सवेदनहीनता की हद – जा रहे थे कफ़न लेकर, व्यापारी नेता को लगा धक्का तो लोगो ने कर दिया पिटाई.
तारिक आज़मी
सुलतानपुर कादीपुर- संवेदना क्या होती है शायद आम जनता भूलती जा रही है. शायद यही कारण रहा होगा उन कफ़न लेकर जा रहे युवको के पिटाई का. या फिर शायद इसको क्षेत्रीय गुंडागर्दी कहा जा सकता है कि क्षेत्र के एक व्यापारी नेता को कैसे चोट लग गई. उस व्यापारी नेता के नजरो में नंबर बढ़ाने के चक्कर में ही पीट दिया होगा, संवेदना का क्या ? भाड़ में गई सम्वेदना, नेता जी के नज़र में हीरो तो बन गये न फिर कौन है सामने वाला जिसके घर कोई मरा पड़ा है कफ़न के इंतज़ार में.
जी हां, ऐसा ही हुआ होगा अपनी मौसी की लाश के लिये कफ़न लेकर जा रहे उन युवको के साथ. घटना सुबह 11 बजे के लगभग की है जब कादीपुर व्यापार मंडल के एक पदाधिकारी कुछ कार्यो से कादीपुर से शाहगंज वाले मार्ग पर जा रहे थे, तभी पीछे से एक बाइक से दो युवक आ रहे थे. अब गलती किसकी थी अथवा किसकी नहीं थी इस विवाद में पड़ने के बजाये सीधे कहते है युवको कि बाइक से नेता जी की बाइक टकरा गई. दोनों बाइक सवार सड़क पर गिर पड़े, इतने में नेता जी के लग्गू बिज्झुओ ने आकर युवको की जमकर कुटाई शुरू कर दिया. देखने वाले बताते है कि नेता जी ने भी खूब हाथ साफ़ कर डाले लडको पर. बाइक सवार युवक चिल्लाते रहे भैया कफ़न लेकर जा रहा हु घर मगर संवेदनहीन हुवे नेता जी और उनके चमचो ने कुछ न सुनी और जमकर मार लगाई, इसके बाद नेता जी को अस्पताल पहुचाया और घायल हुवे लाचार युवको को थाने पंहुचा दिया.
यहाँ हम पुलिस पर कोई सवालिया निशाँन नहीं लगा रहे है, हम उनकी भी मज़बूरी समझ रहे है कि अगर वो नेता जी के गुर्गो और नेता जी की बातो को न मानते तो दो मिनट में नेता जी ने बवाल काट दिया होता, फिर क्या था दोनों घायल युवको को उठा कर हवालात में बंद कर दिया गया. युवक गुहार लगाते रहे कि कफ़न लेकर घर जाना है, युवक दर्द से कराहते रहे मगर व्यापारी नेता जी से पंगा लेने की किसकी हिम्मत हो सकती है. इसी बीच घटना की जानकारी पत्रकारों को होने पर वह समाचार संकलन हेतु जब थाने पहुचे तो पुलिस कर्मियों ने आनन् फानन में कागज़ी कार्यवाही करते हुवे युवको को इलाज हेतु भेजा. जहा चिकित्सको ने घायल युवको का इलाज किया. इस दौरान घायल एक युवक नरेंद्र निषाद ने बताया कि ग्राम तवक्कलपुर में उसकी मौसी रहती है जिनका आज सुबह देहांत हो गया था, हम लोग कफ़न लेकर जा रहे थे इसी जल्दबाजी में हो सकता है हम लोगो की ही गलती रही हो और दुर्घटना हो गई. मगर क्या करे साहब इलाका नेता जी का था तो पिटना पड़ा. सम्वेदना क्या होती है.
मगर नेता जी सब ठीक है मान लेते है कि गलती युवको की ही रही हो मगर साहब संवेदना नाम की चीज़ भी कुछ होती है या फिर ये चिरैया अपना घोसला कही और बना लिये है. जो भी हो नेता जी हम तो उधर से गुज़र रहे थे बस देख लिया आपके बहादुर साथियों का विरोध हम तो नये है करने की हिम्मत नहीं जुटा सके. आपके बहादुर साथी कितने बहादुर है इसका अंदाज़ तो आपको भी होगा. अपने इलाके में दस पंद्रह मिलकर एक को कूट रहे थे. आप मूकदर्शक बनकर उनके कृत्यों को मौन सहमति दे रहे थे. नेता जी ये जो पॉवर है न ये हमेशा किसी एक के पास नहीं रहता है. उदहारण आपके ही क्षेत्र में कई एक है. कल तक अपने नाम का सिक्का चलाने वाले भी आज पॉवर खो चुके है. आप बलशाली है क्योकि आपके पास ऐसे बलशाली लोग है, कोई आपका विरोध कैसे कर सकता है. मगर नेता जी जिस व्यापारी वर्ग के उत्थान हेतु आपको कुर्सी मिली है साहब उस वर्ग के लिये ख़ास ख़ास काम कीजिये.