आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी क्या सही है ?

संजय राय
चितबड़ागाँव ( बलिया ) – हमारा देश तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन हमारा नजरिया नहीं बदल रहा है । आजादी के 70 वर्ष के बाद भी हम सभी मानसिक और आर्थिक रूप से गुलाम हैं , आज प्रत्येक इंसान व्यक्तिगत लाभ के सोच में जी रहा है जिससे आम परिवारों में बेइमानी , ईष्या, द्वेष, कलेश , बेरोजगारी के रूप में देख सकते हैं। एक तरफ हम लोग चांद और मंगल ग्रह पर पहुंच रहे हैं तो दूसरी तरफ आज भी बहू और बेटियां दहेज उत्पीड़न की आग में जल रही हैं तो कहीं बेटियां मां की कोख में ही मार दी जा रही हैंं ।

लोग अपनी बहू व बेटियों को खुशहाल देखना चाहते हैं लेकिन बहू – बेटी नहीं बना पा रहे हैं । वास्तव में यह मानसिक रूप से गुलामी नहीं है तो और क्या है । एक तरफ हमारा देश टेक्नोलॉजी की दुनिया में रोज आगे बढ़ रहा है तो दूसरी ओर डिग्री लेकर नौजवान रोजगार के लिए इधर से उधर भटक रहा है । सरकार द्वारा चलाई जा रही जनहित में तमाम योजनाओं के बावजूद भी उसका लाभ गरीब तबके के लोग सबसे पिछले पायदान पर भी कोई व्यक्ति नहीं पहुंच पा रहा है ऐसे में अमीर व्यक्ति और अमीर होता जा रहा है तो वहीं गरीब और गरीब होता जा रहा है ।

ग्रामीण इलाकों के तटवर्ती क्षेत्रों में नदियों के किनारे बसने वाले गरीब मजदूर से लेकर आम आदमी तक परेशान हो गया है सरकार द्वारा अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी गरीबों के लिए कोई स्थायी समाधान आज तक नहीं हो सका । गाँवों में सड़क, बिजली, पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है । किसानों के देश हिन्दुस्तान में आज भी नौजवान खेती करने से परहेज कर रहा है । लोग गांव छोड़कर शहर की ओर भाग रहे हैं । जो कम मेहनत करके ज्यादे पैसा कमाना चाहते हैं । आज हमारे देश के बार्डर पर रोज जवान शहीद हो रहे हैं तो दूसरी ओर हमारे देश के राजनीतिक दल के नेता आपस में कुर्सी के लिए लड़ते हुए नजर आ रहे हैं । क्या यही हमारे देश की आजादी है ।

एक तरफ हम विकसित देश की तरफ ओर बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर आम आदमी मानसिक रूप से सोचने की नजरिया नहीं बदल रहा है । आज देश के अंदर आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसी जघन्य अपराध और घटना रोज – रोज बढ़ती जा रही है । गांव से शहर तक बहू व बेटियां सुरक्षित नहीं है । ऐसे में अब जरूरत है कि आम आदमी और खास आदमी मानसिक और आर्थिक रूप से आजाद होकर जाति-धर्म से ऊपर उठकर मानवता के लिए कुछ कार्य करें । हम सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई से ऊपर उठकर केवल इंसान बनने का प्रयास करें । तभी हम सभी सच्चे रूप से आजाद भारत की आजादी होगी ।

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