माघी पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में लगाया आस्था की डुबकी

कनिष्क गुप्ता.

इलाहाबाद। माघी पूर्णिमा पर बुधवार को त्रिविध पाप नाशिनी मां गंगा-श्यामल यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन जल संगम में जमकर पुण्य की डुबकी लगी। लाखों श्रद्धालुओं ने यम-नियम से स्नान-दान किया और सूर्यदेव को अघ्र्य देकर मनोवांछित फल प्राप्ति की कामना की। प्रशासन ने लगभग 40 लाख श्रद्धालुओं के स्नान करने का दावा किया है। उल्लेखनीय है कि पुण्य प्राप्ति की लालसा में भोर से स्नान का सिलसिला आरंभ हो गया। चंद्रग्रहण का सूतक सुबह 8.22 बजे लग गया था, इसलिए दिन में स्नान करने वालों की संख्या अपेक्षा से कम रही। चंद्रग्रहण समाप्त होने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने स्नान किया।

कल्पवास का समापन

श्रद्धालुओं के साथ संत और महात्माओं ने संगम में डुबकी लगाई। माघी पूर्णिमा स्नान के साथ त्याग, तपस्या का प्रतीक कल्पवास का समापन हो गया। पौष पूर्णिमा से घर-परिवार से दूर रहकर भजन-कीर्तन, जप-तप में लीन कल्पवासी पुन: अपनों के बीच लौटने लगे। इससे पहले कल्पवासियों ने संगम के साथ गंगोली शिवाला, पुराना जीटी रोड, काली मार्ग, रामघाट आदि गंगा घाटों पर भी डुबकी लगाकर पूर्वजों व आराध्य का स्मरण कर मनौती मांगी मांगी। इसके बाद शिविर में आकर ध्यान-पूजन कर पूर्वजों का स्मरण किया। प्रसाद स्वरूप तुलसी का बिरवा व जौ का पौधा लेकर तपस्थली को प्रमाण कर सुखद स्मृतियों के साथ घर रवाना हो गए। कुछ संत अभी शिवरात्रि तक प्रयाग में रुकेंगे।

ग्रहण खत्म होने का इंतजार

माघी पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण का सूतक लग गया था। इस अवधि में तीर्थस्थल छोडऩा वर्जित माना जाता है। इस मान्यता के चलते कल्पवासी स्नान, दान व पूजन के बाद भी मेला क्षेत्र में रुके रहे। चंद्रग्रहण समाप्त होने के बाद रात में पुन: स्नान करके उन्होंने प्रस्थान किया। कुछ कल्पवासी सूतक लगने से पहले ही घर रवाना हो गए।

त्रिजटा स्नान बाकी

माघ मेला क्षेत्र में अभी जो संत व कल्पवासी बचे हैं वह फाल्गुन कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को त्रिजटा स्नान कर यहां से जाएंगे। त्रिजटा स्नान गंगा, यमुना व सरस्वती के साथ भगवान सूर्य को समर्पित माना गया है। मान्यता है कि कल्पवास के दौरान त्रिजटा स्नान करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।

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