पर पांच रुपये फाइन देना होता है। इससे अनुशासन कायम रहता है। कक्षा 11 की छात्रा भारती लाइब्रेरी की देखभाल करती है। बच्चों में खेल के प्रति जागरूकता लाने के लिए स्पो‌र्ट्स लाइब्रेरी भी बनाई गई है। इनमें कैरम, लूडो, बैटबॉल, बैडमिंटन, फुटबॉल, तीर-धनुष, फ्लाइंग डिस्क आदि खेल के सामान रखे गए हैं।

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